झारखण्ड

झारखंड के इस इलाके में दी जाती है नक्सलियों को ट्रेनिंग, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड भी यहीं हुए थे ट्रेंड, फिर नक्सली आंदोलन के दम पर बने थे पीएम, पढ़ें झुमरा पहाड़ की अनकही दास्तान

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बोकारो थर्मल। रामचंद्र कुमार अंजाना

झुमरा पहाड़ और नक्सली आंदोलन का रिश्ता बहुत गहरा और पुराना है. लगभग दो सौ से तीन सौ किमी के दायरे में फैला झुमरा पहाड़ झारखंड के नक्सली आंदोलन का केंद्र माना जाता है. पुलिस-प्रशासन यहां के जंगलों में छुपे नक्सली आंदोलनकारियों को फिलहाल खत्म करने में कामयाब नहीं हो सकी है. जंगली जानवरों के बीच जान हथेली पर रखकर रहने वाले नक्सलियों पर काबू पाना सत्ता के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. यहां सरकारें तो बदलती रहीं मगर नक्सली आतंक खत्म नहीं हुआ. पिछले लगभग पचास वर्षों से झुमरा पहाड़ न सिर्फ नक्सली आतंक का गढ़ बना हुआ है बल्कि नेपाल तक के नक्सलियों का ट्रेनिंग सेंटर भी बन चुका है. ये वही इलाका है जहां से नक्सल ट्रेनिंग लेने के बाद नेपाल के प्रचंड दहल ने वहां नक्सली आंदोलन को व्यापक रूप दिया और उसी आंदोलन के बल पर नेपाल के प्रधानमंत्री तक बन बैठे.

दरअसल, झुमरा पहाड़ में नक्सली चिंगारी 70 और 80 के दशक में भड़की थी. उस वक्त नक्सली ट्रेनिंग के लिए नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री प्रंचड दहल जंगल की पगडंडियों से गुजरते हुए यहां पहुंचे थे। उन्होंने यहीं के जंगलों में महीनों रात गुजारी थी. ये वो दौर था जब यहां कुछ सूदखोरों का आतंक फैला हुआ था. वो सूदखोर गरीबों और किसानों का शोषण करते थे और किसानों की सारी जिंदगी सूदखोरों का कर्ज चुकाने में ही निकल जाती थी. उस वक्त यहां आवागमन का एकमात्र साधन घोड़े ही हुआ करतेे थे. तब सड़कों केे नाम पर सिर्फ पगडंडियां ही हुआ करती थीं. उस दौर में सूदखोरी व शोषण से जूझ रहे झुमरा पहाड़ के ग्रामीणों के बीच नक्सलियों ने सेंधमारी कर अपनी पृष्ठभूमि तैयार कर खूनी खेल का आगाज किया।

90 का दशक आते-आते नक्सली संगठन सत्ता के साथ तमाम राजनीतिक दलों के लिए भी चुनौती बन गए। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि नक्सली संगठनों ने बिलकुल निचले स्तर से अपनी जड़ें जमानी शुरू कीं। नक्सली संगठनों को स्थानीय स्तर पर समर्थन पुलिस व सीआरपीएफ से भी कहीं अधिक है। नक्सलियों ने सबसे पहले आदिवासियों को बिचौलियों और तेंदूपत्ता ठेकेदार के विरुद्ध एकजुट किया। जिससे उनकी ताकत बढ़ी और वे पुलिस-प्रशासन के लिए चुनौती बन गए। पुलिस-प्रशासन हमेशा दुविधा में रहा है कि इसे कानून व्यवस्था का मामला माना जाए या सामाजिक-आर्थिक समस्या।

