नीरज सिसौदिया, बरेली
विधानसभा का चुनावी घमासान भले ही एक साल बाद हो लेकिन सियासी मोहरें अभी से अपनी चाल चलने लगी हैं. नाथ नगरी में इसे लेकर शह-मात का खेल तेज हो गया है क्योंकि विधानसभा के महासंग्राम से पहले अपनों से संग्राम जो जीतना है. टिकट की टिकटिक तेज हो गई है और हर कोई अपनी-अपनी गोटियां सेट करने में लगा है. बरेली कैंट 125 विधानसभा सीट इस बार भाजपा खेमे में सबसे हॉट सीट बनी हुई है. इसकी वजह पूर्व मंत्री और सिटिंग विधायक राजेश अग्रवाल हैं. कैंट सीट भाजपा की सुरक्षित सीट मानी जाती है. जब से कैंट विधानसभा सीट अस्तित्व में आई तब से राजेश अग्रवाल ही यहां से विधायक बनते आ रहे हैं. राजेश अग्रवाल पहले शहर विधानसभा सीट से भी विधायक रहे. हाल ही में उन्हें मंत्री पद से हटाकर संगठन में राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पद की अहम जिम्मेदारी दी गई है. साथ ही उनकी उम्र भी 75 प्लस हो चुकी है. अब उनका चुनाव लड़ना मुश्किल है. यही वजह है उनकी सियासी विरासत के लिए घमासान तेज हो गया है. कई दावेदार इस सीट पर नजरें जमाए बैठे हैं. इनमें पहला नाम राजेश अग्रवाल के सुपुत्र मुनीष अग्रवाल का है. मुनीष राजेश अग्रवाल के सुपुत्र होने के साथ ही राजनीति में सक्रिय भी हैं. पिता का काम भी संभालते रहे हैं लेकिन पिता का सियासी कद इतना बड़ा रहा कि बेटे का वजूद ही कहीं गुम हो गया. मुनीष की पहचान बस राजेश अग्रवाल के बेटे तक ही रह गई. अपनी अलग पहचान बनाने में मुनीष नाकाम रहे हैं. उन्हें आज भी राजेश अग्रवाल के बेटे के रूप में ही जाना जाता है, मुनीष की अपनी कोई भी उपलब्धि नजर नहीं आती. राजेश अग्रवाल चाहते हैं कि उनकी सियासत की विरासत उनका बेटा मुनीष ही संभाले मगर परिवाद वाद के नाम पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का माखौल उड़ाने वाली भाजपा के लिए मुनीष को विधानसभा चुनाव के मैदान में उतारना नामुमकिन सा लगता है. खास तौर पर तब जबकि राजेेश अग्रवाल खुद संगठन में इतने जिम्मेदार पद पर हैं और उनका बेटा अपना सियासी वजूद स्थापित करने का प्रयास कर रहा है. मुनीष को अभी अपना सियासी कद बढ़ाने में वक्त लगेगा. इस बार तो उन्हें यह सीट मिलना मुश्किल लगता है.
इस दौड़ में दूसरा नाम आता है मेयर डा. उमेश गौतम का. बरेली के धन कुबेरों में शुमार उमेश गौतम मेयर का टिकट भी सबको हैरान करके ले आए थे. इसके लिए उन्होंने कौन सा तीर चलाया ये तो वही जानें पर हालत ऐसी हो गई थी कि उनके चुनाव के लिए खुद मुख्यमंत्री को बरेली आना पड़ा था. इतना ही नहीं भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल तक को स्थानीय नेताओं का विरोध झेलना पड़ा था. उमेश गौतम अबकी बार विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं लेकिन जिन मानदंडों पर विधानसभा का चुनाव होता है उस पर मेयर खरे उतरते नजर नहीं आ रहे. दरअसल, कैंट विधानसभा सीट पर बनिया और मुस्लिम वोटों की तादाद निर्णायक है. मेयर उमेश गौतम न तो मुस्लिम हैं और न ही बनिया. ऐसे में उमेश गौतम को उतारना पार्टी को महंगा पड़ सकता है. दूसरी वजह यह है कि घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे मेयर के खिलाफ केस तक दर्ज हो चुका है. हाल ही में निगम की जमीन पर अवैध कब्जे को लेकर भी मेयर की काफी फजीहत सरकारी अधिकारी करा चुके हैं. इतना ही नहीं कुछ साल पहले मेयर अवैध पोर्टेबल शॉप का उद्घाटन तत्कालीन नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना से करवाकर मंत्री जी की भी फजीहत करवा चुके हैं. अगर भाजपा के टिकट की बोली लगेगी तो जरूर मेयर कैंट की टिकट खरीद सकते हैं क्योंकि पैसे की उनके पास कोई कमी नहीं है.
वहीं, कैंट सीट से तीसरा और सबसे प्रभावशाली नाम जिस शख्स का सामने आ रहा है वो संजीव अग्रवाल हैं. संजीव अग्रवाल संघ में काफी गहरी पैठ रखते हैं. वर्ष 2012 में वह भाजपा के क्षेत्रीय कोषाध्यक्ष भी रह चुके हैं। लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में बरेली लोकसभा क्षेत्र के संयोजक भी रहे। उन्हें वर्ष 2016 में प्रदेश कार्य समिति में सदस्य चुना गया था। इसके बाद वर्ष 2018 में प्रदेश संयोजक आजीवन सहयोग निधि के पद पर भी चुना गया। यहीं से कयास लगाए जा रहे थे कि उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट जरूर मिलेगा लेकिन उनकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा राजेश अग्रवाल थे. संजीव से ज्यादा गहरी पैठ राजेश अग्रवाल संघ में रखते हैं. फिलहाल संजीव अग्रवाल प्रदेश सह कोषाध्यक्ष हैं. सूत्र बताते हैं कि संजीव इस सीट से टिकट हासिल करने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं. उनकी तीन पीढ़ियां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी रही हैं। अगर इस बार संजीव को टिकट नहीं मिला तो पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. स्थानीय स्तर पर गहरी पैठ रखने वाले संजीव पार्टी प्रत्याशी को पराजित करवाने का भी दम रखते हैं. अगर संजीव को टिकट नहीं मिला तो पार्टी को स्थानीय स्तर पर हार का मुंह भी देखना पड़ सकता है क्योंकि संजीव अग्रवाल की छवि मुनीष अग्रवाल और मेयर उमेश गौतम दोनों से काफी बेहतर है. सूत्र तो यह भी बताते हैं कि संजीव के लिए संघ के कुछ पदाधिकारियों ने तो अभी से फिल्डिंग शुरू कर दी है. ऐसे में संजीव की उपेक्षा पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है. बहरहाल, राजेश अग्रवाल की सियासत की विरासत कौन संभालेगा यह कहना मुश्किल है. फिलहाल हाईकमान इस पर विचार कर रहा है. अभी लंबा समय शेष है इसलिए फिलहाल कुछ कहना जल्दबाजी होगी. सभी इच्छुक दावेदार अपनी अपनी गोटियां सेट करने में लगे हैं.
