इंटरव्यू

महिलाओं का चीरहरण महाभारत के बाद भाजपा सरकार में ही हुआ है, भाजपा को हराने के लिए विपक्ष को एकजुट होना ही होगा, मुसलमान किसी का वोट बैंक नहीं, पढ़ें पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव का बेबाक इंटरव्यू

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मुस्लिमों को समाजवादी पार्टी का वोट बैंक माना जाता रहा है लेकिन पूर्व राज्यसभा सांसद और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रदेश मुख्य महासचिव वीरपाल सिंह यादव यह नहीं मानते, इसकी क्या वजह है. हाल ही में हुए जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में जिस तरह से गुंडागर्दी का नंगा नाच देखने को मिला उसे वीरपाल सिंह यादव किस नजरिये से देखते हैं? विपक्ष भाजपा सरकार को हर मोर्चे पर विफल मानता है लेकिन उन मुद्दों को लेकर सड़कों पर आंदोलन नहीं करता. इस खामोशी का चुनाव पर क्या असर पड़ेगा? क्या आगामी विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों को महागठबंधन करना चाहिए? ऐसे कई मुद्दों पर प्रसपा के मुख्य महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद वीरपाल सिंह यादव ने इंडिया टाइम 24 के संपादक नीरज सिसौदिया के साथ खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में एसपी सिटी को थप्पड़ मारने से लेकर बीच सड़क पर महिला की साड़ी खींचने तक जो हालात देखने को मिले हैं, किस नजरिये से देखते हैं इसे? विपक्ष क्यों इसका पुरजोर विरोध नहीं कर पा रहा?
जवाब : देखिए, यह जुल्म की इंतहां है. मेरा स्पष्ट कहना है कि अगर विपक्ष खड़ा नहीं हुआ तो जनता खड़ी हो जाएगी. जो जुल्म और ज्यादती करते हैं उनकी उम्र ज्यादा नहीं होती. उन्हें जनता खुद उखाड़ फेंकती है.
सवाल : जिस तरह से जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में भाजपा जीती उसी तरह अगर विधानसभा चुनाव भी हुए तो विपक्ष क्या कर लेगा?
जवाब : देखिए, पंचायत चुनाव और विधानसभा चुनाव में फर्क होता है. यहां तक कि लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव में वोटर का मन बदलता है. लोकसभा में प्रधानमंत्री और विधानसभा में मुख्यमंत्री को वोट पड़ता है मगर पंचायत चुनाव में स्थानीय पंचायत के लिए वोट पड़ता है. दूसरी बात यह है कि ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव डायरेक्ट जनता से नहीं होते. जनता के मूड का पता तब चलता है जब डायरेक्ट जनता से चुनाव होते हैं. ये चुनाव प्रतिनिधियों के चुनाव होते हैं. प्रतिनिधियों को वश में कर सकते हैं, उन पर f.i.r. करवा कर, उन्हें पैसे का लालच देकर मगर जनता को वश में नहीं कर सकते. इसलिए विधानसभा चुनाव में धांधली नहीं होगी. बंगाल में क्यों नहीं कर पाए ये लोग धांधली? जनता जब अपने हाथ में बागडोर ले लेती है तो उसके मुकाबले कोई नहीं टिकता है.
सवाल : विधानसभा चुनाव के लिए 8 माह से भी कम का समय बचा है, ऐसे में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी किस तरह से तैयारी कर रही है?
जवाब : प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लगातार बैठकों के माध्यम से और जनता के बीच जाकर अपना काम कर रही है, तैयारी कर रही है. अभी थोड़ा पब्लिक और कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति है कि समझौता होगा या नहीं होगा? कौन सी सीट रहेगी कौन सी जाएगी, इसमें थोड़ा संशय है. फिर भी कार्यकर्ता तैयारी में लगे हैं.

