डा. अनीस बेग बरेली की सियासत और चिकित्सा जगत का जाना पहचाना चेहरा हैं. किसान परिवार में जन्मे डा. अनीस ने वर्ष 2012 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा था. डा. अनीस खुद बच्चों के विशेषज्ञ डाक्टर भी हैं. एक सफल डॉक्टर होने के बावजूद उन्होंने राजनीति को क्यों चुना? धर्म की राजनीति को वह किस नजरिये से देखते हैं? किसान आंदोलन को लेकर उनकी क्या राय है? अगले विधानसभा चुनाव में उनके मुद्दे क्या होंगे? संतोष गंगवार की जीत की मुख्य वजह वह किसे मानते हैं? डा. बेग की नजर में बरेली की मुख्य समस्याएं क्या हैं? क्या वह आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे? ऐसे कई मुद्दों और निजी जिंदगी पर उन्होंने खुलकर बात की. पेश हैं डा. अनीस बेग के साथ नीरज सिसौदिया की बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : आपका बचपन कहां बीता? पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या रही?
जवाब : मैं गांव से ताल्लुक़ रखता हूं. किसान का बेटा हूं. मेरे पिता किसानी करते थे. पंडेरा फार्म बरेली के पास में. प्राइमरी एजुकेशन गांव के जूनियर हाई स्कूल से ली. गांव से 15 किमी दूर बहेड़ी से यूपी बोर्ड से हाईस्कूल किया. रोजाना अप-डाउन करता था. खेती में भी मदद करता था पापा की. फिर बरेली से इंटर एफआर इस्लामियां कॉलेज से किया. बरेली कॉलेज से बीएससी की. फिर लखनऊ गया. वहां कोचिंग की. सीबीएसई का ऑल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट क्वालीफाई किया. 2002 में मैं एमबीबीएस के लिए सेलेक्ट हुआ. गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया. फिर लखनऊ से इंटर्नशिप केजीएमसी से किया. फिर आगरा से डीसीएच किया. फिर दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल से सीनियर रेजिडेंंसी की. उसके बाद 2004 में बरेली आकर अपना हास्पिटल बेग हॉस्पिटल एंड फहमी मैैैटरनिटी सेेंटर शुरू किया. जिसमेें आईसीयू, एनआईसीयू और डायलिसिस की सुविधा भी उपलब्ध है. अब हमारा हॉस्पिटल एक अलग पहचान बना चुुका है. वर्ष 2004 से हम इसे सफलतापूर्वक संचालित कर रहे हैं.
सवाल : परिवार में आप पहले डॉक्टर हैं. कितना संघर्ष करना पड़ा?
जवाब : अब तो मेरे परिवार में 7-8 डॉक्टर हैं पर मैं परिवार का पहला डॉक्टर था. मैंने बर्तन भी धोये, खुद खाना बनाया है. हाईस्कूल में भी, इंटर में भी और बीएससी में भी. बहुत मेहनत की है. जिस जूनियर हाई स्कूल से मैंने पढ़ाई की है वहां से शायद ही कोई एमबीबीएस हुआ हो. अब तो हमारा बिजनेस भी है. ट्रांसपोर्ट का बिजनेस भी है. हमारे बड़े भाई तीन बार विधायक भी रहे. पहले यह सब नहीं था.
सवाल : राजनीति में कैसे आना हुआ?
जवाब : डॉक्टर होने के साथ ही मैं समाजसेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय रहता था. इस तरह लोगों से एक भावनात्मक जुड़ाव होता चला गया. मायावती जी की सरकार थी तो मुझे मेयर का टिकट दिया गया लेकिन वो पोस्ट पोन हो गया. लोग चाहते थे मैं चुनाव लड़ूं और वर्ष 2012 में मैं बहुजन समाज पार्टी से शहर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा. मेरी जिंदगी का यह पहला चुनाव था जो हिन्दू-मुस्लिम कर दिया गया जिसके चलते मैं चुनाव हार गया. लेकिन मुझे शहर का बच्चा-बच्चा जान गया. मुझे 22 हजार वोट मिले थे. 2017 में हम सपा में आ गए.
