बिहार

देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सबसे दयनीय बिहार की स्थिति

दिवाकर, पटना 

युवा-हल्लाबोल आंदोलन का नेतृत्व कर रहे अनुपम ने बिहार की पुलिस व्यवस्था से संबंधित अत्यंत गंभीर सवाल उठाए हैं। राजधानी पटना में आयोजित प्रेस वार्ता में आंकड़े और तथ्यों के आधार पर अनुपम ने बताया कि देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में बिहार की स्थिति सबसे दयनीय है।2011 सेंसस के अनुसार बिहार की आबादी 10.4 करोड़ है। अपराध के मामले में पिछले कुछ दशकों से बिहार बदनाम रहा है। ऐसे वक्त में जब कानून व्यवस्था सरकार की सबसे बड़ी चिंता होनी चाहिए तो शायद प्रदेश के नीति निर्धारकों की प्राथमिकताओं में ये मुद्दा नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार एक लाख तक की आबादी के लिए 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश भारत में नागरिक-पुलिस का यह अनुपात सिर्फ 151 है। लेकिन जिस तथ्य से हर बिहारी को विचलित हो जाना चाहिए वो ये है कि बिहार में एक लाख की आबादी के लिए मात्र 75 पुलिसकर्मी है। ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट का यह आंकड़ा बताता है कि देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में बिहार पुलिस की हालत सबसे दयनीय है।

युवा-हल्लाबोल से जुड़े ऋषि आनंद ने कहा कि पुलिस की दयनीय स्थिति में सुधार नहीं होने का कारण शायद यह है कि जिन जनप्रतिनिधियों को ये काम करना था वो खुद कई अपराधों में संलिप्त होते हैं। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के अनुसार 2004 लोकसभा चुनावों से लेकर 2019 तक गम्भीर अपराध के आरोपियों की संसद में संख्या लगातार बढ़ी है। जहाँ 2004 में 12% लोकसभा सांसद पर गंभीर अपराध का मामला चल रहा था, जो 2009 में 15%, 2014 में 21% और 2019 में बढ़कर 28% हो गया। ऐसे में इन नेताओं से किसी तरह के पुलिस सुधार की उम्मीद करना ही बेईमानी होगी।

जुलाई 2019 के आंकड़ों के मुताबिक कुल 1,28,286 स्वीकृत पदों में से 77,995 पर ही बहाली है। यानी कि 50,291 पद बिहार पुलिस में खाली पड़े हैं।

एक तरफ जहाँ सीएमआईई के अनुसार बिहार में 35 लाख से ज़्यादा बेरोज़गार हैं, वहीं रोज़गार के लिए आये दिन युवाओं को सड़क पर उतरना पड़ता है। अकेले पुलिस विभाग में इतने रिक्त पद हैं जिनको भर दिए जाने से नौकरियां तो मिलेंगी ही, बिहार की कानून व्यवस्था पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा।

युवा-हल्लाबोल आंदोलन से जुड़े अतुल झा ने बताया कि अगर हम पुलिस विभाग की भर्ती परीक्षाओं पर नज़र डालें तो किसी भी आम नागिरक के लिए भरोसा कायम होना कठिन होगा। पिछली तीन बड़ी भर्तियों में कोई भी निष्कलंक नहीं रहा है।

मार्च 2018 में बिहार दरोगा भर्ती 2017 की जो परीक्षा हुई उसका मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया।

9900 पदों के लिए जब नवम्बर 2018 में सिपाही भर्ती 2017 की परीक्षा हुई तो 11 लाख से ज़्यादा अभ्यर्थी बैठे। लेकिन भ्रष्टाचार और अनियमितता के शिकायतों के साथ ये परीक्षा भी आज उच्च न्यायालय में लंबित है।

हाल ही में हुए बिहार दरोगा भर्ती 2019 के लिए 5.5 लाख से ज़्यादा अभ्यर्थियों ने आवेदन भरा। लेकिन जब 22 दिसंबर को परीक्षा हुई तो पेपर लीक हो गया।

अनुपम ने कहा कि नौकरी ढूंढ रहे युवाओं के लिए पेपर लीक, भ्रष्टाचार और अनियमितता अब आम बात हो गयी है। एक तरफ बेरोज़गारों की संख्या बढ़ती जा रही है तो दूसरी तरफ सिस्टम के प्रति उदासी और अविश्वास बढ़ता जा रहा है।

अपराध में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है, लेकिन पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाई नहीं जाती, जो संख्या स्वीकृत है उसपर भी भर्ती नहीं होती और जो थोड़ी बहुत भर्ती निकले वो भी भ्रष्टाचार का शिकार हो जाती है। पुलिस व्यवस्था की यह कहानी बिहार की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का परिचायक है।

इस अतिगंभीर विषय पर ध्यान देने की मांग करते हुए अनुपम ने बिहार सरकार से तीन सवाल भी किए

1) बिहार में नागरिक-पुलिस अनुपात नहीं सुधारने के पीछे असल वजह क्या है?

2) पुलिस विभाग में 50,291 खाली पदों को क्यूँ नहीं भरा जाता?

3) भर्ती परीक्षाओं में भ्रष्टाचार, अनियमितता और पेपर लीक से निपटने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?

अनुपम ने बताया कि जिस तरह मगध विश्विद्यालय के छात्रों को न्याय दिलाने से लेकर बिहार एसएससी और बीपीएससी में भ्रष्टाचार के खिलाफ युवा-हल्लाबोल आवाज़ उठाता रहा है, आने वाले समय में बिहार के युवाओं की आवाज़ और भी बुलंदी से उठाएगा युवा-हल्लाबोल।

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