वर्तमान सियासी हालातों पर चर्चा करते पूर्व राज्यसभा सांसद वीरपाल सिंह यादव

सवाल : आपके हिसाब से क्या प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को अन्य दलों के साथ गठबंधन करना चाहिए?
जवाब : मेरा मानना है कि गठबंधन होना चाहिए और पूरे विपक्ष का गठबंधन होना चाहिए जो छोटी-छोटी सेक्युलर पार्टियां हैं उन सबको एक होना चाहिए. छोटी-छोटी आपस की बुराइयों को खत्म करके बड़ी बुराई को खत्म किया जाना चाहिए. जब बड़ी बुराई खत्म हो जाएगी तो छोटी-छोटी बुराइयां खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगी.
सवाल : क्या बहुजन समाज पार्टी को भी गठबंधन में शामिल किया जाना चाहिए?
जवाब : पूरे विपक्ष को एकजुट हो जाना चाहिए. जिस तरह से सन 1975 की इमरजेंसी के दौरान सभी पार्टियां एक हो गईं और तानाशाह सरकार को गिरा दिया गया था ऐसे ही पूरे विपक्ष को एकजुट होना ही पड़ेगा. आज नहीं होंगे तो कल होंगे, सब कुछ बिगाड़ कर होंगे. इकट्ठा तो होना पड़ेगा क्योंकि अकेले-अकेले किसी भी पार्टी के वश का नहीं है भाजपा को हराना.
सवाल : अगर विपक्षी दलों से गठबंधन होता है तो बरेली की किन-किन सीटों पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी दावा करेगी?
जवाब : देखिए, यहां दावे से काम नहीं चलेगा. कोई भी गठबंधन या समझौता होता है तो एक मानक बनाया जाता है कि पिछले चुनाव में किस पार्टी को कितने वोट मिले थे. अब चूंकि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी नई पार्टी है और चुनाव के बाद बनी है इसलिए मानक थोड़ा सा कमजोर होगा प्रसपा के लिए लेकिन जहां-जहां ये लोग बैठे हैं उन्हें प्रदेश की पूरी स्थिति के बारे में मालूम है और बरेली के बारे में भी पता है तो पार्टी पॉलिटिक्स से ऊपर उठकर जो सीट जीत सकता है उसे टिकट दे देनी चाहिए. उसमें अड़ंगा नहीं लगाना चाहिए.
सवाल : आपको क्या लगता है कि बरेली में ऐसी कौन सी सीट है जहां से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार जीत सकता है?
जवाब : हमने समाजवादी पार्टी के लिए काम किया है और 25 साल तो जिला अध्यक्ष ही रहे तो हमें एक-एक सीट का पता है, बरेली का भी और प्रदेश का भी. लेकिन इस बार पार्टियों का नहीं चलेगा व्यक्तियों का चलेगा कि कौन-कौन सा व्यक्ति जीत सकता है उसके लिए टिकट देना होगा.
सवाल : आपके हिसाब से कौन-कौन से मुद्दों पर चुनाव लड़ना चाहिए विपक्ष को?
जवाब : देखिए, मुद्दे तो इतने दे दिए हैं इस सरकार ने जितने अब तक किसी सरकार ने नहीं दिए थे. जब कोई नेता मंच से बात करता है या आम आदमी भी बात करता है तो शुरुआत होती है महंगाई से. जो रोजमर्रा की चीजें हैं उनके दाम आसमान छूने लगे हैं. पेट्रोल, दाल, तेल, आटा, सब्जी सब कुछ महंगा हो गया है. यानी महंगाई ने रसोई तक को नहीं छोड़ा. इससे बड़ा मुद्दा क्या है? बेरोजगारी, कितना वादा करके गए थे ये पर किसी को रोजगार नहीं दिया. यह भी मुद्दा है. कानून व्यवस्था का भी मुद्दा है. महिलाओं का चीरहरण महाभारत के बाद पहली बार भाजपा सरकार में ही हुआ है. इससे ज्यादा कानून व्यवस्था ध्वस्त क्या होगी? तो मुद्दे बहुत हैं.
सवाल : जब इतने सारे मुद्दे हैं तो विपक्ष आज तक सड़कों पर क्यों नहीं उतरा इन मुद्दों को लेकर?
जवाब : आपका सवाल सही है. जो विपक्षी पार्टियां हैं उनमें बसपा ने तो कभी संघर्ष किया नहीं. वह कभी सड़क पर नहीं आई तो वह कभी आंदोलन कर भी नहीं सकती. कांग्रेस ने भी कभी संघर्ष नहीं किया. ले-दे कर समाजवादी पार्टी बचती है जो संघर्ष की पार्टी मानी जाती थी. अब समाजवादी पार्टी संघर्ष क्यों नहीं कर रही है यह समाजवादी पार्टी ही वाले ही बता सकते हैं.
सवाल : आप भी तो विपक्ष में हैं?
