इंटरव्यू यूपी

बच्चों को मुस्कान और गरीबों को पहचान दिलाती हैं, बेबसी की राहों पर उम्मीदों के दीप जलाती हैं, पढ़ें वकील की बेटी और साइंटिस्ट की पत्नी डा. प्रीति सिंह का स्पेशल इंटरव्यू…

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नीरज सिसौदिया, बरेली 
बेबसों की मजबूरी को कैमरे में कैद कर अपनी पहचान बनाने वाले अक्सर अखबारों के पन्नों पर सुर्खियां बटोरते नजर आते हैं मगर जो गरीबों को पहचान दिलाएं ऐसे लोग विरले ही नजर आते हैं. डा. प्रीति सिंह समाजसेवा की दुनिया की एक ऐसी ही शख्सियत हैं जो बेबसों को दान देने की जगह पहचान देती हैं. बेबस जरूरतमंदों के आत्मसम्मान और स्वाभिमान को बरकरार रखते हुए उनकी मदद करने का हुनर डा. प्रीति बाखूबी जानती हैं. वह न तो कोई बिजनेस टायकून हैं और न ही कोई सेलिब्रिटी. उनके पास न तो अरबों की दौलत है और न ही कोई सरकारी मदद. फिर भी वह बेबसों की तकदीर संवार रही हैं. कोरी पब्लिसिटी से कोसों दूर डा. प्रीति सिंह एक वकील की बेटी और साइंटिस्ट की पत्नी हैं. मूलरूप से यूपी के उन्नाव की रहने वाली प्रीति का बचपन मुरादाबाद में बीता. समाजसेवा का जज्बा उन्हें अपने पिता एडवोकेट ठाकुर हरि सिंह से मिला था.
प्रीति बताती हैं, ‘मेरे पिता एक वकील थे. गरीबों और जरूरतमंदों की मदद को वह हमेशा तत्पर रहते थे. उन्होंने कई बेबसों को इंसाफ दिलाया लेकिन उनसे फीस तक नहीं ली..कई बार तो हम उनसे मजाक-मजाक में यहां तक कह देते थे कि आप तो क्लाइंट से पैसे लेने की जगह उन पर लुटाकर चले आते हो. उनकी समाजसेवा का एक किस्सा मुझे आज भी याद है. मैं उस वक्त 5वीं या 6वीं क्लास में पढ़ती थी. हम मुरादाबाद में कहीं जा रहे थे. तभी एक बच्चा आया और पापा से बोला- साहब एक पेपर खरीद लो…पापा ने इंकार किया तो वह फूट-फूट कर रोने लगा. बोला- साहब सुबह से एक भी पेपर नहीं बिका है. मुझे पैसों की बहुत जरूरत है. इस पर पापा ने न सिर्फ उसका पेपर खरीदा बल्कि उसके घर जाकर उसके हालात का पता भी लगाया. फिर उसे एक ठेला खरीद कर दिया और फलों का कारोबार शुरू कराया. वर्षों तक वह बच्चा उस ठेले पर फल बेचकर अपना परिवार चलाता रहा और अब वह पूरी तरह सक्षम है. वहीं से मुझे समाजसेवा की प्रेरणा मिली.’ दो भाई-बहनों में डा. प्रीति सबसे छोटी हैं. उनके बड़े भाई प्रमोद कुमार इंकमटैक्स ट्रिब्यूनल, मुंबई में वाइस प्रेसीडेंट हैं. प्रीति बताती हैं, ‘पापा की तरह मेरे भाई भी समाजसेवा में उल्लेखनीय भूमिका निभाते रहे हैं. वह हमेशा कहते हैं कि एक इंसान के सक्षम होने से पूरा समाज आगे नहीं बढ़ सकता. हमारा समाज तभी ग्रो कर सकता है जब समाज का हर व्यक्ति आत्मनिर्भर बनेगा.’

पति के साथ डा. प्रीति सिंह.

डा. प्रीति ने मैथोडिस्ट इंटर कॉलेज, मुरादाबाद से स्कूलिंग की. उसके बाद मुरादाबाद के ही हिन्दू कॉलेज से एमएससी की पढ़ाई की. फिर 1993 में आगरा यूनिवर्सिटी से एम फिल की पढ़ाई करने के बाद वर्ष 1994 में आईवीआरआई के तत्कालीन साइंटिस्ट और आईवीआरआई के पूर्व डायरेक्टर डा. आरके सिंह से उनकी शादी हुई. शादी के बाद वर्ष 1994 में प्रीति बरेली आ गईं. इसी दौरान पति को ट्रेनिंग के लिए अमेरिका जाना पड़ा और प्रीति थीसिस तैयार करने में जुट गईं. बाद में उनके दो बेटे वरूण और सिद्धार्थ हुए. घर की जिम्मेदारी संभालते हुए जब कुछ वक्त बीता तो वर्ष 2002 में प्रीति ने एडहॉक बेसिस पर बरेली कॉलेज ज्वाइन कर लिया. वर्ष 2009 में प्रीति के पति की पोस्टिंग हिसार में हो गई और प्रीति पूरे परिवार के साथ हिसार, हरियाणा में शिफ्ट हो गईं. फरवरी 2014 में प्रीति के पति को आईवीआरआई के डायरेक्टर पद की जिम्मेदारी सौंपी गई और प्रीति की बरेली वापसी हुई. यही से प्रीति की समाजसेवा का सफर व्यापक रूप ले सका. डायरेक्टर की पत्नी होने के नाते प्रीति आईवीआरआई लेडीज क्लब की प्रेसीडेंट बन गईं.

