पंजाब

क्या जालंधर कैंट सीट पर इस बार दो शेरनियों में होगी जंग? जानिए क्या है वजह?

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
पंजाब में विधानसभा चुनाव भले ही डेढ़ साल बाद होने हैं लेकिन सियासतदानों ने चुनावी रणनीति बनाना अभी से शुरू कर दिया है. जालंधर की एक तरफ जहां अकाली दल ने अपनी युवा कार्यकारिणी की घोषणा हाल ही में की है वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने भी प्रदेश ईकाई घोषित कर दी है. जल्द ही जिला कांग्रेस का भी निजाम बदलने जा रहा है. इस बार कुछ ऐसे चेहरों को पार्टी में वरिष्ठ पदों पर जगह दी गई है जिनकी कल्पना तक नहीं की जा रही थी. ऐसा ही कुछ इस बार के विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिलेगा. खासतौर पर जालंधर की चारों विधानसभा सीटों की बात करें तो एक-दो चेहरों को छोड़कर अन्य सीटों पर नए चेहरे देखने को मिल सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो जालंधर कैंट विधानसभा सीट पर दो शेरनियों के बीच सियासी घमासान देखने को मिल सकता है. ऐसा इसलिए भी संभव है क्योंकि अकाली दल और कांग्रेस दोनों ही इस बार किसी नए चेहरे को मैदान में उतारने की तैयारी में हैं. ये दो चेहरे पुरुषों के भी हो सकते हैं और महिलाओं के भी. इस सीट पर दोनों दलों के पास सशक्त महिला उम्मीदवार हैं जो पार्टी के लिए ये सीट जीत सकती हैं. इनमें से एक हैं कांग्रेस की अरुणा अरोड़ा तो दूसरी हैं अकाली दल की परमिंदर कौर पन्नू.
दरअसल, अकाली दल से मक्कड़ की जगह अगर कोई नया उम्मीदवार मैदान में उतर सकता है तो उसमें पहला नाम परमिंदर कौर पन्नू का आता है. पन्नू कई बार पार्षद रहने के साथ ही अकाली दल महिला विंग की जिला प्रधान भी रही हैं. विवादों से उनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा. अकाली दल की महिला ईकाई को मजबूत बनाने में पन्नू ने अहम भूमिका निभाई है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि पन्नू के सौम्य व्यवहार के चलते हर कोई उन्हें बेहद पसंद भी करता है. पन्नू एक कुशल नेत्री होने के साथ ही पार्टी हाईकमान में भी अच्छी पैठ रखती हैं. पार्टी के अन्य अकाली नेताओं से भी उनके संबंध बेहद अच्छे हैं. पार्टी में उनका कभी कोई विरोध नहीं रहा. सुखबीर बादल से भी पन्नू परिवार की काफी नजदीकियां रही हैं. जालंधर के पिछले लगभग दो दशक के इतिहास में अकाली दल ने कभी किसी महिला को मैदान में नहीं उतारा. ऐसे में अगर इस बार यह सीट महिला को समर्पित की जाती है तो अकाली दल में एक नई परंपरा की शुरुआत होगी जो उसकी महिला हितैषी सोच को उजागर करेगी और महिला वोटरों को रिझाने में अहम भूमिका निभा सकती है.
दरअसल, महिला नेत्रियों को विधानसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलने की वजह से पार्टी की महिला विंग हमेशा हतोत्साहित होती रही है. यही वजह है कि अकाली दल ती महिला विंग की सदस्य महिलाएं उस उत्साह से पार्टी को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका नहीं निभा पा रहीं जिस उत्साह से वे निभा सकती हैं. सोई हुई पार्टी को एक्टिव करने के लिए पार्टी अगर इस सीट से पन्नू जैसी महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारती है तो पार्टी की अन्य महिला पदाधिकारियों का भी हौसला बढ़ेगा और पुरुषों की तरह