नीरज सिसौदिया, जालंधर
किताबी कानूनों की धज्जियां उड़ाने वाले नगर निगम जालंधर के अधिकारी अब हाईकोर्ट के आदेशों को भी ठेंगा दिखा रहे हैं. मामला नया बाजार में अतिक्रमण का है.
लगभग दो साल पहले माननीय पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यहां 90 से भी अधिक अवैध कब्जे ढहाने के आदेश नगर निगम कमिश्नर जालंधर को दिए थे. उस वक्त ज्वाइंट कमिश्नर जय इंदर सिंह के नेतृत्व में एटीपी राजेंदर शर्मा और अन्य अधिकारियों की एक टीम बनाई गई थी. टीम ने आदेशों का सख्ती से पालन करते हुए वहां लगभग 80 अवैध कब्जे गिरा भी दिए थे लेकिन 13 दुकानदारों ने उस वक्त कुछ मोहलत मांगते हुए खुद ही कब्जे हटाने का भरोसा दिलाया था. उस वक्त यहां डिप्टी मेयर स्थानीय पार्षद अरविंदर कौर ओबरॉय थीं. वर्षों पुरानी दुकानों को बचाने में वो असमर्थ साबित हुई थीं. शायद यही वजह रही कि सत्ता में होने के बावजूद कुछ कर पाने में नाकाम ओबरॉय दंपति को निगम चुनावों में जनता ने पूरी तरह से नकार दिया. नतीजतन दो दशकों से जिस वार्ड से ओबरॉय दंपति पार्षद बनते आ रहे थे उसी वार्ड से उन्हें करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. हालांकि, ओबरॉय की हार के कई अन्य कारण भी थे जिनका जिक्र फिलहाल करना मुनासिब नहीं.
नया बाज़ार पर डिच चली तो जसविंदर सिंह राजू ने आंदोलन किया और उनके आंदोलन में साथ देने वाले लोगों के अवैध अतिक्रमण पर निगम की डिच नहीं चल पाई. अब तक नया बाजार के दुकानदार दो गुटों में बंट चुके थे. एक गुट उन दुकानदारों का था जिन्होंने ओबरॉय की बात मानते हुए बिना किसी विरोध के अपनी दुकानें टूटने दीं. और दूसरा गुट जसविंदर सिंह राजू और उन दुकानदारों का था जिन्होंने अपने कारोबार बचाने के लिए पुरजोर लड़ाई लड़ी. इसी का नतीजा है कि हाईकोर्ट के आदेशों के बाद भी आज तक उनके अवैध अतिक्रमण नहीं हटाए गए. नया बाजार के एक दुकानदार ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि अगर उस वक्त ओबरॉय के बहकावे में वह नहीं आते और राजू के साथ मिलकर विरोध में डटे रहते तो शायद आज उन 13 दुकानदारों की तरह उनकी दुकानें भी बच सकती थीं. इस संबंध में जब कुलदीप सिंह ओबरॉय से उनका पक्ष जानने के लिए उन्हें फोन किया गया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया.
वहीं, नया बाजार का मामला सुलझाने के लिए नगर निगम हाउस में एक प्रस्ताव भी लाया गया लेकिन वह पास नहीं हो सका. पुराने अफसर बदल दिये गये. जय इंदर सिंह के बाद दो ज्वाइंट कमिश्नर बदल गए और राजेंदर शर्मा के बाद जाने कितने एटीपी आए और गए लेकिन हाईकोर्ट के आदेश कागजों में ही सिमट कर रह गए. इस मामले पर जब नए एटीपी प्रदीप कुमार से बात की गई तो उन्होंने कहा कि मामले के बारे में उन्हें कुछ भी पता नहीं है. जब उनसे पूछा गया कि हाईकोर्ट में मामले की अगली तारीख क्या पड़ी है तो उन्होंने इस पर भी अनभिज्ञता जतायी. बहरहाल, सूत्र बताते हैं कि निगम के अधिकारियों ने कार्रवाई न करने के एवज में रिश्वत की मोटी रकम ली है और हाईकोर्ट के आदेशों को फाइलों में ही दबा दिया गया है. सूत्र तो यह भी बताते हैं कि हाईकोर्ट में इन दुकानों के अतिक्रमण हटने की झूठी रिपोर्ट भी हाईकोर्ट में पेश करने की तैयारी एटीपी कर रहे हैं. बहरहाल, नगर निगम चंद अधिकारियों और सियासतदानों के हाथों की कठपुतली बनकर रह गया है.