नरेश नाथ की कलम से
सबसे पहले मैं शुरुआत अपने चंडीगढ़ ज्योतिष सम्मेलन से करता हूं. वहां पर मैं हर व्यक्ति को एक प्रश्न का उत्तर देने के लिए वचन बद्ध था. उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए वहां पर एक सज्जन मेरे पास आए और बोले कि उनका पुत्र lover abdomenal decease पीड़ा से ग्रस्त है. गुरु गोरखनाथ के नाथ की यही खासियत होती है कि वह दिव्य दृष्टि से संपन्न होता है. उसकी शक्तियां प्रदर्शन के लिए नहीं होती हैं, यह मानव कल्याण के लिए भगवान द्वारा कुछ व्यक्तियों को घोर तपस्या के बाद सशर्त प्रदान की जाती हैं. इसी कड़ी में वह व्यक्ति मेरे सामने जब आया तो उसकी परछाई के साथ उसके माता-पिता की आत्माएं रोते हुए खड़ी मिलीं. वह व्यक्ति इस बात के लिए रो रहा था कि मैं अपने पुत्र के बेड पर होने और मल मूत्र का त्याग करने पर साफ करने से परेशान हूं. कोई ज्योतिष विज्ञान का व्यक्ति, कोई साधु समाज, कोई धर्म समाज, कोई सिद्ध पीठ, कोई डॉक्टर, कोई बड़े से बड़ा अस्पताल उसका इलाज नहीं कर पा रहा है.
तब गुरु गोरखनाथ विद्या द्वारा उन आत्माओं से संपर्क करने से पता चला है कि उसकी माता भारी बीमारी के कारण तड़प-तड़प कर मरी थी लेकिन वह व्यक्ति सामाजिक क्रिया में व्यस्त रहा. माता-पिता के पास सेवा करने के लिए नहीं गया. माता और पिता बीमारी से ग्रस्त होकर अपने दूर किसी पुत्र या रिश्तेदार के पास परम गति को प्राप्त हुए परंतु पुत्र के द्वारा न सेवा करना, न पूछना, केवल संस्कार पर आकर मुंह दिखा कर चले जाना उनके दुख का कारण बना. इस कारण वह आत्माएं अतृप्त होकर दुखी होकर उस पुत्र को श्राप ग्रस्त करके भटक रही हैं और दारुण पीड़ा का अभिशाप देकर खड़ी हैं.
इस स्थिति में प्राणी अपने कर्म योग की दुहाई देकर अपने आप को दोषमुक्त कहता है परंतु खुदाई नियम के मुताबिक यह ऋण पितृ दोष है. उसके अंतर्गत उसे जो पुत्र प्राप्त हुआ वह रोगी बनकर कोई पूर्वज ही उसके पास आया और उसको सेवा करने के लिए मजबूर कर रहा है.
अब यह व्यक्ति अपने कर्म योग के लिए दुहाई नहीं दे सकता और संतान मोह में मल मूत्र उठा रहा है. सभी को जो धर्म ज्योतिष डॉक्टर इत्यादि को अपनी दुहाई दे रहा है.
यदि देव माता द्वारा यह शक्तियां गुरु नाथ के पास न होतीं तो आज उसका प्रश्न सभी के लिए समस्या का कारण था लेकिन नाथ द्वारा इसका ठोस प्रमाण देने के कारण वह व्यक्ति अपने अपराध बोध को प्राप्त हुआ.
गीता के अनुसार हर व्यक्ति के कर्म का फल निर्धारित है व्यक्ति विशेष यह सोचता है कि यह तो अगले जन्म में मिलेगा. अभी मौज मस्ती कर लें लेकिन कर्म फल कब और कैसे खुल जाएगा कोई नहीं जानता.
यदि आत्मा है तो प्रेतात्मा भी है इसके लिए भौतिक कैमरों की जरूरत नहीं है बल्कि साधना से प्राप्त दिव्यदृष्टि की जरूरत है
यहां पहला अध्याय खत्म होता है.
जय गुरु गोरखनाथ