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बेहद हास्यास्पद हैं डा. शालिनी पर लगाए गए लज्जा भंग करने के आरोप, कहीं जान-बूझ कर साजिश का शिकार तो नहीं बना रहे विरोधी?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
शहर के प्रतिष्ठित गंगाशील अस्पताल की जानी-मानी महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. शालिनी माहेश्वरी इन दिनों सुर्खियों में हैं. उन पर खुशलोक अस्पताल के डा. मुनाजिर की सरकारी डॉक्टर पत्नी ने अप्रशिक्षित पुरुष कर्मचारी से प्रसव करवाकर लज्जा भंग करने और लापरवाही के आरोप लगाए हैं. लापरवाही बरतने के आरोप तक तो ठीक था लेकिन लज्जा भंग करने का आरोप लगते ही पूरा मामला संदेह के घेरे में आ जाता है. कोलकाता के जीडी नर्सिंग होम के जाने माने स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. आर. एल. हेंब्रम का दो दिन पूर्व ही निधन हुआ है. लगभग 25 वर्ष पूर्व जब उनके इलाके में कोई स्त्री रोग विशेषज्ञ नहीं था तो कई महिलाओं को प्रसव के दौरान अपनी जान गंवानी पड़ती थी. इलाके के लोग इतने गरीब थे कि शहर जाकर इलाज का खर्च उठा पाना उनके लिए संभव नहीं था. उस वक्त डा. हेंब्रम ने स्त्री रोग विशेषज्ञ बनने का निर्णय लिया और हजारों महिलाओं की जिंदगी बचाई. अगर उन महिलाओं की सोच भी डा. सायमा की तरह होती तो शायद उन सभी महिलाओं की लज्जा भंग हो चुकी होती और डा. हेंब्रम सलाखों के पीछे होते.

डा. आऱएल हेंब्रम

जनसेवा अस्पताल के संचालक डा. मो. खालिद बताते हैं कि जब एक डाक्टर अपने मरीज का इलाज अथवा ऑपरेशन कर रहा होता है तो वह न तो पुरुष होता है और न ही महिला. उस वक्त वह सिर्फ एक डॉक्टर होता है और उसका फोकस सिर्फ अपने मरीज की जिंदगी बचाना होता है. वह बताते हैं कि कई ऐसे टेस्ट होते हैं जो महिला हो या पुरुष कपड़े उतारे बिना नहीं किए जा सकते. जब ऑपरेशन होता है तो मेल स्टाफ भी साथ होता है. अगर इसे लज्जा भंग होने के नजरिये से देखने लगें तो दुनिया का हर सर्जन सलाखों के पीछे होना चाहिए.

डा. मोहम्मद खालिद

आज समय बदला है और अब बड़ी संख्‍या में महिला मरीज (Female Patient) पुरुष गाइनिकॉलजिस्ट (Male Gynecologist) के पास पहुंच रही हैं, बिना किसी हिचकिचाहट के. डॉक्‍टरी पेशे में महिला हो या पुरुष यह मायने नहीं रखता. अहमियत इस बात की है कि डॉक्‍टर (Doctor) अपने पेशेंट की समस्‍या को कितनी अच्‍छी तरह समझ कर दूर कर सकता है. ऐसे में यह आरोप अपने आप बेमायनी हो जाता है कि पुरुष स्टाफ से इलाज कराने में लज्जा भंग होती हैं. दिल्‍ली के एम्‍स अस्‍पताल में रह चुके डॉ. बिस्‍वा भूषण दास (Dr. Biswa Bhushan Dash) आज कल दिल्‍ली के रिजॉइस हॉस्पिटल (Rejoice Hospital) में गाइनिलेप्रोस्‍कोपिक सर्जन के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
डॉ. बिस्‍वा भूषण दास का कहना है कि प्रैक्टिस की शुरुआत में कुछ दिक्‍कतें आईं मगर आज हालात बेहतर हैं. अब महिलाएं पुरुष डॉक्टरों से इंटरनल चेकअप कराने में ज्यादा नहीं झिझकतीं. हालांकि उन्‍होंने यह भी कहा कि उत्तर भारत में पुरुष गाइनिकॉलजिस्ट को उतने खुले तौर पर स्वीकार नहीं किया जाता जितना कि मुंबई, कोलकाता या उड़ीसा आदि शहरों में. वह कहते हैं कि ‘ऐसा नहीं है कि फीमेल ही फीमेल का इलाज कर सकती हैं. दरअसल, इसको लेकर लोगों की सोच गलत है. मैं उड़ीसा से हूं और वहां ज्‍यादातर पुरुष गाइनकॉलजिस्ट होते हैं. जो सोच पुरुष गाइनकॉलजिस्ट को लेकर उत्तर भारत में है, वह उड़ीसा में कभी नहीं रही.’

डा. बिस्वा भूषण

जब उन्होंने दिल्‍ली में प्रैक्टिस शुरू की थी तो यहां चार-पांच पुरुष गाइनकॉलजिस्ट ही थे मगर आज पचास से ज्‍यादा हैं. दरअसल, यह चीज पेशेंट के माइंड से भी हट गई है अब. आज वह हालात बिल्‍कुल भी नहीं हैं. दरअसल, जो लोग शिक्षित थे और अच्‍छी सोसायटी से थे, वे लोग कभी इस बात को लेकर नहीं चले. मगर जो अशिक्षित तबके से थे वे सोचते थे कि साथ में सास भी है, ससुर भी है और पति भी तो ऐसे में पुरुष डॉक्‍टर को कैसे दिखाएं. हालांकि साउथ दिल्‍ली में प्रैक्टिस करते हुए उनके साथ यह प्रॉब्‍लम कभी नहीं हुई. दरअसल, जो नजरिया उस समय लोगों का था, वह फिलहाल अब बिल्‍कुल नहीं रहा लेकिन डॉ. सायमा और उनके पति के आरोप उस वक्त लगाए गए जबकि प्रसव के बाद एक स्वस्थ बच्चा उनकी गोद में खेल रहा था.
बहरहाल, चूंकि खुशलोक अस्पताल और गंगाशील अस्पताल दोनों ही प्रतिष्ठित अस्पताल हैं और दोनों ही जानते हैं कि एक छोटी सी लापरवाही उनकी छवि को धूमिल कर सकती है. ऐसे में डा. शालिनी माहेश्वरी द्वारा लापरवाही बरतने की बात गले से नीचे नहीं उतरती. हैरानी की बात तो यह है कि डा. मुनाजिर जिस खुशलोक अस्पताल में काम करते हैं उन्होंने अपनी पत्नी का इलाज कराने के लिए उस खुशलोक अस्पताल को नहीं चुना, शायद उन्हें खुशलोक अस्पताल के डॉक्टरों पर भरोसा नहीं रहा होगा. डा. सायमा खुद एक सरकारी डॉक्टर हैं लेकिन वह अपने प्रसव के लिए सरकारी अस्पताल नहीं गईं क्योंकि शायद उन्हें भी सरकारी अस्पताल पर भरोसा नहीं रहा होगा. जब तक प्रसव नहीं हुआ तब तक सब ठीक था लेकिन स्वस्थ बच्चा होते ही डा. शालिनी माहेश्वरी एक विलेन बन गईं. बहरहाल, हकीकत जो भी हो उसका फैसला तो अदालत करेगी लेकिन लज्जा भंग करने जैसे आरोप डा. शालिनी के खिलाफ किसी बड़ी साजिश की ओर इशारा जरूर कर रहे हैं. अगर पुलिस सही तरीके से मामले की जांच करे तो कई अहम खुलासे हो सकते हैं.

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