इंटरव्यू

हैदराबाद में जन्मे पर बरेली की सियासत में हासिल किया मुकाम, 45 साल से निभा रहे मुलायम सिंह से वफादारी, पढ़ें दिग्गज सपा नेता महेश पांडेय का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू…

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हैदराबाद में जन्मे महेश पांडेय बरेली की सियासत का जाना पहचाना चेहरा हैं. उनका नाम सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के वफादार सिपहसालारों में लिया जाता है. महेश पांडेय ने अपनी जिंदगी के लगभग 45 वर्ष से भी अधिक का समय राजनीति को दिया है. उन्होंने हमेशा सिस्टम से प्रताड़ित लोगों की लड़ाई लड़ी हो. डीएम समेत कई आला अधिकारियों के खिलाफ मुकदमे लड़ने वाले वह एकमात्र शख्स हैं. वह 25 साल लगातार सपा के जिला महासचिव रहे और 15 साल तक लगातार निर्विरोध जिला सहकारी संघ के अध्यक्ष चुने गए. इस दौरान उन्हें किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा? महेश पांडेय का राजनीति में आना कब और कैसे हुआ? 45 वर्षों की राजनीति में उन्हें क्या बदलाव नजर आते हैं? महेश पांडेय जब से राजनीति में आए मुलायम सिंह के साथ ही रहे, इसकी क्या वजह है? शिवपाल के अलग होने का पार्टी को क्या नुकसान होगा? किसानों के आंदोलन और शहर के विकास को वह किस नजरिये से देखते हैं? क्या आगामी विधानसभा चुनाव में वह पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे? इन्हीं सब मुद्दों पर महेश पांडेय ने नीरज सिसौदिया के साथ खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : आपका जन्म कहां हुआ, पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है?
जवाब : मेरा जन्म आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में हुआ था. मेरे पिता सिविल सर्विसेज में थे और मेरा बचपन भी हैदराबाद में ही बीता. मैंने वहीं से पढ़ाई लिखाई की. हमारे परिवार के ज्यादातर लोग अधिकारी ही थे.
सवाल : राजनीति में कब और कैसे आना हुआ?
जवाब : स्कूल टाइम से ही राजनीति में सक्रिय थे. वर्ष 1974-75 में जब अर्बन लैंड सीलिंग आई तो मैं बरेली आया. यहां मैंने पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के बहुत बड़े नेता चौधरी चरण सिंह की इकेनॉमिकल पॉलिसी पढ़ी तो मुझे लगा कि यही आदमी देश का कल्याण कर सकता है जो 80 फीसदी आबादी के बारे में सोचता है. तो मैंने लोकदल ज्वाइन कर लिया.
सवाल : आपकी जिंदगी का पहला बड़ा आंदोलन कौन सा था?
जवाब : मेरी लाइफ का पहला बड़ा आंदोलन वर्ष 1980 में बागपत के माया त्यागी कांड को लेकर था. उस वक्त मैं लोक दल का हिस्सा था. केंद्रीय नेतृत्व की ओर से जेल भरो आंदोलन का आह्वान किया गया था. वह हमारी पहली जेल यात्रा थी. उस आंदोलन में हम अकेले प्रतिनिधि थे जिसे 45 समर्थकों के साथ गिरफ्तार किया गया था. पूरे प्रदेश में कहीं और किसी भी जनप्रतिनिधि को उस आंदोलन में गिरफ्तार नहीं किया गया था. वैसे तो हमने इमरजेंसी भी देखी थी लेकिन चूंकि हमारे परिवार में ज्यादातर अधिकारी ही थे इसलिए उस वक्त हमें गिरफ्तार नहीं किया गया था.
सवाल : सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के संपर्क में कब आना हुआ, उनके साथ सियासी सफर कैसा रहा?
जवाब : वर्ष 1977 में जब नेता जी सहकारिता मंत्री थे तब हम उनके संपर्क में आए थे. मुलायम सिंह ही थे जो हमें चौधरी चरण सिंह के असली वारिस नजर आ रहे थे. जब वह उच्च सदन में नेता प्रतिपक्ष बने तो जिस तरह से वह जनता की लड़ाई लड़ते थे हमें अहसास हुआ कि हम सही आदमी के साथ हैं. 1980 में जब रामबचन सिंह को हटाकर मुलायम सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो नेताजी ने हमें महानगर महासचिव बनाया. तब से हम उन्हीं के साथ रहे. वह जनता पार्टी में रहे तो हम भी जनता पार्टी में चले गए. फिर वर्ष 1985-86 में लोकदल अ व ब में बंट गया. हम नेताजी के साथ लोकदल ब में चले गए. वर्ष 1992 में सपा बनी तो मुलायम सिंह यादव ने हमें जिला महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी. तब से वर्ष 2005 तक हम महासचिव रहे. फिर हम जिला सहकारी संघ के निर्विरोध अध्यक्ष बने और 15 साल तक इसी पद पर काबिज रहे. अब भी पार्टी में सक्रिय हैं.
