यूपी

बरेली में पचास वर्ष पूर्व स्थापित हुआ था ‘तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर’

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निर्भय सक्सेना, बरेली

प्रत्येक आस्थावान व्यक्ति की यह कामना होती है कि वह कम से कम एक बार भगवान ‘तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर’ महाराज के दर्शन करके अपने मानव जीवन को धन्य कर लें। दक्षिण भारत में तिरुमला की पहाड़ियों पर स्थापित भगवान ‘तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर’ को कलियुग में साक्षात वैकुण्ठ माना जाता है। पर महंगी व कष्टसाध्य यात्रा होने के कारण अधिकांश परिवार कलियुग के वैकुण्ठ का दर्शन पूजन करने से वंचित रह जाते हैं । उनकी आस्था में आने वाली इस कभी को पूर्ण करने के लिए बरेली के राजेन्द्रनगर के पटेलनगर क्षेत्र में लगभग पचास वर्ष पूर्व ‘तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर’ की स्थापना की गयी थी। दक्षिण भारतीय वास्तुकला के अद्भुत नमूने के रूप में विख्यात पटेलनगर स्थित ‘तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर’ का वार्षिकोत्सव जून माह में प्रतिवर्ष परम्परागत ढंग से धूमधाम से मनाया जाता है।

मंदिर से जुड़े शंकर दास के अनुसार इस बार कोविड19 नियमों का पालन कर मंगलवार 22 जून 2021 को सांकेतिक वार्षिक पूजन हवन ही होगा। बरेली में बने इस ‘तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर’ का उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल जी. सी. रेड्डी ने 15 अप्रैल 1970 को उद्घाटन किया था। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां सभी पूजा अर्चना आंध्र प्रदेश में स्थापित मुख्य देव स्थान के अनुसार दक्षिण भारतीय ढंग से पुजारियों के द्वारा ही सम्पन्न करायी जाती है। दक्षिण भारतीय लोगों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए आई. वी. आर. आई. कर्मियों ने वर्ष 1969 में ‘तिरूपति बाला जी समिति’ बनायी थी।

बाद में इस कमेटी में मुख्य रूप से डा. एम.एस. शास्त्री, वैज्ञानिक डा. सदागोपालन, डा. जे. आर. राव, पूर्व एम. एल. सी. डा. ए पी सिंह, एम.आर. लघाटे, निर्भय सक्सेना, शंकर दास आदि को शामिल किया गया। वर्ष 1977 में मंदिर के साथ ही ‘मालती दलाल मंडपम’ का निर्माण कराया गया। दूर से ही लाल रंग के मंडपम वाले इस वेंकटेश्वर मंदिर की छटा देखते ही बनती है। स्थापत्य की दृष्टि से भी इसमें वास्तु शास्त्र का भी ध्यान रखा गया है। भगवान वेंकटेश्वर की विशाल मूर्ति के दर्शन से भक्तों को आत्मिक शांति मिलती है। मंदिर के दरवाजे पर ही तिलक, शंख, चक्र उत्र्कीण किये गये हैं बाद में मंडप के दायीं ओर गणेश जी और बायीं ओर अंडाल देवी, अन्नपूर्णा देवी की स्थापना की गई। इसके बाद मंदिर परिसर में पदमावती देवी, बजरंग बली, भगवान शंकर, दुर्गा माता, राधा कृष्ण के मंदिरों के साथ ही शनिदेव महाराजा एवं तुलसी का स्थल भी बनाया गया। मुख्य मंदिर और परिसर में अन्य मंदिरों का वास्तुशिल्प दक्षिण शैली का ही है और मंदिर के गेट पर दक्षिण भारत की परंपरा के अनुसार एक विशाल गोपुरम् भी बनाया गया है। मंदिर का संचालन कैम्फर का मालती दलाल ट्रस्ट करता है। ट्रस्टी डाॅ. ए. पी. सिंह के अनुसार मंदिर परिसर में शीघ्र हीअन्य कार्य कराने की भी योजना है। मंदिर के पुजारी मध्यम कुमार है। इस बार भी कोविड19 नियमों का पालन कर मंगलवार 22 जून 2021 को सांकेतिक वार्षिक पूजन हवन होगा।

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