नीरज सिसौदिया, बरेली
कोरोना महामारी ने हजारों जिंदगियां निगल लीं. किसी के सिर से मां-बाप का साया उठ गया तो किसी की गोद सूनी हो गई. मौत के खौफ ने लोगों को घरों में कैद रहने पर मजबूर कर दिया. मौत की महामारी ने मंत्री और विधायकों को भी निगल लिया. कई पार्षद और समाजसेवी भी इसकी चपेट में आने के बाद घरों पर बैठ गए. इस सबके बावजूद बरेली शहर के तीन चेहरे ऐसे हैं जो जान हथेली पर लेकर पिछले लगभग एक साल से लगातार कोरोना जांच कैंप का आयोजन कर रहे हैं. इनमें दो पार्षद हैं तो तीसरे समाजसेवी. ये तीनों दोस्त मिलकर पिछले लॉकडाउन से अब तक लगातार कैंप लगवा रहे हैं. इनमें पहला नाम वार्ड 23 के पार्षद और बरेली विकास प्राधिकरण के सदस्य सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा का है. मम्मा समाजसेवा में उल्लेखनीय योगदान के लिए जाने जाते हैं. बात जब जनहित की आती है तो वह अपनी पार्टी के नेताओं का विरोध करने से भी पीछे नहीं हटते. अपनी इसी बेबाकी और जनता की लड़ाई लड़ने की वजह से ही मम्मा आज तक कभी पार्षद का चुनाव नहीं हारे.

मम्मा बताते हैं, ‘पिछले साल जब कोरोना महामारी ने कहर बरपाना शुरू किया तो मैंने अपने मित्र एवं वार्ड 50 के पार्षद आरेंद्र अरोड़ा कुक्की और समाजसेवी संजय डंग के साथ कोरोना जांच कैंप लगाने पर चर्चा की. इस पर सभी सहमत हो गए और पिछले साल अप्रैल माह में जनकपुरी से कैंप की शुरुआत की गई. पहले दिन से ही मम्मा, कुक्की और संजय डंग कैंप में लगे हुए हैं. कभी सुबह आठ बजे से तो कभी नौ बजे से कैंप शुरू हो जाता था. सर्दी हो, गर्मी हो या बरसात, कैंप का सिलसिला चलता रहा. बीच में लगभग एक माह तक कुछ कारणों से कैंप का आयोजन नहीं किया जा सका था पर उसके बाद से लगातार कैंप लगाया जा रहा है.’

कैंप के आयोजन स्थल को लेकर कई बार उन्हें आपत्तियों का सामना भी करना पड़ा. मम्मा बताते हैं, ‘जनकपुरी में कुछ समय कैंप लगाने के बाद हमने महावीर होटल के सामने कैंप लगाया. चूंकि कोरोना का प्रसार रोकने के लिए ट्रेसिंग सबसे जरूरी है जो बिना कैंप के संभव नहीं है. महावीर होटल के सामने कुछ समय तक तो सब ठीक रहा. लोग रोजाना जांच कराने भी आते थे लेकिन कुछ समय बाद लोगों ने वहां शिविर लगाने पर आपत्ति जताई. इसके बाद हमने मनोहर भूषण इंटर कॉलेज के बाहर शिविर लगाना शुरू कर दिया. कोरोना संक्रमितों की ट्रेसिंग का सिलसिला चलता रहा. मनोहर भूषण इंटर कॉलेज के बाहर कोरोना की दूसरी लहर में भी जांच चलती रही. कुछ समय बाद यहां अभिभावकों ने आपत्ति जताई तो कैंप स्थल फिर से बदलना पड़ा और वर्तमान में पिछले काफी समय से शील चौराहा राजेंद्र नगर पर कैंप का आयोजन किया जा रहा है.’
कैंप के आयोजन के दौरान कोरोना की दूसरी लहर में मम्मा की तबीयत अचानक ज्यादा बिगड़ गई थी. वह 15 दिन तक बिस्तर पर रहे लेकिन उनका जज्बा कम नहीं हुआ.
मम्मा बताते हैं, ‘जब मैं बीमार हुआ और कैंप तक जाने में असमर्थ था तो भी कैंप का कार्य प्रभावित नहीं हुआ. मेरे मित्र आरेंद्र अरोड़ा कुक्की और संजय डंग कैंप में पहले दिन से ही डटे रहे. मेरी बीमारी के दौरान भी उन्होंने मोर्चा संभाला. फिर जैसे ही मेरी तबीयत ठीक हुई मैं वापस कैंप में आने लगा.’



कोरोना जांच शिविर के चलते वार्ड में मरीजों की ट्रेसिंग हो पाई और कोरोना उतना विकराल रूप नहीं ले सका जितना कि अन्य इलाकों में ले चुका था. मम्मा, कुक्की और संजय डंग का प्रयास सिर्फ कोरोना जांच तक ही सीमित नहीं रहा. मम्मा बताते हैं कि जहां संक्रमित निकलते थे वहां नगर निगम के अधिकारियों से कहकर वह सैनेटाइजेशन कराते थे. जिस इलाके को कंटेनमेंट जोन घोषित किया जाता था वहां भी सतर्कता का पूरा ख्याल रखा जाता था. फिलहाल इलाके में कोरोना की चेन टूट चुकी है. अब रोजाना दो-चार सामान्य मरीज ही मिलते हैं. जो होम आइसोलेशन से ही आसानी से ठीक हो जाते हैं. संक्रमितों को जरूरी दवाओं और उचित परामर्श की व्यवस्था भी कराई जाती है. शिविर में समय-समय पर शहर विधायक डा. अरुण कुमार और उनके भाई एडवोकेट अनिल कुमार भी उपस्थिति दर्ज कराने आते रहे हैं. शिविर के संचालन में उनका पूरा सहयोग मिलता रहा है.
बहरहाल, जिस तरह से सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा, आरेंद्र अरोड़ा कुक्की और संजय डंग लगातार अपनी जान की परवाह किए बिना कोरोना जांच शिविर में मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं वह बरेली के कथित समाजसेवियों और नेताओं के लिए प्रेरणा स्रोत है. बरेली में कैंप तो बहुत लगे मगर कहीं और सेवा का यह जज्बा देखने को नहीं मिला जो यहां मिला.