सवाल : आप इतने समय से शहर को देख रहे हैं. बरेली के विकास को आप किस नजरिये से देखते हैं?
जवाब : बातें तो बहुत होती हैं लेकिन जमीनी स्तर पर जो विकास होना चाहिए था वो नहीं हुआ. बीजेपी सरकार ने कोई काम नहीं किया उसने अखिलेश जी के कामों को ही आगे बढ़ाया है. बरेली से बदायूं का हाईवे अखिलेश जी ने बनवाया, बरेली से नैनीताल हाईवे भी अखिलेश जी ने बनवाया. ये तो रही स्टेट हाईवे की बात. ये सब बन गए हैं. अब नेशनल हाईवे का हाल देख लीजिए आप. अगर आप बरेली से शाहजहांपुर चले जाइये तो पहले आपको सोचना पड़ेगा कि जाऊं या न जाऊं, कहीं सात-आठ घंटे जाम में न फंस जाएं. सात साल में बीजेपी सरकार नहीं सुधार पाई नेशनल हाईवे.
दूसरी ओर बरेली की बात कर लीजिए. बरेली में शहामतगंज फ्लाई ओवर अखिलेश जी की देन है, आईवीआरआई पुल भी अखिलेश यादव की ही देन है. अगर शहामतगंज वाला फ्लाई ओवर नहीं बनता तो कितनी समस्या होती. कोई नया प्रोजेक्ट नहीं लाई है भाजपा सरकार. आज पूरा शहर जाम से जूझ रहा है. शहर की मुख्य समस्या जाम है. बरेली के विकास को जाम ने जाम कर दिया है.
दूसरी यहां बिजली की बहुत समस्या है. आए दिन फॉल्ट होते हैं और लोग परेशान हो रहे हैं. मैं चाहता हूं कि बिजली लाइनें अंडरग्राउंड की जानी चाहिए.

सवाल : नगर निगम के दायरे में आने वाले कुछ इलाकों में विकास हुआ है लेकिन कुछ इलाके एकदम पिछड़े हैं. इसकी मुख्य वजह आप किसे मानते हैं?
जवाब : नगर निगम में भेदभाव की राजनीति हो रही है. पूरे बरेली का एक जैसा विकास होना चाहिए. नगर निगम में सिर्फ सिविल लाइंस या राजेंद्र नगर जैसे इलाके ही नहीं आते बल्कि गुमदापुर, बिदौलिया, परतापुर, नंदौसी जैसे इलाके भी हैं. वहां का हाल देखिये जानवरों से भी बदतर जिंदगी गुजार रहे हैं लोग. गांव से भी बदतर इलाके हैं. गांव में तो फिर भी सीसी रोड हैं, यहां तो बहुत बुरा हाल है. आप पूरा शहर चमकाइये सिर्फ राजेंद्र नगर और सिविल लाइंस में ही रोड पर रोड डालने से पूरे बरेली का विकास नहीं होगा. अगर गांव में भी जाएं तो लगे कि बरेली में आ गए हैं. ऐसा बरेली होना चाहिए. हर वार्ड का समान विकास होना चाहिए.
सवाल : रोजगार और औद्योगिक विकास को लेकर क्या कहेंगे. क्या बरेली में अपेक्षित उद्योग विकसित हो सके?
जवाब : उद्योग किसी भी अर्थ व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी होते हैं और बरेली की रीढ़ की हड्डी टूट चुकी है. बरेली में औद्योगिक विकास के लिए बेहतर अवसर हैं लेकिन सरकार की अनदेखी के चलते यहां नए उद्योग आना तो दूर जो पुराने उद्योग हैं वो भी बंद होते जा रहे हैं. यहां कॉर्पोरेट सेक्टर आना चाहता है लेकिन सरकार उन्हें सुविधाएं ही मुहैया नहीं करा पा रही है. रबर फैक्टरी सहित कई फैक्ट्रियां बंद हो गईं. जब उद्योग नहीं आएंगे तो रोजगार कैसे मिलेगा? रोजगार पैदा कहां से हो यह सरकार को सोचना होगा. सरकारी भर्तियां आती हैं तो उसमें घोटाले के आरोप लगते हैं और पचास केस लग जाते हैं और भर्तियां लटकी रहती हैं. सरकार को पूरी मुस्तैदी से भर्तियां करनी चाहिए. अगर सरकार चाहे तो सब कुछ संभव है. पहले से ही ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए ताकि रोजगार के अवसर विवादों की भेंट न चढ़ें.
