दिल्ली

सुरों की खनक से लॉकडाउन का सन्नाटा चीर रहे रास विहार के लिटिल स्टार

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली

कोरोना वायरस के खौफ ने लोगों को घरों में कैद होने को मजबूर कर दिया है. सबसे ज्यादा परेशानी उन बच्चों को हो रही जिन्हें हर पल स्कूल की छुट्टी का इंतजार होता था. इस बार बच्चों को स्कूल से छुट्टी तो मिल गई लेकिन सारा दिन घरों में कैद बच्चे बोर होने लगे हैं. इस सबके बीच दिल्ली के आईपी एक्सटेंशन स्थित रास विहार में रहने वाले कुछ बच्चों ने न सिर्फ अपनी बोरियत दूर करने का तरीका इजाद किया है बल्कि ये नन्हें सितारे पूरी सोसाइटी का भी मनोरंजन अपने घरों में रहकर ही कर रहे हैं. लॉक डाउन की खामोशी को इनकी स्वर लहरियां तोड़ रही हैं. इन बच्चों में आठ साल की नियति चित्रांश, 11 साल के शेष शिरोमणि और 14 साल के देवांश गोयल शामिल हैं. ये सभी बच्चे रोज शाम सात से आठ बजे के बीच अपने अपने घरों की बालकोनी में म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स के साथ आते हैं और संगीत की महफिल सजाते हैं. कोई कीबोर्ड प्ले करता है, कोई तबले पर थाप देता है तो कोई गिटार और  हारमोनियम के जरिए नए तराने छेड़ता है. इन मासूम सितारों की इस पहल को सोसाइटी के लोग काफी पसंद किया जा रहा है. सोसाइटी में ही रहने वाली दिव्या बताती हैं कि ये छोटे-छोटे बच्चे समाज को एक अच्छा संदेश दे रहे हैं साथ ही दूसरे बच्चों के लिए एक प्रेरणा भी बन रहे हैं. इसी तरह के छोटे छोटे इनिशिएटिव को अपनाया जाए तो लॉकडाउन के दौरान होने वाले खालीपन को दूर किया जा सकता है.

नियति

नियति अपनी इस पहल का श्रेय अपने टीचर्स को देती हैं. वह कहती हैं कि कीबोर्ड बजाने से उन्हें खुशी मिलती है. इसलिए वह इस खुशी को दूसरों के साथ बांटना चाहती हैं.

श
शेष

वहीं शेष कहते हैं कि दिमाग को रिलैक्स करने का सबसे अच्छा माध्यम तबला है. इसके जरिए हम कोरोना के ट्रॉमा से भी बाहर निकल सकते हैं.

देवांश गोयल

वहीं देवांश कहते हैं कि संगीत में जो असर है वह दवा में भी नहीं है. तो फिर हम दूसरों के चेहरों पर मुस्कान लाने के लिए इसका इस्तेमाल क्यों नहीं करें.

सोसाइटी में ही रहने वाली पूर्णिमा और अंजू गुलेरिया समेत अन्य लोग इन बच्चों की इस पहल की सराहना करते नहीं थकते. वह कहते हैं कि इन बच्चों का प्रयास निश्चित तौर पर सराहनीय और सुकून देने वाला है.

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