बोकारो थर्मल। रामचन्द्र अंजाना
भाद्रपद मास में भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक लोकपर्व करमा को लेकर बेरमो कोयलांचल के ग्रामीण इलाके में श्रद्धा-उल्लास का माहौल अब चरम पर पहुंच चला है। शुक्रवार को संयोत तथा शनिवार को कर्म एकादशी को रात्रि में अखरों के चारों ओर जावा तथा बीच में करम डाली के समक्ष व्रती महिलाएं व किशोरी-युवतियां मुख्य पूजा में भाग लेंगी। कर्म व धर्म नामक दो भाइयों की कथा का श्रवण किया जायेगा। यह पर्व कर्म ही धर्म का संदेश भी देता है। वहीं रविवार को प्रात: करम डाली का विसर्जन के साथ इस पर्व का समापन हो जायेगा।
बेरमो अनुमंडल के बेरमो, चन्द्रपुरा, नावाडीह, गोमिया के अलावा पेटरवार प्रखंड के ग्रामीण अंचलों में इस पर्व का आयोजन होता आ रहा है। हालांकि इस बार कोरोना काल में इस पर्व के प्रति श्रद्धा तो वही है परंतु उत्साह में जरूर कमी आई है। बीते रविवार से ही यह पर्व शुरू है। जब किशोरी-युवतियां व महिलाएं बांस की बनी छोटी डाली लेते हुए तालाब-नदी व जोरिया में स्नान के बाद उसी डाली में बालू भर कर करमा का गीत गाते हुए वापस आई। गांव में अपने-अपने घर जाने के पूर्व अखरा में सामूहिक रूप से करमा गीत व नृत्य किया गया। श्री गणेश, करम देव समेत कई देवी-देवताओं का आह्वान किया गया।
इस पर्व के बारे में अनिता, चमेली, पूनम, बंसती आदि किशोरियां कहती हैं कि यह महापर्व प्रकृति से संबंधित है। करम पेड़ के डाल की पूजा इसके समापन पर की जाती है। प्रारंभिक दिनों में यह जनजातियों का महापर्व था। लेकिन इसके अहमियत को देख सारे समाज ने इसे अपना लिया। बहन अपने भाई के लिए यह पर्व मनाती है। इसके लिए व्रत किया जाता है। इसे भाई-बहन के अटूट स्नेह का प्रतीक भी माना जाता है।
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