सवाल : राजनीति के साथ क्या आप समाजसेवा भी कर रहे हैं, किस तरह की समाजसेवा आपकी प्राथमिकता में है?
जवाब : जो लोग सिस्टम से प्रताड़ित होते हैं हम उनकी आवाज बुलंद करने का प्रयास करते हैं. जयशंकर पटवा का एनकाउंटर हुआ था तो उस समय अहमद हसन एसपी थे जो मौजूदा समय में अपर हाउस के लीडर हैं. पुलिस ने जयशंकर का एनकाउंटर किया था और हम इसलिए विरोध कर रहे थे कि पुलिस को निरंकुश नहीं होने देना चाहिए. जयशंकर ने एक सिपाही की हत्या की थी लेकिन उसे सिस्टम के तहत फांसी दी जानी चाहिए थी. पुलिस को उसका एनकाउंटर करने का कोई अधिकार नहीं था.
सवाल : क्या अब भी आप इस तरह आवाज उठाते हैं?
जवाब : आज भी जब कोई प्रकृति से या प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ करता है तो हम उसकी लड़ाई लड़ते हैं. जैसे- इंटरनेशनल सिटी के प्रमोटर्स विपिन अग्रवाल और राजीव खंडेलवाल ने 113 तालाब पाट दिए. इसके खिलाफ हमने शिकायत भी की और हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की है.
सवाल : आपको राजनीति में लगभग 45 साल हो गए. तब और अब की राजनीति में क्या फर्क महसूस करते हैं?
जवाब : जमीन-आसमान का बदलाव आया है राजनीति में अब राजनीतिक व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं रह गया है. आज कोई भी नेता अपने हित के लिए किसी की भी हत्या करवा सकता है. किसी को भी जेल भिजवा सकता है. पहले ऐसा नहीं था. पहले बदले की भावना से कोई दल काम नहीं करता था. मौजूदा हालात बदतर हो चुके हैं. सरकारें निरंकुश हो गई हैं.
सवाल : इन हालातों में बदलाव कैसे आएगा?
जवाब : बदलाव तो तभी आएगा जब जनता में क्रांति आएगी. क्योंकि आज लगभग हर पार्टी का नेता सत्ताधारियों की कार्यप्रणाली से घबराया हुआ है. कोई भी आदमी जो जो सरकार के गलत कामों या फैसलों का विरोध करता है उसके पीछे सीबीआई लगा दी जाती है, छापे पड़वाने शुरू कर देते हैं. लगभग सभी विपक्षी दलों के नेता इससे प्रभावित हैं. इसलिए सत्ता से लड़ने की हिम्मत इनकी नहीं है.
सवाल : सरकार ने आजम खां को जेल भेज दिया है. जौहर यूनिवर्सिटी का अवैध कब्जा है. इस कार्रवाई को आप किस नजरिये से देखते हैं?
जवाब : जौहर यूनिवर्सिटी का कोई कब्जा किसी की जमीन पर नहीं है. आजम खां को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं. वह अपने बेटे के कहने पर भी कभी कोई गलत काम नहीं करेंगे. उनके खिलाफ बदले की राजनीति की जा रही है. अवैध कब्जा तो सरकार जिस पर चाहे उस पर दिखा देगी. आज जौहर यूनिवर्सिटी के पेपर मांगे जा रहे हैं तो बीएचयू के पेपर मांगिये, महामना मदन मोहन मालवीय के समय के पेपर उसके भी नहीं होंगे तो आप उन्हें भी भू माफिया बता देंगे. अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के पेपर मांगिये, वहां भी पेपर नहीं मिलेंगे. ये संस्थान लोक कल्याण के लिए बनाए जाते हैं. आजम साहब ने भी लोक कल्याण के लिए बनाया था. आज वहां यतीम बच्चे पढ़ रहे हैं, एक अच्छा काम किया था. उसे हिन्दू मुस्लिम की भावना से देखकर कलंकित किया जा रहा है.
सवाल : देश का किसान सड़कों पर है और सरकार अपना निर्णय बदलने को तैयार नहीं है. किस नजरिये से देखते हैं इस आंदोलन को?
जवाब : किसान आंदोलन एकदम सही है. किसानों के साथ बहुत ज्यादती हो रही है. तीनों ही काले कानून हैं. कृषि कानूनों से सिर्फ अंबानी और अडाणी को फायदा होगा. आज हरियाणा में, पंजाब में अडाणी के इतने बड़े गोदाम बन चुके हैं. ये अंबानी और अडाणी को कैसे पता था कि आने वाले समय में उन्हें इनकी जरूरत पड़ेगी. यह पूर्व नियोजित था. अभी लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है. जब तक जनता को यह समझ में आएगा तब तक जनता लुट चुकी होगी.
सवाल : शहर के विकास को आप किस नजरिये से देखते हैं? क्या आपको लगता है कि विकास की रफ्तार सही है?
जवाब : जिस तरह से राजनीतिक कद के नेता यहां रहे हैं उस हिसाब से विकास बिल्कुल भी नहीं हुआ. हां जब अखिलेश यादव और मुलायम सिंह की सरकार थी तो कुछ विकास होता दिखा था. बरेली से बदायूं फोर लेन अखिलेश सरकार की ही देन है. शाहजहांपुर से हरदोई और हरदोई से लखनऊ फोर लेन भी अखिलेश की ही देन है.
