नीरज सिसौदिया, बरेली
इंसाफ की आस में मजबूर लोग न्यायालय की शरण में जाते हैं. न्यायालय से उन्हें इंसाफ मिल भी जाता है लेकिन अफसरशाही उनकी इंसाफ की उम्मीदों को कागजों से बाहर नहीं निकलने देती. ऐसा ही कुछ बरेली विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने भी किया. बीडीए अफसरों ने पहले तो शासनादेश की धज्जियां उड़ाईं, फिर कानून का मजाक बनाया और अंत में न्यायालय के आदेशों की धज्जियां उड़ा कर 25 लाख रुपये गलत तरीके से लेकर चलते बने. मामला बरेली के ग्राम सैदपुर हॉकिन्स का है.
दरअसल, सैदपुर हॉकिंस में स्थित गाटा संख्या 50ए, 51 और 53 लगभग 38 सौ वर्ग मीटर जमीन पर साहूकारा निवासी विष्णु कुमार अग्रवाल और उनके परिवार का आधिपत्य है. उन्होंने उक्त जमीन पर भवन निर्माण हेतु 13 अक्टूबर 2014 को मानचित्र जमा किया था. जनवरी 2016 तक न तो बीडीए ने उक्त नक्शा पास किया और न ही उसे निरस्त किया. उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास अधिनियम 1973 की धारा 15 के तहत अगर एकल आवासीय भवनों का नक्शा एक माह तक पास न किया जाए तो उसे स्वत: स्वीकृत मान लिया जाएगा. वाणिज्यिक या ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिए यह अवधि तीन माह और अन्य मामलों में दो माह यानि 60 दिन निर्धारित की गई है. इस संबंध में 24 जून 1997 को उत्तर प्रदेश शासन आवास अनुभाग-1 द्वारा शासनादेश संख्या 2798/9-आ-1-1997 भी जारी किया गया था. इन्हीं कानूनों को ध्यान में रखते हुए विष्णु अग्रवाल और उनके परिवार ने उक्त भूमि पर स्वत: स्वीकृत नक्शे के अनुरूप निर्माण कार्य करा लिया. लेकिन बीडीए अधिकारियों ने उक्त कानूनों और शासनादेश को मानने से ही इनकार कर दिया तो विष्णु अग्रवाल व अन्य ने बीडीए के खिलाफ वर्ष 2016 में कोर्ट में इंसाफ की गुहार लगाई. न्यायालय ने विष्णु अग्रवाल के पक्ष में आदेश देते हुए कहा कि बीडीए प्रस्तावित मानचित्र के अनुरूप निर्माण कराने पर कोई हस्तक्षेप न करे और न ही कोई निर्माण ध्वस्त करे. उक्त आदेश से बीडीए के अधिकारी भली भांति परिचित भी हैं. बीडीए ने इस आदेश के खिलाफ जिला जज न्यायालय में अपील भी दायर की थी जो अब भी कोर्ट में लंबित है. इसके बावजूद लगभग चार साल बाद नवंबर 2020 को बीडीए वीसी जोगेंद्र सिंह, सचिव अंबरीस कुमार श्रीवास्तव, एसई राजीव दीक्षित और अनिल कुमार और सहायक अभियंता प्रेमचंद्र आर्य टीम के साथ उक्त जगह पर किए गए निर्माण को ध्वस्त करने पहुंच गए. अधिकारियों ने कानून को ताक पर रखते हुए कोर्ट के आदेश को भी मानने से इनकार कर दिया और भवन को सील कर दिया. इसके बाद एक ओर की दीवार भी तोड़ दी. काफी विवाद के बाद बीडीए के अधिकारी 20 लाख और पांच लाख रुपये के दो चेक कंपाउंडिंग फीस के नाम पर ले गए. अब सवाल यह उठता है कि जब नक्शा कानूनन स्वत: स्वीकृत मान्य है तो फिर कंपाउंडिंग के नाम पर 25 लाख रुपये के चेक क्यों लिए गए? बरेली विकास प्राधिकरण के पूर्व अधिवक्ता अनिल रेकरीवाल कहते हैं कि नियमानुसार अधिकतम तीन माह तक अगर किसी भवन निर्माण का नक्शा बीडीए पास अथवा रिजेक्ट नहीं करता है तो वह स्वत: स्वीकृत मान्य होता है. इस सूरत में उक्त नक्शे के तहत बनाए गए भवन के खिलाफ कोई भी कार्रवाई बीडीए की ओर से नहीं की जा सकती और न ही किसी भी प्रकार का कंपाउंडिंग शुल्क वसूला जा सकता है. खास तौर पर जब कोई मामला न्यायालय में लंबित होता है तो कोई भी पक्ष उसमें तब तक कोई कार्रवाई नहीं कर सकता जब तक माननीय न्यायालय की ओर से कोई आदेश जारी न किया जाए. ऐसे में बीडीए अधिकारियों द्वारा कार्रवाई करना न्यायालय को खुली चुनौती है.
Facebook Comments