नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
4 दिन से दिल्ली के जंतर मंतर पर चल रहे छात्रों के प्रदर्शन पर आखिरकार रेलवे बोर्ड को जवाब देना ही पड़ा। पांच लाख से अधिक ग्रुप D अभ्यर्थियों के परीक्षा फॉर्म फ़ोटो या सिग्नेचर गलत बताकर रिजेक्ट कर दिये गए हैं।
बीते 2 अक्टूबर को छात्रों ने गांधी जयंती के अवसर पर रेल भवन के बाहर जब सफाई अभियान चलाया और अधिकारियों को फूल देना चाहा। जवाब में पुलिस ने छात्रों को उठाकर मंदिर मार्ग थाने में हिरासत में ले लिया था। आज रेलवे बोर्ड के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अंगराज मोहन ने युवा हल्लाबोल के प्रतिनिधि और छात्रों के समूह से मुलाकात करी।
ग्रुप D में छात्रों के फॉर्म फ़ोटो/सिग्नेचर गलत बताकर रिजेक्ट किये जाने पर अंगराज मोहन जी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यदि किसी छात्र को लगता है कि उसका फॉर्म गलत तरीके से रिजेक्ट किया गया है तो वो अपने जोनल RRB को मेल करके समस्या बताएं और उसपर उचित कार्यवाई का आश्वासन भी दिया।
मॉडिफिकेशन लिंक जारी करने की मांग पर अंगराज मोहन यह कहते हुए साफ मुकर गए कि पिछले साल भी यह लिंक देना रेलवे की एक गलती थी जिसे वो इस साल नहीं दोहराएंगे। उनका मानना है कि मोडिफिकेशन लिंक देने से नकल में वृद्धि हुई थी और पुलिस विभाग ने उन्हें इस बार लिंक न देने की गुजारिश करी है। नागपुर से आये छात्र गौतम वहाने का कहना है कि रेलवे को गलत तरीके से फॉर्म रिजेक्ट होने पर पहले भी कई बार पत्र और मेल कर चुके हैं पर कोई जवाब नहीं मिला। रेलवे इस प्रक्रिया को दोहराकर खाना-पूर्ति करना चाहती है और छात्रों की असल समस्या से निजात नहीं कराना चाहती।
प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे युवा-हल्लाबोल के रजत यादव ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में छात्र फॉर्म भरते समय गलती नहीं कर सकते, यह ज़रूर रेलवे के सिस्टम का दोष है जिससे छात्रों को परीक्षा में बैठने से वंचित किया जा रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि रेलवे ने प्रति छात्र 500 रुपये लिए थे जिससे इतनी बड़ी संख्या में फॉर्म रिजेक्ट होने से रेलवे को करोड़ो रूपये का मुनाफ़ा भी होगा।
उन्होंने रेलवे से सवाल किया कि क्या मोडिफिकेशन लिंक न देने से रेलवे इस बार नकल रोकने में कामयाब होने की गारंटी दे सकता है? नकल रोकने के बहाने रेलवे द्वारा लाखों छात्रों को परीक्षा में बैठने से वंचित करना कितना सही है?
बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ चल रहे देशव्यापी मुहिम युवा-हल्लाबोल का नेतृत्व कर रहे अनुपम ने कहा कि कभी एसएससी की परीक्षा में एक ही उम्मीदवार को 700 से ज़्यादा प्रवेश पत्र दे दिया जाता है तो कभी लाखों छात्रों को फोटो सिग्नेचर के नाम पर अन्यायपूर्ण ढंग से बाहर कर दिया जाता है। उन्होंने पूछा कि ‘डिजिटल इंडिया’ का ढिंढोरा पीटने वाली यह सरकार क्या इतना भी सुनिश्चित नहीं कर सकती कि ईमानदार छात्रों को ऐसे तकनीकी कारणों से नौकरी के अवसर से वंचित न होना पड़े?