लाल आंतक को महिला एसपी तदाशा मिश्रा ने दी थी पहली बार चुनौती

झुमरा पहाड़ में लाल आंतक को पहली बार बोकारो की तत्कालीन महिला एसपी तदाशा मिश्रा ने चुनौती दी थी। पगडंडियों से पैदल तदाशा मिश्रा जवानों के साथ झुमरा पहाड़ चढ़ी थीं। इस दौरान दो बार नक्सलियों के साथ मुठभेड़ भी हुई थी। कई जवान हताहत भी हुए थे। इसके बाद झुमरा पहाड़ में सीआरपीएफ का स्थायी कैंप स्कूल में स्थापित किया गया। सीआरपीएफ कैंप को लेकर नक्सलियों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर विरोध किया। कैंप पर कई बार नक्सलियों ने हमले किए, कई जवानों को गोलीबारी में अपनी जान गंवानी पड़ी।
90 के दशक में अमूमन हर दिन पुलिस और नक्सलियों केे बीच मुठभेड़ होती थी. नक्सली अब बारूदी सुरंग बनाकर विस्फोट करने लगे थे. इसकी वजह से कई जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. हालांकि पुलिस भी पूरी शिद्दत से लाल आंतक का मुकाबला करती रही. वहीं नक्सलियों ने भी झुमरा पहाड़ से सीआरपीएफ कैंप को हटाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। नक्सलियों ने यहां से कैंप हटाने के लिए हर हथकंडा अपनाया, मगर सफल नहीं हुए। इसके उलट झुमरा पहाड़ की तलहटी रहावन में भी एक और सीआरपीएफ कैंप स्थायी तौर पर लगा दिया गया। जिसका श्रेय तत्कालीन एसपी अनिल पालटा को जाता है।
सीआरपीएफ के जवानों को मारने के लिए तालाब में नक्सलियों ने मिलाया था जहर

नक्सलियोें ने गांव के ग्रामीणों को एक बार फिर से विश्वास में लेकर तालाब के पानी में जहर डाला दिया था। लेकिन समय रहते सीआरपीएफ को पता चल गया, क्योेेंकि तालाब में जहर मिलाने के कारण वहां की मछलियां मर कर पानी की ऊपरी सतह पर आ गईं थीं। जिससे सीआरपीएफ जवान सतर्क हो गए थे। सीआरपीएफ के जवान उसी तालाब के पानी का इस्तेमाल करते थे।

नक्सली नवीन मांझी के सहपाठी रहे मिथिलेश उर्फ दुर्योधन की झुमरा पहाड़ में बोलती थी तूती

बाघमारा में कथित तौर पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने से पहले झुमरा पहाड़ में नक्सली नवीन मांझी के सहपाठी रहे मिथिलेश उर्फ दुर्योधन की तूती बोलती थी। वर्षों जेल में रहने के बाद वह फिर संगठन में सक्रिय हो गया। संगठन ने पारसनाथ व झुमरा पहाड़ जोन में संगठन को मजबूत करने के लिए सारंडा से वापस झुमरा पहाड़ व पारसनाथ पहाड़ जोन में उसकी पोस्टिंग कर दी। अभी तक इस मामले मेें मिथिलेश उर्फ दुर्योधन महतो अपने और संगठन के मंसूबों को अमलीजामा पहनाने में काफी हद तक सफल होता दिख रहा है। डेढ़ माह से झुमरा पहाड़ में मिथिलेश उर्फ दुर्योधन महतो अलग-अलग जगहों पर लाल आंतक के ज्वार को आगे बढ़ा रहा है और पुलिस उसके पीछे-पीछे उनके मंसूबे को कुचलने में लगी है। 15 दिन के अंतराल में यहां पर मिथिलेश उर्फ दुर्योधन महतो ने दो बड़ी घटनाओं को अंजाम देकर एक बार फिर पुलिस की नींद हराम कर दी है।

किसी पर एक करोड़ तो किसी पर 25 लाख का है ईनाम 

धनबाद जिला के तोपचांची प्रखंड के गेंद नावाडीह के एक साधारण परिवार से संबंध रखने वाला दुर्याेधन उर्फ मिथिलेश सिंह 70-80 के दशक में माओवादियों की विचारधारा से प्रेरित होकर संगठन से जुड़ा था। संगठन में जुडने के बाद उसने एक के बाद एक बड़ी-बड़ी घटनाओं को अंजाम देकर संगठन में अपनी जड़ें जमा लीं और शीर्ष पद पर आसीन हो गया। झुमरा पहाड़ में रहते हुए उसे माओवादी पूजा हेम्ब्रम से प्यार हो गया। प्यार की कीमत पूजा हेम्ब्रम को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

आज दुर्योधन पर एक करोड़ रुपए का ईनाम घोषित किया गया है. वहीं, अजय महतो, संतोष महतो और रणविजय महतो पर भी लाखों रुपए का ईनाम रखा गया है. घने जंगलों के बीच छुपे नक्सलियों को पुलिस आज तक नहीं पकड़ सकी है.

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