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राष्ट्रपति शासन की ओर महाराष्ट्र, क्या दोबारा होंगे विधानसभा चुनाव?

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली

महाराष्ट्र के सियासी संकट का फिलहाल कोई हल निकलता नजर नहीं आ रहा है. महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के बीच पावर शेयरिंग के मुद्दे पर जारी खींचतान के बीच भाजपा ने हुकुम का इक्का फेंक दिया है. भाजपा की इस चाल से शिवसेना को चारों खाने चित नजर आ रही है. भाजपा ने शिवसेना को अल्टीमेटम देते हुए साफ कर दिया है कि अगर 7 नवंबर तक महाराष्ट्र में नई सरकार नहीं बनती है तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाएगा. भाजपा नेता सुधीर मुंगटीवार ने राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की है. अब गेंद पूरी तरह से भाजपा के पाले में है. अगर शिवसेना अपनी मांग छोड़कर भाजपा का साथ देती है तो सरकार भाजपा की बनेगी और मुख्य मंत्री भी भाजपा का ही होगा. अगर राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो भी राज भाजपा का ही होगा.

लेकिन भाजपा की यह सियासत महाराष्ट्र की राजनीतिक अस्थिरता को और बढ़ाएगी. अगर कोई भी पार्टी सरकार बनाने में कामयाब नहीं होती तो महाराष्ट्र एक बार फिर चुनावी मोड़ पर आ खड़ा होगा. भाजपा और शिवसेना के अहम और लालच की जंग ने दोनों को नंगा कर दिया है. सत्ता की भूख इस कदर हावी हो गई है कि एक मुख्यमंत्री पद के लिए पूरे जनादेश को दरकिनार किया जा रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि दोनों के बीच यह लड़ाई क्या वाकई जनहित के लिए हो रही है? क्या वाकई सत्ता में आने के बाद ये लोग जनता का हित सोचेंगे? महाराष्ट्र में इस समय सियासत का सबसे घिनौना चेहरा देखने को मिल रहा है. एक-एक मंत्री पद के लिए गठबंधन के सहयोगी से नाता तोड़ने को तैयार बैठे ऐसे सियासतदानों की वजह से ही हिन्दुस्तान का बेड़ा गर्क हो रहा है. महाराष्ट्र का सियासी ड्रामा बेहद शर्मसार करने वाला है. सत्ता के भूखे इन सियासी दलों के लिए  निश्चित तौर पर जनता कोई मायने नहीं रखती. दोनों दलों की ओर से रोज चलाए जा रहे शब्दों के तीर उनके स्वार्थ को जगजाहिर कर रहे हैं. जोड़ तोड़ के खेल में नाकाम नेता एक दूसरे पर कीचड़ फेंकने में लगे हुए हैं.
भाजपा के राष्ट्रपति शासन केे दांव से भड़की शिवसेना ने उसकी तुलना मुगलों से की है. शनिवार को शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा है कि भाजपा मुगलों की तरह महाराष्ट्र को अपना गुलाम बनाना चाहती है लेकिन संविधान और कानून किसी के गुलाम नहीं हैं. शिवसेना ने आगे कहा कि एक पार्टी के नेता जाे यह समझते हैं कि उनका जन्म शासन करने के लिए ही हुआ है, जिन्हें जनता ने बहुमत भी नहीं दिया है, वो अब मुगलों की तरह जनता पर राज करना चाहते हैं.
शिवसेना ने कहा कि महाराष्ट्र की वर्तमान राजनैतिक स्थिति के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं. भाजपा सरकार के गठन में देरी कर रही है. महाराष्ट्र की जनता शिवसेना का सीएम देखना चाहती है. शिवसेना ने इसे असंवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी बताया है.
बता दें कि 24 अक्टूबर को महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावी नतीजे आ गए थे. जिसमें किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. भाजपा 105 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन शिवसेना के सहयोग के बिना वह सरकार बनाने में नाकाम साबित हो रही है. वहीं शिवसेना 50-50 के फॉर्मूले पर अड़ी हुई है. शिवसेना की मांग है कि उसे सरकार में बराबर की हिस्सेदारी दी जाए. वह चाहती है कि पहले ढाई साल राज्य में शिवसेना का सीएम हो और सरकार में भी आधे मंत्री शिवसेना के बनाए जाएं. जबकि भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि वह सीएम पद पर कोई समझौता नहीं करने वाली और शिवसेना को सिर्फ 14 मंत्री ही देगी. इस पर दोनों दलों में पिछले एक सप्ताह से खींचतान चल रही है. शिवसेना भाजपा को एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की धमकी भी दे चुकी है. वहीं शिवसेना के आला नेताओं ने एनसीपी के आला नेताओं से मुलाकात भी की. कांग्रेस के अशोक चव्हाण भी शिवसेना के समर्थन का संकेत दे चुके हैं. लेकिन फिलहाल सरकार बनाने पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका है. अब भाजपा ने राष्ट्रपति शासन का दांव खेला है. यह दांव कितना कारगर होगा यह देखना दिलचस्प होगा. लेकिन सत्ता की इस अंधी दौड़ ने भारतीय राजनीति के इतिहास में एक और काला अध्ययाय जोड़ दिया है. अगर महारााष्ट्र में दोबारा चुनाव हुए तो निश्चित तौर पर दोनों दलोंं का वजूद अंतिम पड़ाव पर नजर आएगा.

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