कभी मीठा तो कभी
चीत्कार लिखता है।
कभी विपक्ष कभी
सरकार लिखता है।।
कलम का सिपाही
रुकता नहीं कभी।
हर बात वह तो
बार बार लिखता है।।
कभी आरपार कभी
कारोबार लिखता है।
कभी विसंगति और
प्रचार लिखता है।।
समाज राष्ट्र के हर
बिंदु को छूती कलम।
हर विषय की वह
भरमार लिखता है।।
कभी ओज तो कभी
श्रृंगार लिखता है।
कभी खिजा कभी
बहार लिखता है।।
खुशी गम के हर
पहलू को छूता वो।
कभी जीत तो कभी
हार लिखता है।।
कभी व्यंग तो कभी
सरोकार लिखता है।
कभी शांति कभी
अंगार लिखता है।।
छू जाती है कलम
दिल को कभी।
जब भावनाओं का
संसार लिखता है।।
सब पढ़ते हैं कि वो
जोरदार लिखता है।
कभी दबके या बन
सरदार लिखता है।।
हर हालात को वो
लिखता समझ कर।
सब कोई और नहीं
पत्रकार लिखता है।।
–एसके कपूर “श्री हंस”