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अतिक्रमण के नाम पर उजाड़े जा रहे गरीब, घोड़े बेच कर सो रहे सपाई, बसपाई और कांग्रेसी, पहली बार इतना लाचार दिख रहा विपक्ष, ऐसी टीम के सहारे तो सीएम नहीं बन पाएंगे अखिलेश या मायावती  

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नीरज सिसौदिया, बरेली
मजबूत विपक्ष लोकतंत्र की रीढ़ होता है लेकिन बरेली में लोकतंत्र रीढ़ विहीन हो चुका है. कमजोर और बेईमान नेतृत्व के चलते विपक्षी दल आज गरीबों के हक की आवाज तक उठाने से भी घबरा रहे हैं. कुछ मामलों में आंदोलन के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है और कई मुद्दों पर तो खानापूर्ति भी नहीं की जा रही. आज अतिक्रमण हटाओ अभियान के नाम पर गरीबों को उजाड़ा जा रहा है लेकिन अमीरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. भाजपा के मेयर उमेश गौतम और नगर निगम प्रशासन एकतरफा कार्रवाई करवा रहे हैं लेकिन विपक्षी दलों का एक भी नेता खुलकर इस कार्रवाई का विरोध करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहा.
बता दें कि लोकतंत्र को सही तरीके से संचालित करने के लिए एक मजबूत विपक्ष का होना जरूरी है. विपक्ष सक्रिय न हो तो सरकारें तानाशाही पर उतर आती हैं. यही वजह है कि एक ऐसे विपक्ष की आवश्यकता सदैव रहती है जो जनहित के मुद्दों पर जनता की आवाज बुलन्द कर सके लेकिन बरेली में किसी भी प्रमुख विपक्षी दल का कोई भी नेता गरीबों के हक की लड़ाई लड़ने को आगे नहीं आ रहा. वहीं मेयर डा. उमेश गौतम और अफसरशाही की लड़ाई में बेचारे कुतुबखाना और आसपास के बाजारों के रेहड़ी फड़ी वाले पिस रहे हैं. कभी खुद कुतुबखाना ओवरब्रिज की वकालत करने वाले मेयर अब पुल निर्माण का विरोध कर रहे हैं और स्मार्ट सिटी के अफसर इसे जनहित का कदम करार दे रहे हैं. प्रशासन का मानना है कि अगर यह पुल बनता है तो जाम के झाम से निजात मिल जाएगी. वहीं मेयर का मानना है कि अगर अतिक्रमण हटा दिया जाए तो जाम की समस्या से निजात मिल जाएगी और पुल निर्माण की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. इसलिए वह अतिक्रमण हटाने के नाम पर बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था किए उजाड़ना चाहते हैं. अब सवाल ये उठता है कि अगर रेहड़ी फड़ी वालों को अतिक्रमण के नाम पर हटा दिया जाएगा तो उनकी रोजी रोटी कैसे चलेगी? जब नगर निगम का वेंडिंग जोन ऐसी जगह बनाया जा रहा था जहां दुकानदारी चलाना नामुमकिन है तो उस वक्त मेयर उमेश गौतम कहां सो रहे थे? अब खुद को व्यापारियों का हितैषी बताने वाले मेयर ने उस वक्त इन बेबस गरीबों के बारे में क्यों नहीं सोचा? अब अतिक्रमण के नाम पर जिन रेहड़ी फड़ी वालों के सामान और ठेले जब्त किए जा रहे हैं वे दिनभर में इतना भी नहीं कमा पाते हैं कि अपने लिए दूसरा सामान ही खरीद सकें, ये बेबसी न तो उमेश गौतम को दिखाई दे रही है और न ही विधायकों, सांसदों को. सपा, बसपा, कांग्रेस जैसे दलों के नेता तो बस मूकदर्शक बने हुए हैं. वहीं प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नेता भी बयानबाजी से आगे नहीं बढ़ पाए हैं. न सपा के जिला अध्यक्ष अगम मौर्या और महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी इनके समर्थन में सड़क पर उतरे और न ही कांग्रेस जिला अध्यक्ष अशफाक सकलैनी और महानगर अध्यक्ष अजय शुक्ला जैसे नेताअों ने गरीबों की आवाज उठाना सही समझा. अत: विपक्ष गरीबों को इंसाफ दिलाने में कोई भूमिका अदा करेगा यह तो भूल ही जाएं. हैरानी की बात तो यह है कि ऐसी कायर टीम के सहारे अखिलेश यादव और मायावती जैसे नेता मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं. प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ऐसे कमजोर कांग्रेसियों के दम पर प्रदेश में कांग्रेस को दोबारा जीवंत करने की गलतफहमी बिल्कुल न पालें. विपक्षी नेताओं की वर्तमान स्थिति बताती है कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी फैसला एकतरफा होगा.
दरअसल, अब वो दौर नहीं रहा जब नेताओं में जनता के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा होता था. जब नेता अपनी जान पर खेल कर सत्ता पक्ष की गलत नीतियों का खुलकर विरोध किया करते थे. वे न तो सत्ता की लाठियां खाने से घबराते थे और न जेल जाने का डर उनके रास्ते रोक पाता था. वक्त के साथ नेताओं की सोच भी बदल चुकी है और नेता अब बिजनेसमैन हो गए हैं. विपक्ष अब कारोबार में जुट गया है. सरकार चाहे किसी की भी आए इन कारोबारियों का कारोबार चलता रहता है. कोई भूमाफिया बनकर बैठा है तो कोई सत्ता धारियों का ही दलाल बन बैठा है. ऐसे में गरीबों और असहायों की लड़ाई कौन लड़ेगा. विपक्ष की इसी नाकामी ने आम आदमी पार्टी को जन्म दिया और जनता ने भी उसे सिर माथे पर लिया. बरेली में फिलहाल आम आदमी पार्टी ने दस्तक दी है लेकिन अभी कुनबा छोटा है और बड़े आंदोलन की उम्मीद करना बेमानी होगा. लेकिन उस विपक्ष को आज मंथन करने की आवश्यकता है जो कभी सत्ता में रहा और दोबारा सत्ता हासिल करने का सपना देख रहा है. इस वक्त गरीबों और बेबसों को उनकी जरूरत है. अत: एक सजग राष्ट्र प्रहरी की भूमिका निभाएं. आपसी मतभेद भुलाकर जनहित की सोचें.

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