सवाल : आप किसान परिवार से हैं और वर्तमान में देश का किसान सड़कों पर है? क्या आप मानते हैं कि सरकार वाकई किसानों के साथ नाइंसाफी कर रही है?
जवाब : देखिए, सरकार कृषि कानूनों को किसानों पर जबरदस्ती थोपना चाहती है. अगर मुझे कोई चीज चाहिए और सरकार मुझे कुछ देना चाहती है तो पहले मुझसे पूछना चाहिए कि मुझे क्या चाहिए. जबरदस्ती कोई चीज थोपने से मेरी जरूरत पूरी नहीं होगी. ऐसा ही सरकार ने किसानों के साथ किया. सरकार किसानों के लिए कानून तो ले आई लेकिन किसानों से ही बात नहीं की. अगर सरकार किसानों को राहत दिलाना चाहती थी तो पहले उनसे बात करती. फिर ऐसा कानून लाती जिससे किसानों को लाभ होता. इतनी जल्दी क्या थी कानून लाने की. कोरोना काल में पहले से ही इतनी परेशानियां थीं, अब और परेशानी बढ़ा दी सरकार ने. आप पहले व्यवस्था को सुधार सकते थे. आज किसान 1800 रुपये प्रति क्विंटल का धान 11 सौ रुपये में बेचने को मजबूर है. उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य तक नहीं मिल पा रहा है. आप इस व्यवस्था को सुधारने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहे.

सवाल : यूपी में पंचायत चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में अगर कृषि कानून किसान विरोधी होगा तो सरकार को ही इस चुनाव में नुकसान होगा. ऐसे में भाजपा क्यों चाहेगी कि उसे नुकसान हो?
जवाब : भाजपा सरकार कोई भी कानून बिना सोचे समझे बनाती है और उसे जनता पर थोप देती है. सरकार नोट बंदी कानून लाई. क्या जरूरत थी. जिस दिन से नोटबंदी हुई है उस दिन से कमर टूट गई लोगों की. सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों और मध्यम वर्ग को हुआ. कई लोगों को जान तक गंवानी पड़ी लाइनों में खड़े होकर. अमीरों का तो काम हो गया पर गरीब मारा गया. इसी तरह जीएसटी लाई तो व्यापार चौपट हो गया. इसी तरह मिक्सोपैथी वाला कानून ले आई. पंचायत चुनाव की बात करें तो किसान खुश नहीं है, वह बहुत ज्यादा परेशान है. गन्ना मूल्य आज तक नहीं मिला, धान का मूल्य अभी तक नहीं मिला, किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य से आधा ही मिला है. किसान बहुत परेशान है और निश्चित तौर पर पंचायत चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ेगा.
सवाल : वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव हैं. आप किन मुद्दों पर चुनाव लड़ेंगे?
जवाब : सबसे पहले हम किसान के मुद्दे पर लड़ेंगे क्योंकि किसान ही है जो देश की रीढ़ है और उसे आगे ले जा सकता है. उद्योग के मुद्दे पर लड़ेंगे, बिजली के मुद्दे पर लड़ेंगे, जाम के मुद्दे पर लड़ेंगे, हेल्थ, शिक्षा के मुद्दे पर लड़ेंगे, बहुत मुद्दे हैं हमारे पास. हर मोर्चे पर फेल है यह सरकार. अभी तो शुरुआत है, समाजवादी पार्टी निकली है सड़कों पर. अभी तो लंबी लड़ाई बाकी है.
