गीत -उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
जब हम छोटे बच्चे थे, कहते थे नाना- नानी
भगवा झंडा लहराना, बनकर तुम ही तूफानी।
हम नहीं कर सके कुछ भी, हमने तो कष्ट सहे हैं
सदियों तक रही गुलामी, बस आँसू यहाँ बहे हैं
हमसे तो भूल हो चुकी, तुम मत करना नादानी
भगवा झंडा लहराना, बनकर तुम ही तूफानी।
तुम नन्हे- मुन्ने प्यारे, तुम से उम्मीद लगाएँ
हम नहीं रहें दुनिया में, लेकिन यह भाव जगाएँ
हम देखेंगे ऊपर से, जिस दिन तुम रचो कहानी
भगवा झंडा लहराना, बनकर तुम ही तूफानी।
जब मंदिर लुटे यहाँ पर, पुरखों की थी लाचारी
माँ- बहिनों की इज्जत से,थे खेल रहे व्यभिचारी
थीं अग्नि-कुंड में कूदीं,सखियों को लेकर रानी
भगवा झंडा लहराना, बनकर तुम ही तूफानी।
इतना सोना- चाँदी था, हमने तो सब कुछ खोया
बैरी ने चालाकी से, भारत के सुख को धोया
अब दूध- दही की नदियाँ, फिर से हैं यहाँ बहानी
भगवा झंडा लहराना, बनकर तुम ही तूफानी।
तुम कभी नहीं अब झुकना, सत्ता तुम ही पाओगे
फिर राम-राज्य भारत में, तुम ही लेकर आओगे
तब कौन विरोधी होगा, कर पाए आनाकानी
भगवा झंडा लहराना, बनकर तुम ही तूफानी।
रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
‘कुमुद- निवास’
बरेली( उ० प्र०)
मोबा०- 98379 44187