मेरे जीवन के
अंधियारे पथ पर चलते हुए
मेरी बदहाली में ,
मेरी फटेहाली में,
मेरी फ़टी हुई जूतियों में
ठुकी हुई कील
जब मेरे पाँव को करती घायल
तो , अनायास ही
बिखरती मुस्कान
तुम्हारे चेहरे पर और
तुम्हारी दूध जैसी श्वेत दन्त पंक्ति
मुझे मेरे जीवन के अंधेरे में
आगे बढ़ने का रास्ता दिखाती है ।।
— डॉ दीपा शुक्ला
सहायक अध्यापिका
उ. प्रा . वि. सढौना
लखीमपुर खीरी, ( उ. प्र .)
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