संस्था की सदस्यों के साथ भोजन वितरण करतीं डा. प्रीति सिंह.

प्रीति बताती हैं, ‘आईवीआरआई लेडीज क्लब समाजसेवा के क्षेत्र में काफी गतिविधियों का आयोजन करता रहता था. हमारा मेन फोकस बच्चों पर था. हम अनाथालय जाते थे तो बच्चों से उनकी जरूरतें पूछकर उन्हें वह सामान मुहैया कराते थे जो वे किसी से मांग नहीं पाते थे. कई बच्चों को कोचिंग जाने के लिए साइकिल भी दी. लड़कियों को हाइजीन के लिए साल भर का स्टॉक एक बार में दे देते थे ताकि उन्हें परेशानी न हो. कुर्सियां, गैस चूल्हे, वॉशिंग मशीन सहित कई चीजें उपलब्ध कराईं.’
आईवीआरआई क्लब से जुड़ी होने के बावजूद डा. प्रीति को एनजीओ बनाने की जरूरत क्यों पड़ी? पूछने पर प्रीति कहती हैं, ‘आईवीआरआई क्लब हमें एक दायरे में बांधकर रखता था. इसमें हम सिर्फ ऑफिसर्स वाइफ के साथ ही एक्टिविटी कर सकते थे. मेरा जो बाहरी सर्किल था उसे इसमें नहीं जोड़ा जा सकता था इसलिए वर्ष 2018 में हमने ‘एक प्रयास’ नाम से एक गैर सरकारी संगठन बनाया. इसका मकसद लोगों को आत्मनिर्भर बनाना है. डा. आरके सिंह इसके अध्यक्ष हैं. वहीं मर्चेंट नेवी में तैनात कैप्टन अनिल सिंह वाइस प्रेसीडेंट, जानी मानी गायनकोलॉजिस्ट डा. अनुजा सिंह ज्वाइंट सेक्रेटरी, अर्चना सिंह कोषाध्यक्ष और मैं इसकी सेक्रेटरी हूं. ‘
अपने लक्ष्य के अनुसार ‘एक प्रयास’ लोगों को आत्मनिर्भर बनाने में अहन भूमिका निभा रही है. लॉकडाउन में जब हजारों लोग बेरोजगार हो गए तो डा. प्रीति ने संस्था के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर एक तरफ घर लौट रहे प्रवासियों के लिए भोजन की व्यवस्था कराई तो दूसरी तरफ बेरोजगार महिलाओं को रोजगार भी मुहैया कराया. प्रीति बताती हैं, ‘लॉकडाउन का समय पूरे देश के लिए भीषण त्रासदी लेकर आया था. लोग घरों को सौट रहे थे और रोजगार खत्म हो चुका था. ऐसे में जब कुछ जरूरतमंद महिलाओं ने हमसे संपर्क किया तो हमने उन्हें मास्क बनाने को प्रेरित किया. महिलाएं मास्क बनाती गईं और हम उनके मास्क को रिक्शे वालों, ठेले वालों और अन्य गरीबों को बांटते थे. इससे उन महिलाओं को रोजगार मिल गया और गरीबों को कोरोना से बचाव के लिए मास्क. इसी तरह हम लोगों ने प्रवासियों के लिए भोजन भी तैयार किए. रोजाना करीब दो सौ से ढाई सौ पैकेट हमारी संस्था के लोग मिलकर तैयार करते थे जिसे इज्जत नगर पुलिस खुद ही कलेक्ट करने आ जाती थी.’

डा. प्रीति सिंह को सम्मानित करते पूर्व मंडलायुक्त रणवीर प्रसाद.