सवाल : अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखी जा चुकी है. क्या आपको लगता है कि इसका असर चुनाव पर पड़ेगा? धर्म की राजनीति को आप कितना सही मानते हैं?
जवाब : मेरे हिसाब से धर्म की राजनीति नहीं होनी चाहिए बिल्कुल भी. धर्म और राजनीति को एकदम अलग-अलग रखना चाहिए. मुझे दुख है कि हमारा देश अगर पीछे है तो उसकी वजह धर्म की राजनीति ही है. क्योंकि राजनीति में जब धर्म आ जाता है तो विकास बहुत पीछे छूट जाता है.
सवाल : ये कहा जाता है कि जब समाजवादी पार्टी सत्ता में आती है तो वह मुसलमानों को ज्यादा फेवर करती है?
जवाब : ऐसा बिल्कुल नहीं है. समाजवादी पार्टी मुसलमानों को उनका हक दिलाती है. वो डिसक्रिमिनेट नहीं करती है सबको साथ लेकर चलती है. जब विधानसभा में आपके लोग 80 प्रतिशत होंगे तभी आप मानेंगे कि मुसलमानों को फेवर करती है लेकिन आप ज्यादा से ज्यादा बीस प्रतिशत मुसलमान लड़ाएंगे तो फिर मुसलमानों का फेवर कैसे हो गया. भाजपा से पूछिये कि उसने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया. पूरे प्रदेश में एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया तो भेदभाव तो भाजपा कर रही है. समाजवादी पार्टी समाजवाद से बनी है जिसका मतलब सबको साथ लेकर चलना है.
सवाल : बरेली में आपके अनुसार विकास नहीं हुआ, कई मुद्दे अभी भी बरकरार हैं. अगर बरेली में विकास नहीं हुआ तो फिर संतोष गंगवार पिछले 40 वर्षों से लोकसभा का चुनाव कैसे जीतते आ रहे हैं?
जवाब : देखिये ये भारतीय राजनीति की विडम्बना है कि जहां धर्म और जाति की राजनीति आ जाती है तो वहां विकास के मुद्दे पीछे रह जाते हैं. मैं संतोष जी की जीत का कारण इसी को मानता हूं. मैं ये नहीं कहता कि संतोष जी ने कुछ भी नहीं किया किया बरेली के लिए लेकिन जितना वह कर सकते थे उतना नहीं किया. दो बार वह केंद्रीय मंत्री रहे हैं लेकिन बरेली को जिस स्तर पर पहुंचा सकते थे उस स्तर पर उन्होंने नहीं किया. बरेली एक अहमदाबाद जैसा हो सकता था लेकिन नहीं हो पाया.
सवाल : जब संतोष जी धर्म और जाति की राजनीति के दम पर चालीस साल से चुनाव जीतते आ रहे हैं तो आप कैसे उम्मीद करते हैं कि आप विकास के मुद्दों पर चुनाव जीत जाएंगे?
जवाब : देखिये सूरज अगर उगता है तो ढलता भी है. ऐसा नहीं है कि रात में भी सूरज निकलता रहे. अब लोगों को समझ में आ गया है कि धर्म और राजनीति का कोई औचित्य नहीं है. विकास ही सर्वोपरि है.
सवाल : अगला विधानसभा चुनाव आप किस सीट से लड़ना चाहेंगे?
जवाब : मैं विधानसभा चुनाव नहीं लड़ूंगा. अपने भाई साहब सुल्तान बेग जी को लड़ाऊंगा. हम समाजवादी पार्टी के सच्चे सिपाही हैं और एक सिपाही की तरह ही चुनाव लड़ेंगे.
सवाल : क्या आपको नहीं लगता कि आपकी तरह पढ़े-लिखे लोगों को भी चुनाव लड़ना चाहिए?
जवाब : जी बिल्कुल आना चाहिए. अगर अध्यक्ष जी का आदेश होगा तो जरूर चुनाव लड़ेंगे. और जरूरी नहीं कि विधानसभा चुनाव ही लड़ें. आगे और चुनाव हैं. मेयर का चुनाव भी लड़ सकते हैं. शहर का विकास करेंगे मेयर बनकर.