उनमें भी एक प्रतिस्पर्धा देखने को मिलेगी. जब पदाधिकारियों के बीच प्रतिस्पर्धा होगी तो पार्टी खुद ही मजबूत हो जाएगी. अगर पार्टी महिलाओं को मौका नहीं देगी तो महिलाएं निष्क्रिय हो जाएंगी तो और कल को अगर भाजपा के साथ पार्टी का गठबंधन टूटता है तो अकाली दल को जालंधर शहर में दम तोड़ने से कोई नहीं रोक पाएगा. जिस तरह पार्टी का हर कार्यकर्ता किसी न किसी ईनाम की चाहत में दिन रात सेवा करता है उसी तरह महिला विंग की पदाधिकारियों को भी ईनाम की चाहत होती है. पन्नू को मैदान में उतारकर अकाली दल आधी आबादी को एक हसीन ख्वाब तो दिखा ही सकता है.
इसी तरह कांग्रेस की ओर से अरुणा अरोड़ा भी इस सीट के लिए परफेक्ट चेहरा हो सकती हैं. अरुणा अरोड़ा की गिनती शहर की उन चुनिंदा नेत्रियों में होती है जो व्यवहार से तो शालीन हैं लेकिन बात जब जनता की समस्याओं की आती है तो सदन की मेज पर चढ़कर अपनी बात कहने का दम भी रखती हैं. पूर्व मेयर सुनील ज्योति के कई बार सदन में पसीने छुड़ाने वाली अरुणा अरोड़ा भी कई बार लगातार पार्षद बन चुकी हैं. कुछ पार्टी नेताओं ने अरुणा अरोड़ा को कमजोर करने के लिए रोहन सहगल को मोहरा जरूर बनाया लेकिन अरुणा का कद इतना बड़ा था कि रोहन सहगल उनके आगे बौने साबित हो गए. दरअसल, जालंधर कैंट में कांग्रेस की हालत इस बार ठीक नहीं है. इसके दो कारण हैं. पहला यह कि वर्तमान विधायक परगट सिंह कांग्रेस में ही रहेंगे या फिर से दल बदलेंगे यह ठीक तरह से कहा नहीं जा सकता. क्योंकि जिस नवजोत सिंह सिद्धू की बदौलत परगट ने विधानसभा की सीढ़ियां चढ़ी थीं अब वो सिद्धू साहब किस पाले से बैटिंग करेंगे यह फिलहाल उन्हें भी नहीं पता. दूसरा कारण यह कि बलराज ठाकुर जैसे दिग्गज नेता भी परगट से नाराज बताए जा रहे हैं. अरुणा अरोड़ा भी परगट से नाराज बताई जा रही हैं. ये दोनों ही जनप्रतिनिधि तो परगट के विरोधी हैं ही, जगबीर बराड़ भी परगट के राहों में कांटे बिछाए बैठे हैं. पिछली बार कैप्टन अमरिंदर सिंह भरी सभा में बराड़ को कैंट से प्रत्याशी घोषित भी कर चुके थे लेकिन परगट सीधा हाईकमान से टिकट ले आए थे. इसका बदला इस बार बराड़ भले ही लें या न लें पर कैप्टन अमरिंदर सिंह जरूर लेंगे. यहां पर अरुणा अरोड़ा की दावेदारी थोड़ी मजबूत हो जाती है क्योंकि खुद कैप्टन अमरिंदर सिंह सार्वजनिक तौर पर अरुणा अरोड़ा को काम करने में नंबर एक पार्षद का तमगा दे चुके हैं. अरुणा मेयर पद की प्रबल दावेदार भी थीं लेकिन यहां भी वह सियासत की शिकार हो गईं. अरुणा के पति मनोज अरोड़ा पार्टी के आला नेताओं में गहरी पैठ भी रखते हैं और अरुणा जनता के बीच जमीनी नेत्री के रूप में लोकप्रिय हैं. दोनों का यह कॉम्बिनेशन उनके दावे को मजबूत करता है. रोहन सहगल को छोड़ दें तो पार्टी के बाकी नेता अरुणा को बेहद पसंद भी करते हैं. ऐसे में संभव है कि इस बार जालंधर कैंट सीट से कांग्रेस अरुणा अरोड़ा को मैदान में उतार दे.
अगर ऐसा होता है तो इस बार कैंट की सियासी जंग दो शेरनियों के बीच देखने को मिलेगी. ऐसे में इस सीट पर मुकाबला बेहद दिलचस्प होगा.
बहरहाल, अंतिम फैसला तो हाईकमान को करना है और आने वाले डेढ़ सालों में सियासी ऊंट कई करवट बदलेगा. लेकिन सियासत की इन दोनों शेरनियों को नजरअंदाज करना हाईकमान के लिए आसान नहीं होगा.

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