जालंधर : …लगता है जैसे पंजाब सरकार और उसके पदाधिकारीण “बाल विवाह” जैसे जघण्य मामलों को अपराध की श्रेणी में नहीं रखते।जालंधर में घटे ढाई साल पुराने बाल विवाह की घटना को लेकर जालंधर पुलिस का बेहद घिनौना चेहरा परत दर परत उजागर होता जा रहा है। नवंबर 2017 में जालंधर पुलिस प्रशासन से एक 13 साल की बच्ची के जबरन विवाह कर देने की शिकायत दी गई थी। न्यु हरगोविंद नगर, जालंधर निवासी मां बाप ने एक 32 साल के ड्राईवर के साथ अपने छठी क्लास में पढने वाली बेटी की जबरन शादी करवा दी थी। शिकायत को प्रशासन ने साल बीतने तक भी गंभीरता से नहीं लिया। समाजिक सरोकार से जुड़े शिकायतकर्ता ने इसकी शिकायत पुन: तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी,राज्यमंत्री रजिया सुल्ताना को जरूरी दस्तावेजों के साथ भेजा। पुन: साल भर तक अपनी कारगुजारीयों को लेकर चर्चित पंजाब पुलिस महज जाँच के नाम इस अतिसंवेदनशील मामलो में सिर्फ खानापुर्ती करती रही। शिकायत कर्ता ने मार्च 2018 में नोबेल शाँति पुरस्कार विजेता ” कैलाश सत्यार्थी” की संस्था “बचपन बचाओ आंदोलन” नई दिल्ली की प्रधान शाखा और “नेशनल ह्युमेन राईट कमीशन” का दरवाजा खटखटाया। एक बार फिर से पिछली जांचो पर प्रश्नचिह्न लगता देख मामले की खुलकर लीपापोती की गई। पर “बचपन बचाओ आंदोलन” के दिल्ली सेंट्रल ऑफिस ने अपने चंडीगढ़ कार्यालय को मामले पर ध्यान देने का निर्देश दिया।..तत्काल प्रभाव से मामले में ढाई साल बीत जाने के बाद भी FIR तक दर्ज नहीं करने वाली पंजाब पुलिस को “महिला एवं बाल विकास विभाग” चंडीगढ़ ने जाँच की रिपोर्ट सौंपने का आदेश जारी किया है । जालंधर के DM एवं अन्य बाल अधिकार से जुड़े विभागों को जाँच की बागडोर सौंपी जा चुकी है। अब देखना बेहद दिलचस्प होगा कि जाँच को सबूतों के आगे पंजाब पुलिस किस दिशा में ले जाती है।
कानून क्या कहता है?
# बाल विवाह अधिनियम 2006 की धारा 9-10-11 व 13(10) के तहत कार्यवाही करनी बनती है। और इस कानून के तहत बने नियमो के अनुसार पुलिस को बाल विवाह के बारे पता चलते ही पहले FIR दर्ज करनी है फिर केस की तफ्तीश शुरू की जायेगी, लेकिन पंजाब पुलिस ने ढाई वर्ष बीत जाने पर भी FIR दर्ज तक नहीं की जबकि कई बार केस की तफ्तीश कर रिपोर्ट बना कर फाइल कर खानापूर्ति कर दी।
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