बरगद जैसी छाया में,
हम सब सुख से रहते हैं।
और जटा सी बाँहों में,
सदा झूलते रहते हैं।
अंधेरी रात में भी वह,
सुधाकर से चमकते हैं।
भविष्य की राह में भी वह,
दिवाकर से विलसते हैं।
जलधि जैसे गम्भीर हैं,
अम्बर जैसी विशालता
पाहन ह्र्दय में है निहित,
भरी ममता सी कोमलता
कभी मेले खिलौनों को,
दिलाने मे सदा तत्पर।
सदैव पूरी करते हैं ,
हमारी माँग को सत्वर ।
हमारी दुनिया वह हैं तो,
हम भी उनके जहान हैं।
हमारी खुशी मे ही तो,
वसी उनकी भी जान है।
खिलाके बच्चों को रोटी,
वे भूखे पेट सोते हैं।
फटे जूते, पहन कपड़ें,
उनका तन भी ढकते हैं।
हमारे सुख में हों सुखी,
दु:खों में साथ होते हैं।
बीमारी में जो जागे ,
पिता ऐसे ही होते हैं।
हमारी उगंली पकड़ कर,
जो दुनिया दिखलाते हैं।
सही और गल्त का फर्क,
हमें वही सिखलाते हैं
हमारा धर्म यह है हम,
उनके पाँवों को छूलें।
हमारा कर्म भी यह है,
बुढापे में भी ना भूलें।
कभी सोचा नहीं था यह,
बुढ़ापा हमें आयेगा।
खिलाते थे उन्हे जिसमें,
वक्त हमको खिलायेगा।
कहने से होता है क्या,
कर्म पूरे तभी होगें।
तब होगी सच्ची सेवा,
वृद्धाश्रम खाली होगे।
तब परिवार पूर्ण होगें,
घर खुशियों के डेरे हों,
वृद्ध माँ -बाप घर में हों।
बच्चों के भी घेरे हो।,
लेखिका-प्रमोद पारवाला, बरेली