नीरज सिसौदिया, बरेली
अतीत के पन्नों पर कोरोना काल कई अच्छी-बुरी यादों के रूप में दर्ज हो चुका है. कहीं मानवता शर्मसार हुई तो कहीं मानवता की मिसालें भी देखने को मिलीं. कुछ ऐसे मौके भी आए जब जनप्रतिनिधियों को जनता का कोपभाजन बनना पड़ा तो कुछ ऐसे सियासतदान भी दिखाई दिए जो जान हथेली पर रखकर बेबस और जरूरतमंदों का सहारा बने. ऐसी ही एक शख्सियत हैं बरेली के मेयर डा. उमेश गौतम, जो कोरोना काल में जान हथेली पर रखकर शहर की सड़कों पर जरूरतमंदों की मदद करते नजर आए. कभी बेबसों का सहारा बने तो कभी लापरवाह लोगों को जिंदगी की कीमत और कोरोना की भयावहता को समझाते नजर आए. कोरोना काल में मेयर डा. उमेश गौतम ने जो कार्य किए वह न सिर्फ सराहनीय हैं बल्कि उन सियासतदानों के लिए एक मिसाल भी हैं जो कोरोना के खौफ से घरों में दुबके रहे. इनमें विपक्षी ही नहीं सत्ता पक्ष के भी कई सियासतदान शामिल हैं. इस मुश्किल दौर में मेयर ने घर-घर जाकर मास्क, राशन और भोजन वितरण से लेकर निर्धन बेटियों के विवाह तक के कार्य किए. उन्होंने कोरोना प्रभावित परिवारों के लिए नि:शुल्क भोजन की होम डिलीवरी की व्यवस्था भी की.
मेयर डा. उमेश गौतम बताते हैं, ‘कोरोना महामारी देश ही नहीं समूचे विश्व के लिए संकट का दौर था. ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण लोगों के मन से डर को निकालना था. जब किसी परिवार का एक व्यक्ति संक्रमित होता था तो पूरा परिवार प्रभावित हो जाता था. ऐसे में पड़ोसी न तो उनकी मदद करने को तैयार थे और न ही उस परिवार को घर से बाहर निकलने दे रहे थे. इन परिस्थितियों में यह परिवार भोजन कैसे कर सकता था? जब ऐसे हालात सामने आए तो हमने 26 लोगों की एक टीम तैयार की. इनमें 12 लोगों को पौष्टिक आहार तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया तो 12 लोगों को होम आइसोलेशन में रह रहे कोरोना प्रभावित परिवारों तक भोजन पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई. दो लोगों के सुपरविजन में यह पूरा कार्य किया गया. किचन ब्वॉयज से लेकर डिलीवरी ब्वायज तक का कोरोना टेस्ट कराया जाता था. धीरे-धीरे जब लोगों को इस सेवा के बारे में पता चला तो भोजन मंगाने वालों का आंकड़ा बढ़ता गया. रोजाना लगभग पांच सौ से भी अधिक लोगों का दोनों वक्त का भोजन हमारी रसोई में तैयार होता था.’
कोरोना काल में कुछ सामाजिक संस्थाएं भी भोजन वितरित कर रही थीं लेकिन उनमें कोई 70 रुपये की थाली दे रही थी तो कोई बीस या तीस रुपये प्रति थाली के वसूल कर रही थीं मगर मेयर डा. उमेश गौतम की ओर से दोनों वक्त का भोजन नि:शुल्क दिया जा रहा था. डा. उमेश गौतम बताते हैं, ‘कोरोना काल में लोगों के रोजगार छिन गए थे, व्यापार भी चौपट हो रहे थे, आय का कोई साधन नहीं था, ऐसे में हमने नि:शुल्क भोजन देने का निर्णय लिया. रामपुर गार्डन जैसे पॉश इलाके से लेकर मढ़ीनाथ और सीबी गंज जैसे इलाकों तक हमने नि:शुल्क भोजन वितरित किया. लगभग एक माह दस दिन तक हमने नि:शुल्क भोजन सेवा जारी रखी जिसमें शहर का कोई भी ऐसा कोना नहीं बचा जहां भोजन डिलीवर न किया हो.’
मेयर की समाजसेवा का दायरा सिर्फ भोजन वितरण तक ही सीमित नहीं रहा. उन्होंने सैनेटाइजेशन का महाभियान भी चलाया और खुद मौके पर मौजूद भी रहे. मेयर बताते हैं, ‘वह बड़ा मुश्किल दौर था. खुद को सुरक्षित रखते हुए लोगों की सुरक्षा की व्यवस्था करता बेहद चुनौतीपूर्ण था. लोगों की सुरक्षा में किसी तरह की लापरवाही न हो इसलिए मैंने खुद सैनेटाइजेशन की कमान संभाली. संक्रमितों का आंकड़ा रोज बढ़ता जा रहा था. जहां-जहां संक्रमित मिलते वहां-वहां सैनेटाइजेशन कराना जरूरी होता था. कई बार तो स्थिति ऐसी हो गई कि एक-एक दिन में 11-11 सौ प्वाइंट में सैनेटाइजेशन कराना पड़ा. फिर भी हमने हार नहीं मानी और हमारी साहसी टीम की वजह से हम कोरोना से लगातार लड़ते रहे.