जवाब : हम हैं विपक्ष में, हमारा तो संघर्ष चल ही रहा है. हम तो जहां भी होता है मुद्दा उठाते हैं. लखनऊ में जितना राज्यपाल का घेराव हमने किया उतना किसी ने नहीं किया. किसी पार्टी ने इतना प्रदर्शन नहीं किया जितना हमने किया लेकिन मुख्य विपक्षी दल कौन है? नेता प्रतिपक्ष किस पार्टी का है? हम एक विधायक की पार्टी हैं और मुख्य विपक्षी दल कोई और है तो पहली जिम्मेदारी उसकी बनती है जो मुख्य विपक्षी दल है. वह कहां है?
सवाल : पिछले चुनाव हिंदू- मुस्लिम के मुद्दे पर लड़े गए थे, इस बार भी राम मंदिर का मुद्दा छाया हुआ है. हाल ही में भाजपा की ओर से एक बयान आया है कि भाजपा इस बार मुस्लिमों को भी टिकट देगी, क्या लगता है इसका कितना असर पड़ेगा विपक्षी दलों पर या चुनाव पर?
जवाब : असर पड़े या न पड़े भारतीय जनता पार्टी हमारी राह पर चलने लगी है. हमारा कोई और मुद्दा थोड़े ही है, हमारा तो बस यही मुद्दा है कि हिंदुस्तान का जो भी रहने वाला है वह आपस में मेलजोल से रहे. हिंदू मुसलमान की लड़ाई न हो. अगर वही बात भाजपा कहने लगेगी तो हमें अच्छा लगेगा. भाजपा मुसलमानों को भी टिकट दे, सिखों को भी टिकट दे, ईसाई को भी टिकट दे और हिंदुओं को भी टिकट दे, यही तो समाजवाद है.
सवाल : लेकिन भाजपा के इस कदम का चुनाव पर क्या असर पड़ेगा? अभी तक कहा जाता था कि मुस्लिम विपक्ष का वोट बैंक है.
जवाब : वोट बैंक जो लोग कहते हैं मैं उसे सच नहीं मानता. वोट बैंक मुसलमान किसी का नहीं है. हिंदुस्तान का मुसलमान मुद्दों पर वोट देता है. देश क्या चाहता है यह मुसलमान से अच्छा कोई नहीं जानता है. मैं इसके कई उदाहरण दे सकता हूं. सारा मुसलमान पहले कांग्रेस को वोट देता था. कांग्रेस ने जब ज्यादती कि तो 1977 का चुनाव आया उस वक्त सारे मुसलमानों ने हिंदुओं के साथ मिलकर वोट डाला और कांग्रेस को सत्ता से बाहर निकाला. वर्ष 1989 में जनता दल बना. लहर आई. देश ने मन बनाया कि कांग्रेस को उखाड़ कर फेंकना है तो मुसलमान ने भी मन बनाया कि कांग्रेस को उखाड़ कर फेंकना है और फेंक भी दिया. इस बार भी वह देश के साथ चलेगा. अगर देश भाजपा के साथ है तो वह भाजपा के साथ चलेगा लेकिन अगर देश भाजपा के खिलाफ है तो सिर्फ मुसलमान को टिकट देने से मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देने वाला.
सवाल : इस बार ओवैसी की पार्टी भी सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है, आपको नहीं लगता कि मुस्लिम वोटों का बंटवारा होगा?
जवाब : बंटवारा क्यों होगा मुस्लिम वोटों का? मुसलमान कब धर्म के नाम पर वोट देता है? मुसलमान ने आज तक धर्म के नाम पर वोट नहीं दिया. उत्तर प्रदेश में 20% मुसलमान है, उसने कभी मुसलमान को मुख्यमंत्री बनाने के लिए वोट नहीं दिया. उसने मुलायम सिंह को वोट दिया, उसने मायावती के नाम पर वोट दिया, उसने सोनिया गांधी के नाम पर वोट दिया पर किसी मुसलमान को वोट नहीं दिया तो अब कौन सी नई बात है कि ओवैसी के नाम पर वोट दे देगा. आज तक कोई मुसलमान लीडर मुसलमानों का वोट ले पाया है क्या? वह नेता तब तक है जब तक किसी दल से जु़ड़ा हुआ है जब किसी दल में नहीं है तो वह मुसलमानों का नेता नहीं है. चाहे वह आजम खान हो चाहे कोई और, बिरादरी के नाम पर नेता नहीं मानता है मुसलमान. जब तक जाति और धर्म के आधार पर चुनाव होते रहेंगे तब तक भाजपा को हराना बेहद मुश्किल होगा. वह तो चाहती ही है कि धर्म के आधार पर चुनाव हो.
सवाल : एक चर्चा यह भी है कि आप समाजवादी पार्टी में वापसी करने जा रहे हैं?
जवाब : मैं क्यों समाजवादी पार्टी में वापसी करूंगा? मेरे नेता शिवपाल सिंह यादव हैं, मैंने उन्हें ही अपना नेता माना है. पहले मैंने 40 साल मुलायम सिंह यादव के साथ काम किया. अब मेरी 65 साल की उम्र हो गई है. अब मैं शिवपाल सिंह के ही साथ हूं. वह समाजवादी पार्टी में चले जाएंगे तो मैं भी चला जाऊंगा. वह किसी और पार्टी में जाएंगे तो मैं उस पार्टी में चला जाऊंगा.

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