नीरज सिसौदिया, बरेली
बरेली कैंट 125 विधानसभा सीट पर इस बार दिलचस्प मुकाबले की उम्मीद नजर नहीं आ रही. हमेशा की तरह इस बार भी भाजपा यहां हावी नजर आ रही है मगर चुनावी महासंग्राम से पहले भाजपा के अपनों के बीच सबसे बड़ा संग्राम बरेली की इसी सीट पर होता दिखाई दे रहा है. यहां भाजपा में दावेदारों की भरमार तो बिल्कुल भी नहीं है. सिर्फ चार ही दावेदार प्रमुख रूप से नजर आ रहे हैं लेकिन चारों ही दिग्गज हैं और संगठन से लेकर संघ तक गहरी पैठ भी रखते हैं. ऐसे में हाईकमान के लिए इस सीट पर प्रत्याशी का चयन आसान नहीं होगा.
दरअसल, भाजपा के 75+ फॉर्मूले की वजह से इस सीट पर यह स्थिति उत्पन्न हो रही है. भाजपा के इस फॉर्मूले के तहत जिन राजनेताओं की उम्र 75 वर्ष से अधिक है वह चुनाव नहीं लड़ सकेंगे और उन्हें संगठन में मार्गदर्शक मंडल या अन्य जिम्मेदारी सौंपी जाएगी. कैंट के वर्तमान विधायक और पूर्व मंत्री राजेश अग्रवाल इसी श्रेणी में शामिल हो चुके हैं. इसलिए अब उम्मीद जताई जा रही है कि पार्टी इस बार उनकी जगह किसी नए चेहरे को मौका देगी. अब यह नया चेहरा राजेश अग्रवाल के परिवार से होगा या फिर संगठन से, इस पर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी सकी है. अगर कैंट विधानसभा सीट पर कोई और दिग्गज नेता नहीं होता तो टिकट की लड़ाई इतनी मुश्किल नहीं होती लेकिन इस सीट पर राजेश अग्रवाल के अलावा तीन और बड़े चेहरे सियासी दौड़ में शामिल हैं.
भाजपा के टिकट के दावेदारों पहला नाम राजेश अग्रवाल के पुत्र मनीष अग्रवाल का सामने आ रहा है. हर किसी की जुबां पर यही सवाल है कि क्या राजेश अग्रवाल अपने व्यवसायी पुत्र को टिकट दिलाने में कामयाब हो पाएंगे?
समर्थकों का कहना है कि राजेश अग्रवाल ने सारी उम्र पार्टी की सेवा की है, इसलिए टिकट पर उनके बेटे का अधिकार बनता है. वहीं, अन्य दावेदारों के समर्थकों का कहना है कि राजेश अग्रवाल के बेटे को टिकट देकर पार्टी को कांग्रेसी परंपरा का निर्वहन नहीं करना चाहिए. उनका कहना है कि हर कार्यकर्ता का सपना पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने का होता है. अगर राजेश अग्रवाल ने पार्टी की सेवा की है तो पार्टी ने भी उन्हें वित्त मंत्री और राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष जैसे अहम पद का उपहार भेंट किया है. उनके बेटे मनीष अग्रवाल जब पार्टी की सेवा कर राजेश अग्रवाल के बराबर अपना सियासी वजूद स्थापित कर लें तो उन्हें भी पूरे सम्मान के साथ टिकट दिया जाना चाहिए लेकिन पिता की सेवा को देखते हुए मनीष अग्रवाल को टिकट देने से अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरेगा. उनका मानना है कि जब यह सुनिश्चित हो जाएगा कि पार्टी का टिकट एक ही परिवार को मिलना है तो कोई भी कार्यकर्ता पार्टी मेहनत क्यों करेगा? इन परिस्थितियों में पार्टी को नुकसान हो सकता है.
बहरहाल, टिकट की दौड़ में दूसरा बड़ा चेहरा प्रदेश सह कोषाध्यक्ष संजीव अग्रवाल का है. संजीव अग्रवाल वर्षों से भाजपा से जुड़े हुए हैं. उनके पिता का संघ से भी गहरा नाता रहा है. संजीव अग्रवाल एक व्यापारी हैं और अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने प्रदेश सह कोषाध्यक्ष तक का सफर तय किया है. उनकी दावेदारी काफी मजबूत मानी जा रही है.
कैंट से टिकट की कतार में शहर के प्रथम नागरिक डा. उमेश गौतम भी शामिल हैं. उमेश गौतम कैंट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं. उमेश गौतम के सियासी वजूद और संगठन में उनकी पैठ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह रातों रात भाजपा से मेयर पद का टिकट ले आए और डा. आईएस तोमर जैसे कद्दावर नेता को धूल चटाकर मेयर भी बन गए.
शहर में पिछले साढ़े तीन वर्षों में जो भी विकास कार्य हुए उनका क्रेडिट डायरेक्ट या इन डायरेक्ट रूप में कहीं न कहीं डा. उमेश गौतम को भी जाता है. ऐसे में मेयर की दावेदारी को नकारना भी पार्टी के लिए आसान नहीं होगा.
