विचार

इक़ जमाना बीत गया भीगे बरसात में…

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सोते नहीं छत पे पहले जैसे रात में।
लगाते नहीं गले हर मुलाकात में।।

बदल गया चलन अब जमाने का।
देखते हैं कीमत हर भेंट सौगात में।।

चकाचौंध रोशन बन गई दुनिया।
अब यकीं घट गया जज्बात में।।

बडे बूढ़ों के आशीर्वाद में रहा नहीं यकीं।
बौखला जाते हैं बुजुर्गों की लात में।।

दुनिया की हर बात में आ गई सियासत।
चलने लगा दिमाग अब घात प्रतिघात में।।

बिना स्वार्थ के नहीं अब कुछ होता।
मतलब आता पहले हर बात में।।

अलगअलग दुनिया बस गई सबकी।
काम आते नहीं किसी जरूरात में।।

दिखावे की बन चुकी है अब दुनिया।
रुक गए हैं हाथ धर्म कर्म खैरात में।।

*हंस* बंद कमरों में चहकती नहीं जिंदगी।
इक़ जमाना गुज़र गया भीगे बरसात में।।

एस के कपूर “श्री हंस”
मो. 9897071046, 8218685464

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