मन आज व्यथित हो गया हैl आज इज्जत नगर वर्कशॉप में हमारे दो साथियों का देहांत हो गया हैl सांस लेने में दिक्कत होने के कारण दोपहर के 2:00 बजे मंडल चिकित्सालय इज्जत नगर में रमेश कुमार (सी आर एस शोप) को भर्ती कराया गया और शाम के 4:30 बजे वेंटिलेटर न होने के कारण उनकी सांसें थम गईंl मैंने शाम को 5:00 बजे से 7:00 बजे तक मंडल चिकित्सालय इज्जत नगर में उपस्थित होकर जो मंजर देखा उसी से अपने आप को काफी असहाय महसूस कियाl अस्पताल में ऑक्सीजन की तो कमी नहीं थी पर वेंटिलेटर नहीं होने के कारण लोगों को तड़प-तड़प कर आंखों के सामने मरते देखाl अस्पताल में सीएमएस सर, डॉक्टर बीएन चौधरी, डॉ मनोहर सर उन सबको भी काफी असहाय होते हुए देखा. वह भी काफी परेशान हैरान थे, कुछ न कर पाने की स्थिति में मुझसे बातें साझा कर रहे थे कि जिन मरीजों को वेंटिलेटर में होना चाहिए उन्हें वेंटिलेटर नसीब नहीं हो रहा था. वह दूसरी जगह ले जाने को कह रहे थे पर जब मैंने बताया कि पूरे बरेली शहर में प्रत्येक अस्पताल में यही हालत हैl अभी 19/04/21 की ही बात है जब मैं और सतीश बघेल रात के 11:30 बजे से 03:30 बजे तक आनंद सरन को लेकर रेलवे अस्पताल से गंगाशील, मिशन और लास्ट में राममूर्ति अस्पताल में भर्ती करा पाये थे l आईसीयू के लिए पिछले दो-तीन दिनों से मेरे पास भी 10 से 15 जरूरतमंदों का फोन आया पर मैं 10 दिनों में 5-6 जरूरतमंदों को ही अस्पताल में भर्ती करा पाया थाl 15 से 20 जरूरतमंदों का फोन ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए मेरे पास आया जिसमें से 4 जरूरतमंदों को ही ऑक्सीजन सिलेंडर दिलवा पायाl मेरे सामने ही कोविड वार्ड में 2 और मरीजों ने उसी समय दम तोड़ दिया. उन्हें भी वेंटिलेटर के लिए दूसरी जगह ले जाने को कहां गया था पर उनके परिवार वाले भी असहाय थेl उसी समय मेरे पास मेरे एक सहकर्मी हरीश बाबू जी का फोन आया कि हमारे एक सहकर्मी सिंहराय मुर्मू (समय कार्यालय)भी कोविड वार्ड में भर्ती हैं जिनकी तबीयत भी खराब हो रही है. जरा डॉक्टर से कहकर उनको दिखा दीजिये. तब मैंने डॉक्टर से cabin-3 में भर्ती मुर्मू जी की तकलीफ बतायी ही थी कि तभी हमारे एक सहकर्मी मोहम्मद रहीस (इंस्पेक्शन सेक्शन) जिनको लेकर उनके घरवाले आये थे उसका भी ऑक्सीजन लेवल 58 था, भर्ती कराया गया. उनको भी हो सके तो वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है पर मजबूरी में भर्ती कराया गयाl तब तक मैं और रमेश के घरवाले रमेश जी को श्मशान ले जाने के लिए बड़ी मुश्किल से एक एम्बुलेंस को 2000/ में ठीक कर पाए और उनके घरवालों को ढांढस बंधाकर और रहीस के घरवालों से बात कर डॉक्टर से मुर्मू को कैबिन में जाकर देखने को कहकर अपने सहकर्मी सुदर्शन शर्मा के साथ दुखी मन से हास्पिटल से निकला और मन ही मन सोचा कि मैं तो कुछ भी नहीं कर पाया सिवाय 2 घंटे वहां बिताने के…भगवान ऐसा असहाय कभी मत बनाना कि मैं कभी किसी के काम न आ सकूं. भगवान अजय श्रीवास्तव और रमेश की आत्मा को शांति प्रदान करना.
-पंकज, रेलवे कर्मी, कोविड अस्पताल से आंखों देखी
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