कैंट विधानसभा सीट से टिकट के चाह्वान दिग्गजों में एक और नाम भी शामिल है जिसकी अनदेखी आसान नहीं है. यह नाम है इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और शहर के जाने-माने ऑर्थो सर्जन डा. प्रमेंद्र माहेश्वरी का. डा. प्रमेंद्र माहेश्वरी संगठन और संघ दोनों में गहरी पैठ रखते हैं. शांत और सरल स्वभाव के डा. प्रमेंद्र माहेश्वरी की छवि भी साफ सुथरी है. सबसे विचारणीय पहलू यह है कि मेयर की जो टिकट डा. उमेश गौतम को पैराशूट के जरिये दे दी गई थी वह डा. प्रमेंद्र माहेश्वरी के ही पाले में आने वाली थी. मेयर की टिकट हाथ से फिसलने के बाद से ही डा. प्रमेंद्र माहेश्वरी कैंट विधानसभा सीट से टिकट की तैयारी में जुट गए थे.
डा. माहेश्वरी इस बार एकदम खामोशी से तैयारी कर रहे हैं क्योंकि वह जानते हैं कि थोड़ा सा भी शोर उनका खेल बिगाड़ सकता है. चूंकि यह सीट वैश्य बाहुल्य है इसलिए प्रमेंद्र माहेश्वरी का दावा और भी मजबूत नजर आता है.
अब बात करें समाजवादी पार्टी की तो कैंट विधानसभा सीट से लगभग ढाई दर्जन से भी अधिक दावेदारों ने टिकट के लिए आवेदन किया है मगर इनमें कोई भी चेहरा दिग्गजों की श्रेणी में नहीं आता. सभी चेहरे नए हैं और कुछ तो हाल ही में पार्टी में शामिल हुए हैं.
दरअसल, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के गठन के बाद समाजवादी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष, पूर्व सांसद और दिग्गज नेता वीरपाल सिंह यादव और पूर्व महानगर अध्यक्ष व पूर्व डिप्टी मेयर डा. मोहम्मद खालिद प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. जब तक उक्त दोनों दिग्गज पार्टी में थे तब तक कोई और नेता उनके कद की बराबरी नहीं कर सका. डा. मो. खालिद कैंट विधानसभा सीट से सपा का चेहरा हो सकते थे लेकिन उनके प्रसपा में शामिल होने के बाद इस कमी को कोई पूरा नहीं कर सका.
एक बड़ा चेहरा इं. अयूब हसन थे लेकिन उनके इंतकाल के बाद अब समाजवादी पार्टी के पास फिलहाल कोई बड़ा चेहरा नहीं रह गया है. हालांकि, सियासी जानकारों को मुस्लिम चेहरे के रूप में महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी का चेहरा नजर आ रहा है लेकिन उन्होंने टिकट के लिए दावेदारी नहीं की है.
एक बड़ा नाम पूर्व मेयर और दिग्गज नेता डा. आईएस तोमर का जरूर दिखाई देता है. डा. तोमर का चेहरा किसी परिचय का मोहताज भी नहीं लेकिन डा. तोमर को एक मामले में अदालत एक दिन की कैद और जुर्माने की सजा सुना चुकी है. डा. तोमर पर यह मुकदमा वर्तमान मेयर डा. उमेश गौतम ने किया था. अब यह मामला माननीय सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग चल रहा है जिसका फैसला अगर चुनाव से पहले उनके खिलाफ आ गया तो वह चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. तोमर के साथ परेशानी यह भी है कि तोमर जाट हैं और कैंट विधानसभा सीट के जातीय समीकरण उनके अनुकूल नहीं हैं. यहां वैश्य अथवा मुस्लिम ही निर्णायक भूमिका में हैं.
ऐसे में समाजवादी पार्टी के लिए इस सीट से जिताऊ प्रत्याशी उतारना बड़ी चुनौती है. हालांकि, चर्चा है कि समाजवादी पार्टी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन होने जा रहा है जिसके बाद बरेली की बिथरी और कैंट विधानसभा सीट प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के खाते में जा सकती है. पिछले दिनों एनडीटीवी के एक कार्यक्रम में अखिलेश यादव ने इसके संकेत भी दिए थे. अखिलेश ने कहा था कि उन्होंने अपने चाचा शिवपाल यादव से राजनीति में बहुत कुछ सीखा है और वह भाजपा को रोकने के लिए किसी भी पार्टी से गठबंधन के लिए तैयार हैं. इस कार्यक्रम में अखिलेश ने राष्ट्रीय राजनीति में गठबंधन का चेहरा बनने की अटकलों पर विराम लगाते हुए इतना जरूर कहा था कि दिल्ली का चेहरा यूपी से ही आएगा.
बहरहाल, समाजवादी पार्टी के चेहरे को लेकर कैंट विधानसभा सीट में अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है. जिस तरह से अखिलेश यादव ने एनडीटीवी के कार्यक्रम में राहुल गांधी और कांग्रेस को लेकर विचार प्रस्तुत किए थे उससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहते हैं. अगर ऐसा हुआ तो कैंट विधानसभा सीट निश्चित तौर पर सपा के खाते में नहीं आएगी.