सवाल : लेकिन स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत तो काम हो रहे हैं?
जवाब : समार्ट सिटी टोटल घपला है. बंदरबांट की लड़ाई है. कमीशन की लड़ाई है. अधिकारियाें और भाजपा नेताओं के बीच कमीशन को लेकर नूराकुश्ती चल रही है.
सवाल : नेता अगर अगर शहर का विकास नहीं करा रहे तो संतोष गंगवार इतने वर्षों से लोकसभा चुनाव कैसेे जीतते आ रहे हैं?
जवाब : संतोष गंगवार के बारे में मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. बस इतना ही कहूंगा कि यहां बिरादरी की राजनीति है. यहीं नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में है. आपको भी पता है कि चुनाव किस तरह हो रहे हैं. इस वक्त जब मशीनें हैक कर ली जा रही हैं, बदली जा रही हैं. मेरे पास पक्की सूचना थी कि मेयर के चुनाव में मशीनें बदली जा रही हैं मुस्लिम इलाकों में. ये किसके गले से उतरेगा कि तिलक इंटर कॉलेज में जहां टोटली मुस्लिम आबादी है वहां सपा को गिने चुने वोट ही मिलेे. सारा वोट बीजेपी का निकला.
सवाल : तो अब भी वही होगा?
जवाब : नहीं, अब ऐसा नहीं होगा. किसान आंदोलन क्रांति का संकेत है और इतिहास गवाह है कि बदलाव हमेशा क्रांति से ही आए हैं. बार-बार ऐसा होगा तो जनता खुद इसका इलाज कर देगी.
सवाल : शिवपाल यादव सपा को छोड़ चुके हैं. उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली है. सपा के आधे दिग्गज उनके साथ चले गए हैं. आधी पार्टी टूट चुकी है. कितना असर पड़ेगा आगामी चुनावों पर?
जवाब : अखिलेश यादव 99% पार्टी हैं क्योंकि नेता जी के बेटे हैं. पार्टी का जितना अनुशासित कार्यकर्ता है वह जानता है कि अखिलेश यादव अपने आप में नेता जी की कार्यशैली को अपनाए हुए हैं. शिवपाल यादव अकेले गए थे और उनके साथ कुछ वो लोग गए जो असंतुष्ट थे या अखिलेश यादव उनकी कार्यशैली से नाराज थे और मीटिंग में उन पर नाराजगी जताई थी. फटकार लगाई थी. उससे कुछ लोग रुष्ट होकर चले गए. अगर आने वाले चुनाव में शिवपाल यादव में अकेले लड़ें तो हो सकता है कि अपनी सीट भी न जीत पाएं. शिवपाल के अलग होने से अखिलेश यादव को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. इसका अंदाजा आप इसी से लगा लें कि शिवपाल के दफ्तर पर आज सन्नाटा छाया रहता है और अखिलेश यादव जहां से निकलते हैं उनके साथ पूरा काफिला होता है.
सवाल : बरेली में सड़कें खुदी पड़ी हैं, लोग परेशान हैं पर विपक्ष सो रहा है. क्यों?
सवाल : हमारा मानना है कि विपक्ष है ही नहीं. सभी भयाक्रांत हैं. जिन्हें आंदोलन करना चाहिए था वे आंदोलन से मुंह मोड़ रहे हैं. जब तक जनता खुद सड़कों पर नहीं उतरेगी तब तक कुछ होना नहीं है.
सवाल : सपा ने विधानसभा चुनाव के लिए आवेदन लेने शुरू कर दिए हैं. क्या आपने भी आवेदन किया है?
जवाब : मेरा अभी चुनाव लड़ने का कोई विचार नहीं है. इसलिए मैंने कोई आवेदन नहीं किया है. लेकिन पार्टी नेतृत्व कहेगा तो शहर विधानसभा सीट से जरूर लड़ूंगा.
सवाल : अगर पार्टी आपको मौका देती है तो आपके चुनावी मुद्दे क्या होंगे?
जवाब : विकास से भ्रष्टाचार तक, किसानों तक मुद्दे ही मुद्दे हैं. विकास और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शहर विधानसभा सीट से लड़ेंगे.
सवाल : शहर विधानसभा क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या आप किसे मानते हैं?
जवाब : सबसे बड़ी समस्या जाम की है. रोजगार खत्म हो गया है. कोरोना का हौव्वा बनाकर सबको घर बैठा दिया गया. वर्तमान में किसी भी विधायक ने जनता की सेवा करने का काम नहीं किया सरकार के साथ गलबहियां करते रहे. इस सीट का सबसे बड़ा मुद्दा व्यापार का है. शहामतगंज पुल बनने से व्यापार चौपट हो गया. अब कुतुबखाना पर पुल बनाने जा रहे हैं. जबकि अतिक्रमण हटाकर इस समस्या को दूर किया जा सकता है.

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