इंटरव्यू

सेहत की बात : स्टोमेटिटिस (मुंह के छाले) के कारण, प्रकार और उपचार बता रहे हैं डा. रंजन विशद

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मुंह की श्लेष्मिक कला के सूजन को मुखपाक कहते हैं. इस रोग में मुंह के भीतर ओष्ठ, जीभ, तालु और कपोलो के अंदर व्रण व छाले हो जाते हैं. इससे रोगी को बहुत कष्ट तथा पीड़ा होती है. प्रभावित भाग लाली लिये हुए शोथयुक्त तथा संवेदनशील होता है. अधिकांश रोगियों में ओष्ठ पर सूजन मिलती है. मुंह से लार आती है तथा ऊपरी सर्वाइकल लिंफ ग्लैंड्स बढ़ जाते हैं. कोई भी चीज खाने में कष्ट होता है. जिसके कारण मन व्याकुल रहता है. जिह्वा उदर रोगों का दर्पण कहा जाता है।

मुखपाक होने के सामान्य कारण-
1- तीक्ष्ण औषधियों तथा गरम मसाले के अधिक सेवन से.
2- अशुद्ध पारद तथा कच्चे अशुद्ध मेटल्स एवं भस्मों के कुछ काल तक सेवन करने से.
3- कृमि दन्त, दंतबेस्टशोथ एवं नियमित सफाई ना होने के कारण.
4- विशेष कीटाणु यथा डिप्थीरिया,  ऑर्गेनिज्म, स्ट्रैप्टॉकोक्कस तथा सिफलिस जीवाणु, परनीसीयस, एनीमिया, स्परू, बेरी- बेरी आदि के प्रभाव.
5- विटामिन बी तथा विटामिन सी का अभाव होना.
6- पेट की गड़बड़ी से एवं अन्य रोगों के उत्पन्न होने से और एलर्जी कारणों से निर्बलता इस रोग का प्रमुख कारण है.
7- अधिक तंबाकू, शराब तथा धूम्रपान का सेवन करने से।

मुखपाक के प्रकार
सर्वसरास्तु वात पित्त कफ शोणिराग्निमित्ता।
यह 4 प्रकार का होता है।
वातिक
पैत्तिक
श्लेष्मिक
रक्तज

1.वातज-
मुख चारों ओर से तीव्र छालों से भरा होता है।
2.पैत्तिक
मुख लाल वर्ण,दाह युक्त, सूक्ष्म ओर पीले छालो से भरा होता है।
3.श्लेष्मिक-
मुख कंडूयुक्त, मंद वेदना वाले छालो से युक्त होता है।
4.रक्तज-
पित्तज मुख पाक के समान लक्षण वाला होता है।
मुखपाक के लक्षण

इसमें जीभ के अंकुर नष्ट हो जाते हैं और छोटे-छोटे व्रण बन जाते हैं. जो दर्द युक्त होते हैं. यह अल्सर एक के बाद दूसरे निकलते जाते हैं. एक अथवा अनेक अल्सर भी मिल सकते हैं.
यह अल्सर पीले रंग के होते हैं. इनके चारों तरफ लाल रंग का खेरा होता है.
इस रोग का आक्रमण कुछ दिनों अथवा कुछ सप्ताह तक रहता है और फिर स्वतः ही ठीक हो जाता है. किंतु रोग का आक्रमण इसी प्रकार से बार-बार होता रहता है.
इस रोग में रोगी के भोजन में तनिक भी मिर्च होने से उसका मुंह जलने लगता है.

