विचार

झारखंड ने संदेश भी दिया है और संकेत भी

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जिन क्षत्रपों को आपने पैदा किया, सींचा, पाला,पोसा, बड़ा किया। उनके अहंकार ने पार्टी संगठन के मूल( कार्यकर्ताओं) पर मट्ठे का प्रयोग शुरू कर दिया। ऐसे चाणक्य बनाए जो खुद की जड़ों में ही दीमक लगाने का उत्पाद देते रहे। यही नहीं राम के नाम और आदर्शों पर चलने वाली पार्टी हैं आप। तो राम ने रावण के साथ हुए युद्ध में सहयोग देने वालों को उनका राजपाट दिया था। विभीषण को लंका दी थी। सुग्रीव को कहां का राजा और जिस बालि का वध श्री राम ने किया था, उसके पुत्र अंगद को कहां का युवराज बनाया था, सब कुछ कथा में वर्णित है। राम के राज में विद्वानों का भी पूरा सम्मान था, तो योद्धाओं का भी, धोबी को भी अपनी बात कहने का अधिकार था। किसी भी समय कोई भी घंटा बजा कर अपनी बात राम से कह कर न्याय मांग सकता था। क्या उस घंटे की आवाज बीजेपी के केंद्रीय कार्यालय में सुनी जाती है। या फिर अनिल बलूनी जी की बीमारी के बाद थोड़ा बहुत जो बात पहुंचती थी, वह माध्यम भी बंद हो चुका है। वैसे भी राज्यों में जो लोग बड़ी कुर्सियों पर हैं उनकी गलतियों और कमियों पर कार्यकर्ताओं की बात सुनने का धैर्य अब बड़े नेताओं में नहीं बचा है। परिणाम सामने है।

Nisheeth Joshi

अब जरा राज्यों में झांकें। आपने क्या किया? क्या कर रहे हैं? सहयोगियों को एक-एक कर खो रहे हैं? क्यों? सब कुछ अकेले भोगने के लिए? सत्ता पर अकेले कब्जे के लिए। पता है कांग्रेस क्यों समाप्त हुई। उसने सत्ता की ताकत एक परिवार के केंद्र के हाथों में समेटने के लिए क्षत्रपों को धीरे-धीरे कर के समाप्त किया। आपके यहां जो क्षत्रप आपने पैदा किए वो खुद को बनाए रखने के लिए अपने ही घर के मजबूत लोगों को दुश्मन मान कर ठिकाने लगाने में जुटे रहे। उनकी ओर आपने आंख मूंद ली, कान बंद कर लिए। ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश, हिमाचल और उत्तराखंड में भी जारी है। अगर मुलायम सिंह यादव, लालू यादव और अखिलेश यादव पर आप यादव राज का आरोप लगाते थे तो इन राज्यों में आज क्या हो रहा है, जरा झांक कर देखने की कोशिश करें। कौन सा वाद हावी है? यही इन राज्यों में आपकी पार्टी को सत्ता से बेदखल करने के लिए बहुत है। आपकी पार्टी की हार किसकी हार होगी आप जानते समझते हैं। अच्छी तरह। आपको जो लोग रिपोर्ट दे रहे हैं वे वैसे ही बरगला रहे हैं जैसे हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड में किया। भले ही वह संघ से हों या आपकी पार्टी से। सब के अपने स्वार्थ और बिकने की एक कीमत है भी है और कारण भी।
जातिवाद नाम की एक नई बीमारी जो आर एस एस के कुछ ऐसे पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में पैदा हो रही है जो किसी न किसी रूप से राजनीति और सरकारों से जुड़े होते हैं। ऐसे में हाई कमान के लिए खतरे ही खतरे हैं। उधर, एआईसीसी ने झारखंड के परिणाम के बाद इन तीन राज्यों में खासतौर पर पार्टी संगठन को तत्काल एक्टिव मोड में आने के निर्देश भी जारी कर दिए हैं। अगर आप नहीं सुधरे तो इन राज्यों में भी मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड जैसी कहानी दोहरा दी जाना तय है।

साभार : निशीथ जोशी(एक्स एडिटर, अमर उजाला) की फेसबुक वॉल से.

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