नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
भारतीय जनता पार्टी का वन मैन शो अब उनके सहयोगी दलों को भी रास नहीं आ रहा. महाराष्ट्र के बाद अब पंजाब में अकाली दल का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा है. पैराशूट पदाधिकारियों को भले ही पार्टी के आला नेताओं की अनुकंपा प्राप्त हो लेकिन जमीनी स्तर पर उनका हाल और भी बदतर होने लगा है. ताजा मामला शनिवार को पंजाब के जालंधर शहर में भाजपा की ओर से निकाली जा रही गांधी संकल्प यात्रा में देखने को मिला. यहां एक मामूली से अकाली दल के पूर्व पार्षद ने भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष के गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया. इसके बाद बेचारे पंजाब भाजपा युवा मोर्चा प्रधान मन मसोस कर रह गए. अब सवाल यह उठता है कि आखिर सनी शर्मा इतने कमजोर कैसे पड़ गए कि कोई भी ऐरा-गैरा आकर उन्हीं के कार्यक्रम में सरेराह थप्पड़ जड़ कर चलता बना.
अब जरा नजर डालते हैं भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष सनी शर्मा पर. सनी शर्मा भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष बनने से पहले छोटे-मोटे ठेके लिया करते थे. एक भाजपा कार्यकर्ता के तौर पर सनी की सक्रियता सिर्फ इतनी ही थी कि वह नगर निगम के ठेके हासिल करने के लिए कुछ आला ऩेताओं के घर और दफ्तर के चक्कर काटा करते थे. अचानक पंजाब भाजपा में हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के रिश्तेदार और जालंधर के पूर्व मेयर राकेश राठौर का कद बढ़ा. उन्हें पंजाब भाजपा का महासचिव बनाया गया. इसके बाद पंजाब की सियासत एकाएक बदलने लगी और पुराने चेहरे दरकिनार किए जाने लगे. पार्टी अब नए चेहरे तलाश रही थी. वह ऐसे चेहरे तलाश रही थी जो उसके इशारों पर नाच सके और पार्टी के बिना उसका अपना कोई वजूद भी न हो. अब बारी आई भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष के चयन की. हैरानी की बात है कि जिस सनी शर्मा को भाजपा ने निगम पार्षद का चुनाव लड़ने के काबिल भी नहीं समझा उस सनी शर्मा को प्रदेश भर में भाजपा की युवा ब्रिगेड को मजबूत करने का मौका दे दिया. सियासत की समझ में सनी अभी कच्चे थे. पद की अहमियत को नहीं समझ सके और पदासीन होते ही अपनी फजीहत करा बैठे. उनके अध्यक्ष बनने के कुछ समय बाद ही विदेश के एक होटल में लड़कियों के साथ अय्याशी करने की खबरें और तस्वीरें वायरल होने लगीं. मामला गंभीर था लेकिन सनी को आला अधिकारियों और संघ के कुछ पदाधिकारियों का संरक्षण प्राप्त था. जिसके चलते सनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. यहां से सनी और बेपरवाह होते गए. अपने युवा मोर्चा के कुछ पदाधिकारियों से भी सनी की नहीं बनती थी. सनी की छवि खराब करने में उन पदाधिकारियों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी.
सनी के लिए यह दौर अच्छा नहीं था. पार्टी के कुछ आला नेता पहले ही सनी की ताजपोशी से खफा थे और निचले पदाधिकारी अपनी उपेक्षा के चलते सनी का अंदरखाते बायकॉट कर रहे थे. नतीजा ये हुआ कि भाजयुमो मजबूत होने की जगह और कमजोर होने लगी.
शनिवार को सनी के खिलाफ अकाली दल को मोहरा बनाया गया. गांधी संकल्प यात्रा में गांधी को जो सम्मान दिया गया वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बहुत बड़ा झटका था. खासकर तब जबकि वह गांधी परिवार के मुंह पर तमाचा मारने के लिए गांधी को ही कैप्चर करने में लगे हुए थे. ऐसे में अकाली दल के पूर्व पार्षद का तमाचा सनी शर्मा के गाल पर नहीं बल्कि सीधे नरेंद्र मोदी के गाल पर पड़ा है.
अब जरा जान लें मोदी के गाल पर तमाचा जड़ने वाले अकाली नेता बलवीर सिंह बिट्टू के बारे में. बलवीर बिट्टू पार्षद भले ही अकाली दल से रहे हों लेकिन भाजपा के आला नेताओं से उनकी नजदीकियां जगजाहिर हैं. बलवीर बिट्टू पूर्व स्थानीय निकाय मंत्री मनोरंजन कालिया और पूर्व मेयर सुनील ज्योति के खासम खास रहे हैं. बिट्टू उस वक्त ज्योति के साथ खड़े नजर आए जब अकाली दल के तत्कालीन सीनियर डिप्टी मेयर कमलजीत सिंह भाटिया और डिप्टी मेयर अरविंदर कौर ओबरॉय ज्योति का खुला विरोध कर रहे थे. सियासी जानकार मानते हैं कि इन्हीं आला नेताओं की शह के कारण बिट्टू सनी शर्मा के गाल पर तमाचा जड़ने की हिम्मत जुटा पाए.
बहरहाल, पंजाब भाजपा के गाल पर यह तमाचा उस वक्त जड़ा गया है जब केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी के खासमखास खालसा को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाने के कवायद चल रही है. अकाली दल ने फिलहाल इस मसले पर बलवीर सिंह बिट्टू के खिलाफ कोई कार्रवाई करना मुनासिब नहीं समझा है. जिस गठबंधन को मिलकर कांग्रेस के खिलाफ लड़ाई लड़नी थी वह एक-दूसरे पर ही थप्पड़ बरसा रहा है. भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष इतना लाचार पहले कभी नहीं रहा. अत: भाजपा को भी यह समझना होगा कि अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरियां दी जानी चाहिए, संगठन की जिम्मेदारियां नहीं. जो प्रदेश अध्यक्ष अपनी सुरक्षा नहीं कर सकता वह संगठन की रक्षा कितनी कर पाएगा यह सोचनीय तथ्य है. हालांकि, सनी शर्मा के कार्यकाल की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. अगर हरदीप पुरी के करीबी खालसा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी संभालते हैं तो सनी की छुट्टी वैसे भी तय है. पर इस थप्पड़ की गूंज देश के कोने-कोने तक पहुंच चुकी है. अब देखना यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह अकाली दल को इस थप्पड़ का जवाब दे पाते हैं अथवा नहीं.