मुखपाक दूर करने का आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय-

1. काला जीरा, कूठ, इंद्रजव इनको चबाने से मुखपाक मुखव्रण तथा मुंह की दुर्गंध दूर होता है.
2 . जावित्री, लौंग, गिलोय, धमासा, हरड़, बहेड़ा, आंवला इनका क्वाथ बनाकर शीतल होने पर शहद मिलाकर पीने से मुख पाक ठीक होता है.
3. सतवन, कटु, परवल पत्र, हरड़, कुटकी, मुलेठी, अमलतास, लाल चंदन इन सभी को बराबर मात्रा में मिलाकर क्वाथ बनाकर पीने से मुखपाक ठीक होता है.
4. दारू हल्दी के स्वरस में शहद मिलाकर पीने से मुखपाक, मुख के अन्य रोग नाड़ी व्रण तथा रुधिर विकार ठीक होता है.
5 .बिजोरा के फल की छाल खाने से मुंह की दुर्गंध नष्ट हो जाती है एवं मुखपाक से राहत मिलता है.
6 . अमरूद के पत्ते चबाने से मुखपाक ठीक होता है.
7. त्रिफला चूर्ण यानी हरे, बहेरा, आंवला का चूर्ण एक चम्मच चबाकर गुनगुना पानी पीने से मुखपाक ठीक होता है.
8. सत मुलेठी, पिपरमिंट, छोटी इलायची, लौंग, जावित्री, कपूर सबको बराबर मात्रा में लेकर पीसकर पानी से रत्ती प्रमाण गोली बनाकर चूसने से मुखपाक के साथ मुख के कई रोग ठीक हो जाते हैं.
9. बबूल के पत्ते चबाने से मुखपाक से राहत मिलती है.
10. कत्थे को महीन पीसकर उसमें थोड़ा सा शहद मिला लें. अब इसे मुखपाक में लगाएं और मुंह झुका कर लार को नीचे टपकाए दिन में तीन- चार बार ऐसा करने से ठीक हो जाता है.
11 .शहद में फुला हुआ सुहागा को अच्छी तरह मिलाकर मुंह के छालों पर लगाने से ठीक हो जाता है.
12 .आंवले का चूर्ण सुबह-शाम 5-5 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी से सेवन करने से मुखपाक ठीक हो जाता है.
13 .रात को सोते समय एक दो चम्मच इसबगोल की भूसी पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है.
14 .पानी में टमाटर का रस मिलाकर कुल्ले करने से मुखपाक से राहत मिलता है.
15 .धनिया को पीसकर पाउडर बना लें. अब इस पाउडर को मुंह के छालों पर बुरककर लार नीचे गिराए इससे मुंह के छालों से राहत मिलेगी.
16 .इलायची के छिलकों को सुखाकर पीस लें. इस चूर्ण को पानी में भिगोकर या पानी से पेस्ट बनाकर तालू पर लगाएं।
17. मुलहठी+ खाने का गौंद बारीक पीस कर थोड़ा थोड़ा मुँह में रखते रहे।
18.जातिपत्र (चमेली) को बार-बार चबाने से मुखपाक ठीक होता है।
शास्त्रीय चिकित्सा-
मुखपाक चिकित्सा के लिए दो तरह के उपक्रम अतीव हितकारी सिद्ध होते हैं –

1- दीपन, पाचन , शोधन औषधि द्वारा उदर को निरामय किया जाय, तो, मुखपाक ठीक हो जाता है|
2- मुखपाक का दूसरा उपक्रम व्रणरोपण चिकित्सा है , जिसमें विविध औषधि के कवल, गण्डूष , आलेपन आदि का प्रयोग ।
3- पारद जन्य ( रस कपूरादि ) मुखपाक में — कर्कोटकादि (कर्कोटक, करेला, ककडी, खीरा, गोपाल ककडी, किन्दुरी ) ककाराष्टक के क्वाथादि का प्रयोग से शान्ति हो जाती है।
4- करेला के पत्र स्वरस के प्रयोग से भी ठीक हो जाते हैं यानि मुखपाक तो ठीक होता ही है , अन्य पारद जन्य विकार भी शान्त हो जाते हैं एवं पारद शरीर से बाहर निकल जाता है ।
5- गोपालककडी ( जिसे मृत्युञ्जय मन्त्र में उर्वारूक कहा है ) के स्वरस प्रयोग भी पारद जन्य मुखपाक में हितकारी है ।
6- उदर ( आंतों ) की गरमी व बिबंध जन्य मुखपाक के लिए स्निग्ध विरेचन सर्वोत्तम दवाई है | सर्वप्रथम रोगी को भूने हुए जौ का दलिया गोघृत एवं सैन्धव लवण के साथ आहार में देकर , विरेचन देने से मुखपाक ठीक हो जाता है | हरड व मुनक्का का क्वाथ भी दे सकते हैं ।
7- विटामिन बी12 व विटामिन सी की कमी से भी मुखपाक होने पर , इस कमी की पूर्ति करने पर राहत मिलती है कई बार प्रवाहिका में इन दोनो विटामिन्स का प्रचूषण आंतो द्वारा सम्यक न होने से भी ऐसी स्थिति बन जाती है यानि मुखपाक हो जाता है||
8- जिह्वा गर मलावृत रहती है, तो बिबंध का संकेत है | जिह्वा गर लालिमा लिए शोथयुक्त है , तो आन्त्रशोथ का संकेत है ।
9- अगर जिह्वा और मुख में उपलापन बना रहता है तो यह प्रमेह का पूर्व रूप भी हो सकता है एवं आमाशय विकार का संकेत है |
10- मुखपाक में पेट साफ रखना अत्यन्त आवश्यक है।

-डा. रंजन विशद, मेडिकल अफसर, मीरगंज 

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