कोरोना ने कई राजनेताओं की जिंदगी भी निगल ली थी. खुद भाजपा के नवाबगंज विधायक केसर सिंह गंगवार मौत के आगोश में समा गए. इसके बावजूद मेयर डा. उमेश गौतम घर-घर जाकर लोगों को राशन बांटते रहे. साथ ही गली-मोहल्लों और सब्जी की दुकानों एवं ठेले वालों को मास्क वितरित कर जागरूक करते नजर आए. क्या मेयर को अपनी जान का डर नहीं लगा? पूछने पर मेयर उमेश गौतम कहते हैं, ‘चूंकि हम भी इंसान हैं इसलिए डर तो लगता था. जब आप किसी जिम्मेदार पद पर होते हैं तो मुश्किल दौर में अपने कर्तव्य से मुंह कैसे मोड़ सकते हैं. जनता ने हमें इसलिए मेयर नहीं चुना कि जब जनता को हमारी सबसे ज्यादा जरूरत हो तो हम अपने घरों में बैठ जाएं. यही वक्त था सही मायनों में अपने कर्तव्य का निर्वहन करने का और हमने पूरी कोशिश की अपने कर्तव्य का ईमानदारी के साथ निर्वहन करने की. हम सुरक्षा का पूरा इंतजाम करने के बाद ही बाहर निकलते थे. गली-गली घूमे और आज भी सुरक्षित हैं.’
कोरोना काल में मेयर डा. उमेश गौतम के सराहनीय कार्यों की सूची बहुत लंबी है. इनमें एक उल्लेखनीय कार्य गरीब बेटियों की शादी के सपने को हकीकत में बदलना भी है. लॉकडाउन के दौरान मेयर डा. उमेश गौतम के सहयोग से तीन निर्धन बेटियों का घर बस सका. इनमें एक बेटी ऐसी भी थी जिसकी मां बेटी की शादी का अरमान लिए ही इस दुनिया से रुखसत हो गई. उसके पिता लकवाग्रस्त हो गए. इस बेटी का नाम लक्ष्मी है. उसकी शादी पीलीभीत निवासी बलवीर पुत्र फतेहलाल से 22 मई को होनी तय थी लेकिन मां की मौत और पिता के लकवाग्रस्त होने के कारण उसका यह अरमान टूटता नजर आ रहा था. मेयर को जब इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने बेटी की शादी की जिम्मेदारी उठाई और तय तिथि पर ही पूरे सम्मान के साथ लक्ष्मी की डोली विदा की. शादी का खर्च स्वयं मेयर डा. उमेश गौतम ने ही उठाया. लक्ष्मी के अलावा दो और बेटियों का विवाह भी मेयर की बदौलत ही संभव हो सका.
कोरोना काल में कुछ सामाजिक संस्थाएं भी लोगों की मदद करने में जुटी थीं. इनमें एक नाम टर्बन एड का भी है. पंजाबी समाज के युवाओं की इस संस्था ने भी उल्लेखनीय कार्य किया. मेयर डा. उमेश गौतम कहते हैं, ‘टर्बन एड संस्था के सदस्य अच्छा कार्य कर रहे थे. मुझे जब इसकी जानकारी मिली तो मैं भी उनका उत्साह बढ़ाने मौके पर गया और उनके कार्य में सहयोग भी किया. इतना ही नहीं जब ऑक्सीजन लंगर शुरू हुआ तो मैंने उसमें भी मौके पर जाकर सहयोग किया.’
मेयर डा. उमेश गौतम महापौर होने के साथ ही मिशन अस्पताल के डायरेक्टर भी हैं. एक तरफ जहां शहर में विनायक अस्पताल और महेंद्र गायत्री अस्पताल जैसे अस्पताल संचालक जनता से लूट खसोट करने में जुटे थे. सरकार द्वारा तय रेट से भी दोगुने रेट वसूल रहे थे, वहीं मेयर डाक्टर उमेश गौतम ने मिशन अस्पताल में जरूरतमंदों का नि:शुल्क उपचार कराया. मेयर ने मिशन अस्पताल में गरीबों के लिए दो बेड नि:शुल्क आरक्षित कर दिए थे. इसकी वजह से दर्जनों लोगों को कोरोना काल में नि:शुल्क उपचार उपलब्ध हो सका.
मेयर की मेहरबानियों की चर्चा सिर्फ बरेली शहर में ही नहीं आसपास के इलाकों में भी खूब हुई. फरीदपुर के सनी को जब पता चला कि बरेली के मेयर डा. उमेश गौतम जरूरतमंदों की खुलकर मदद कर रहे हैं तो वह भी मेयर के पास पहुंचा और ट्राई साइकिल दिलाने की गुहार लगाई. मेयर ने अपने निजी सहायक सुभाष पांडेय को यह जिम्मेदारी सौंपी और एक दिन के अंदर सनी को ट्राई साइकिल उपलब्ध करा दी गई.
लॉकडाउन में महापौर उमेश गौतम द्वारा किए गए सराहनीय कार्यों के ये तो चंद उदाहरण मात्र हैं. मेयर के कार्यों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि उन्हें चंद शब्दों में समेटना संभव नहीं है. अपनी जान की परवाह न करते हुए लॉकडाउन में मेयर ने जिस तरह से कार्य किए हैं वह अन्य सियासतदानों के लिए एक नजीर हैं. अच्छे इंसान और अच्छे सियासतदान की पहचान बुरे वक्त में ही होती है. मेयर डा. उमेश गौतम ने यह साबित कर दिया है कि वह जनता के बुरे वक्त के सच्चे साथी हैं. अगर शहर के सभी सियासतदान मेयर उमेश गौतम की तरह जनसेवा के कार्य करते तो कोरोना से जंग बरेली शहर के लिए और भी आसान हो सकती थी. ऐसा नहीं है कि बरेली के सियासतदानों ने कोरोना काल में जनता की मदद नहीं की लेकिन जो जज्बा उमेश गौतम ने दिखाया वह किसी और में नजर नहीं आया. बहरहाल, लॉकडाउन में मेयर उमेश गौतम अपनी अमिट छाप छोड़ने में पूरी तरह कामयाब रहे.