पंजाब

दस साल सड़कों पर किश्तियां चलवाते रहे स्वयंभू विकास पुरुष केडी भंडारी, समर्थकों ने करवा दी फजीहत, जानिए दलितों के इलाकों का दर्द?

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
जालंधर शहर के स्वयं भू विकास पुरुष केडी भंडारी के विकास की गाथा बड़ी दिलचस्प है. भंडारी ने जालंधर नॉर्थ हलके में इतना विकास कराया कि लोगों को किश्तियां चलाने के लिए नदियों तक जाने की जरूरत ही नहीं पड़ी. नदी खुद लोगों के घरों तक आ जाती थी और घर का सामान भी बहा ले जाती थी. हर साल बरसात में नॉर्थ हलके की सड़कें ही नदियों का रूप ले लेती थीं और यहीं किश्तियां चलने लगती थीं. माइक खोसला जैसे कांग्रेस नेता इस पर भी बाज नहीं आते थे और इन किश्तियों पर सवार होकर ही विरोध प्रदर्शन करते नजर आते थे. करते भी क्यों नहीं, किश्तियों पर चढ़कर किया गया प्रदर्शन अगले दिन अखबारों की सुर्खियां तो बटोरता ही था पार्टी के आला नेताओं के सामने उनका कद भी बढ़ाता था. माइक खोसला जहां किश्तियों पर प्रदर्शन करते थे तो वहीं पूर्व पार्षद बालकिशन बाली जैसे नेता हाथों में छतरी लेकर किशनपुरा की गलियों से जुगाड़ तंत्र से पानी सूखा तालाब की ओर निकालने की कवायद करते नजर आते थे.
ये हाल ज्यादातर उन्हीं दलितों के इलाकों का था जिन दलितों का मसीहा केडी भंडारी के समर्थक उन्हें बताया करते थे या यूं कहें कि खुलेआम आज भी अखबारों में झूठे बयान देकर बताने में लगे हैं.
दरअसल, शहर के एक प्रतिष्ठित अखबार में दिए गए बयान में भंडारी समर्थक और पार्षद के चुनावों में देसराज जस्सल से मुंह की खाने वाले नीरज जस्सल, गुरदयाल भट्टी, भूपिंदर कुमार आदि नेताओं कहा कि दलित बाहुल्य संतोखपुरा, लम्मा पिंड, जनता कॉलोनी, गुरु रविदास नगर, कबीर नगर, रामनगर, गांधी कैंप आदि इलाकों में विकास के काम कराए. ये वही इलाके हैं जो भंडारी के कार्यकाल के दौरान पानी में डूब जाया करते थे. यहां के लोगों की दुर्दशा को दूर करने के लिए भंडारी के लिए दस साल का वक्त भी कम पड़ गया. उस वक्त भंडारी के ये समर्थक कहां थे? उस वक्त दलितों का दर्द इन्हें क्यों नहीं दिया जब मेहनत मजदूरी कर पेट पालने वाले ये लोग दिनभर अपने घरों से पानी बाहर निकालते रहते थे. कई बार तो जब रात में बरसात होती थी तो यही दलित लोग अपने मासूम बच्चों को गोद में लेकर सारी रात बारिश खत्म होने के इंतजार में ही गुजार दिया करते थे. उन मांओं की सिसकियां भंडारी को क्यों नहीं सुनाई दीं? या फिर रात के सन्नाटे को चीरतीं मां की सिसकियों को सुनने के बाद भी भंडारी ने अनदेखा कर दिया और दस साल तक भंडारी ने उन बेबसों को तड़पने के लिए भगवान भरोसे छोड़ दिया. दस साल में बच्चे बड़े हो गए और मां की गोद में रात गुजारने की जगह वो भी किश्तियां चलाने लगे. शायद भंडारी के हलके की हालत देखकर ही सुखबीर बादल को पानी में बसे चलाने की प्रेरणा मिली होगी.
वैसे दलितों के नाम पर तो हमेशा से सियासत होती रही है और भंडारी समर्थक आज भी इससे बाज नहीं आ रहे. अगर ये सियासतदान दलितों का विकास नहीं कर सकते तो कम से कम झूठी पब्लिसिटी करके दलितों को अपमानित करने और उनका मजाक बनाने की शर्मनाक हरकत तो न करें. साथ ही शर्म आनी चाहिए ऐसे दलित नेताओं को जो अपनी ही बिरादरी के लोगों का निजी स्वार्थ के चलते सरेआम मजाक बनवाने में लगे हैं. ऐसे ही नेताओं की वजह से आज भी दलित समाज बदहाली में जिंदगी गुजारने को मजबूर है. अगर भंडारी ने वाकई इतना विकास कराया तो जनता ने उन्हें दो बार लगातार विधायक बनाने के बाद तीसरी बार रिकॉर्ड वोटों से पराजित क्यों किया? जिस लम्मा पिंड, कबीर नगर और संतोखपुरा जैसे इलाकों में विकास का दावा भंडारी गुट कर रहा है उन इलाकों में एक-दो बार नहीं बल्कि पिछले 15-20 वर्षों से अकाली-भाजपा गठबंधन का पार्षद क्यों नहीं बन सका? ज्यादा दूर न जाएं तो खुद गुरदयाल भट्टी और नीरज जस्सल में से कोई भी नेता कांग्रेस के देसराज जस्सल को चुनावी मैदान में पटखनी क्यों नहीं दे सके? ये भंडारी द्वारा किए गए विकास का नतीजा ही है जो गठबंधन के उम्मीदवारों की हार के रूप में पिछले करीब 15 वर्षों से सामने आ रहा है.
भंडारी को अगर वाकई चुनाव जीतना है तो सबसे पहले ऐसे चाटुकारों को दरकिनार करना होगा जो जनता को बेवकूफ समझते हैं और भंडारी की सरेआम फजीहत करवा रहे हैं. साथ ही अपने पीए के चंगुल से भी बाहर निकलें जो जनता की तकलीफ भंडारी तक पहुंचने ही नहीं देता और जनता की नजरों में भंडारी की छवि धूमिल होती जा रही है. अगर भंडारी के चमचे इसी तरह उनकी फजीहत करवाते रहे तो चुनाव जीतना तो दूर उन्हें टिकट तक के लाले पड़ जाएंगे.

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