नीरज सिसौदिया, जालंधर
नगर निगम जालंधर में आउटसोर्स पर भर्ती के नाम पर महाघोटाला उजागर हुआ है. इसमें निगम कमिश्नर कर्णेश शर्मा की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है. लगभग 270 आउटसोर्स कर्मचारियों की भर्ती के नाम पर करोड़ों रुपये के वारे न्यारे किये गए हैं. वहीं, कमिश्नर कर्णेश शर्मा नगर निगम में आउटसोर्स पर तैनात एक महिला कर्मचारी को लेकर विवादों में घिरते जा रहे हैं. इस कर्मचारी का नाम वंदना डालिया है जो पहले मेयर जगदीश राज राजा के कार्यालय के पास बैठती थी लेकिन जब उसकी गलत तरीके से तैनाती का मामला मीडिया की सुर्खियां बना तो उसे वहां से हटाकर ओएंडएम सेल में कर दिया गया. हैरानी की बात तो यह है कि मेयर जगदीश राजा ने वंदना डालिया के लिए स्पष्ट रूप से यह लिखकर दे दिया है कि निगम को इसकी सेवाओं की कोई आवश्यकता नहीं है और तत्काल प्रभाव से इसकी सेवाएं समाप्त कर दी जाएं. वंदना की सेवा समाप्त करने संबंधी फाइल भी तैयार हो चुकी है जिस पर मेयर मुहर लगा चुके हैं लेकिन निगम कमिश्नर कर्णेश शर्मा इस फाइल को दबाकर बैठ गए हैं. कई सप्ताह बीतने के बाद भी निगम कमिश्नर ने वंदना की फाइल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. इसके पीछे स्पष्ट कारण क्या है, निगम कमिश्नर वंदना पर इतने मेहरबान क्यों हैं? वह कौन सी मजबूरी है जिसने निगम कमिश्नर के हाथ बांध रखे हैं यह तो निगम कमिश्नर ही जानें लेकिन इस तरह से सरकारी पैसा एक आउटसोर्स कर्मचारी पर लुटाने से जनता में रोष बढ़ता जा रहा है. लोगों का कहना है कि एक ठेकेदार के चलते निगम कमिश्नर वंदना की सेवाएं समाप्त करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. बताया जाता है कि उक्त ठेकेदार के पास निगम कमिश्नर के कुछ ऐसे राज हैं जो खुल गए तो कमिश्नर की नौकरी तक जा सकती है. इसलिए कमिश्नर वंदना के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से कतरा रहे हैं. बता दें कि वंदना के पति हिमांशु पुरी को भी गलत तरीके से ही नियुक्ति दी गई है. हिमांशु पुरी सिर्फ ग्रेजुएट हैं जबकि उन्हें सिविल इंजीनियर के तौर पर तैनाती दी गई है.
बता दें कि नगर निगम घाटे में चल रही है इसलिए हर नगर निगम में कर्मचारियों की बजाए आउटसोर्स कर्मचारी लिए जा रहे हैं. इसी नियुक्ति में खेल किया जा रहा है. जालंधर नगर निगम में लगभग 270 आउट सोर्स एम्पलाई काम कर रहे हैं जिनमें अधिकतर महिलाएं हैं. इनमें से ज्यादातर वे महिलाएं हैं जो रसूखदारों की बहू-बेटियां हैं और घर में फ्री बैठी थीं. उन्होंने मात्र बीए या बीकॉम किया है. कंप्यूटर की उन्हें कोई जानकारी नहीं है. उन्हें डाटा एंट्री ऑपरेटर टाइपिस्ट लगवा कर 10 से 20000 के बीच वेतन दिया जा रहा है. इनमें अनु भगत और वंदना डालिया को तो टाइपिंग भी ठीक तरीके से नहीं आती. अनु भगत को निगम के एक अधिकारी के साथ टाइपिंग करने के लिए कुछ दिन लगाया गया था लेकिन उस अधिकारी ने अनु भगत से तौबा कर ली और खुद ही टाइपिंग करना बेहतर समझा जिसके बाद अनु को उक्त अधिकारी के कार्यालय से हटा दिया गया. वहीं वंदना डालिया को तो टाइपिंग का काम ही नहीं आता. इनकी नियुक्ति का मापदंड क्या है? इन्हें किस आधार पर तैनाती दी गई है, यह सिर्फ निगम कमिश्नर ही जानते हैं.
शहर के विभिन्न एमएलए, पार्षद और उनके रिश्तेदार या बिरादरी के लोग ही आउटसोर्स किए गए हैं. सूत्रों का दावा है कि इन लोगों से 6 महीने की एडवांस सैलरी लेकर उनको अपॉइंटमेंट लेटर दे दिया गया है. इनका न तो कोई साक्षात्कार लिया गया है और न ही कोई इंटरव्यू लिया गया. सीधे पैसा लेकर नियुक्ति दी गई है.
सर्विस रूल के मुताबिक, निगम कमिश्नर को एक एम्प्लाई को चाहे वह आउटसोर्स एम्प्लाई ही क्यों न हो, उसका सिविल अस्पताल से मेडिकल और संबंधित थाना क्षेत्र से पुलिस वेरिफिकेशन कराना अनिवार्य होता है. लेकिन सूत्र बताते हैं कि उक्त कर्मचारियों की ऐसी कोई भी रिपोर्ट नहीं ली गई है. इनमें से कुछ कर्मचारी ऐसे भी हैं जो सुबह साढ़े दस बजे आते हैं और शाम चार बजे चले जाते हैं. कई बार तो ये कर्मचारी लंच के बाद दफ्तर में नजर ही नहीं आते. बहरहाल, नॉन पीसीएस अफसर होने के बावजूद एक पूर्व मंत्री की मेहरबानी से पहले पीसीएस और बाद में आईएएस बने निगम कमिश्नर अब नगर निगम जालंधर में एकछत्र राज चला रहे हैं. उनकी मनमानी पर अंकुश लगाने वाला कोई नहीं है. सचिवालय में बैठे अधिकारियो में गहरी पैठ होने के कारण कर्णेश शर्मा की मनमानी चरम पर है.
इस संबंध में जब जालंधर सेंट्रल के विधायक राजिंदर बेरी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि निगम कमिश्नर को गलत तरीके से भर्ती किए गए कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से हटाने के निर्देश दिए गए हैं. अगर कमिश्नर ने कार्रवाई नहीं की है तो उनसे जवाब तलब किया जाएगा.
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