डा. प्रीति की समाजसेवा का तरीका एकदम जुदा है. वह किसी संस्था या पब्लिसिटी हासिल करने के लिए जरूरतमंदों की मदद नहीं करतीं बल्कि गरीबों की तकदीर संवारने के लिए हर संस्था के साथ खड़ी नजर आती हैं. वह बेबस बच्चों की मदद तो करती हैं लेकिन इस तरह से मदद करती हैं कि बच्चों की मदद भी हो जाए और उनका स्वाभिमान भी कम न होने पाए. इसका उदाहरण देते हुए प्रीति कहती हैं, ‘समाजसेवा का मतलब सिर्फ दान देकर फोटो खिंचवाना ही नहीं होता बल्कि आप चाहें तो बच्चों का मनोबल बढ़ाते हुए भी उनकी मदद कर सकते हैं. हमें जब मालूम हुआ कि एक सरकारी स्कूल में बच्चों को किताबें, खाना आदि तो मिल जाता है पर कॉपी, पेंसिल, पेन आदि चीजें नहीं मिल पातीं तो हमने बच्चों की मदद का एक ऐसा तरीका निकाला जिससे उनके स्वाभिमान को ठेस न पहुंचे. हमने बच्चों के बीच अलग-अलग कॉम्पिटिशन कराए ताकि हर बच्चा पार्टिसिपेट करे. उनमें जो बच्चे जीते उन्हें तो ईनाम दिया ही गया साथ ही उन बच्चों सभी बच्चों को भी ईनाम दिया गया जिन्होंने प्रतियोगिता में पार्टिसिपेट किया था. इस तरह हमने हर बच्चे को उसकी जरूरत का सामान भी दे दिया और बच्चे के स्वाभिमान को ठेस भी नहीं पहुंची बल्कि उन्हें यह गर्व महसूस हुआ कि उन्होंने प्रतियोगिता जीतकर अपनी जरूरत की चीज हासिल की.’

पति और पिता के साथ डा. प्रीति सिंह

डा. प्रीति अक्सर वॉट्सएप ग्रुपों में अचार, कचकी पापड़ या बाजरे की रोटी जैसी चीजें बेचती नजर आती हैं. एक साइंटिस्ट की पत्नी और संभ्रांत परिवार से ताल्लुक़ रखने के बावजूद ऐसी क्या जरूरत पड़ी कि डा. प्रीति ये सब चीजें बेचने लगीं? पूछने पर प्रीति बताती हैं, ‘मेरे पास जो गरीब महिलाएं आती हैं उन्हें एक बार कुछ रुपयों की मदद करने की जगह आत्मनिर्भर बनाना हमारा प्रमुख लक्ष्य होता है. बाजरे की रोटी और कचरू पापड़ बेचना भी इसी का हिस्सा है. जब मेरे पास कोई महिला आती है तो सबसे पहले मैं यही पूछती हूं कि ऐसा कौन सा काम है जिसे वह बेहतर तरीके से कर सकती हैं. फिर हम उसे वही काम देते हैं और उसके द्वारा बनाए गए उत्पादों को हमारी संस्था से जुड़े करीब बीस लोग तो खरीदते ही है, अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं. इससे महिलाओं को अपने उत्पादों के लिए एक प्लेटफार्म मिल जाता है और हमारा मकसद पूरा हो जाता है.’
समाजसेवा की राह में सबसे बड़ी बाधा फंड की होती है. एक-दो बार तो कोई भी सक्षम व्यक्ति अपनी जेब से मदद कर सकता है लेकिन बार-बार मदद करना संभव नहीं है. ऐसे में प्रीति फंड की व्यवस्था किस तरह से करती हैं? पूछने पर वह कहती हैं, ‘हमें फिलहाल कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही. संस्था के सदस्य अपने स्तर से ही फंड देते हैं या अपने जानने वालों से मदद लेते हैं. जैसे मुझे मेरे भाई, बेटे, उनके दोस्त आदि मदद करते हैं. इन सबके अलावा संस्था की ओर से कुछ उत्पाद तैयार करवाकर बाजार में बेचे भी जाते हैं जिससे उत्पाद तैयार करने वालों का खर्च समेत संस्था के लिए भी कुछ फंड जमा हो जाता है. पिछली दीपावली पर हमने दियों की टोकरी को डिजाइन कर एक खूबसूरत गिफ्ट पैक तैयार किया था जिसे बाजार में काफी पसंद भी किया गया. इससे काफी फंड भी इकट्ठा हुआ और गरीबों को रोजगार भी मिला.’
डा. प्रीति खेल जगत फाउंडेशन, एक उम्मीद और आगरा की संस्था रिवाज समेत कई संस्थाओं के साथ मिलकर भी काम कर चुकी हैं. वह इन संस्थाओं का हिस्सा नहीं हैं मगर जरूरतमंदों की मदद के मकसद ने उन्हें इनके साथ जुड़ने को बाध्य किया. डा. प्रीति खुद को सीमाओं में बांधना नहीं चाहतीं. जरूरतमंदों की मदद के लिए वह बहुत कुछ करना चाहती हैं. फिलहाल उनका सफर जारी है. अपने अनोखे कार्यों की वजह से वह औरों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई हैं.

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