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कैंट और शहर के फेर में फंसे मुस्लिम दावेदार, सपा कहां से उतारेगी मुस्लिम उम्मीदवार? कर रहे इंतजार, जानिये क्या बन रहे हैं नए समीकरण?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
विधानसभा की चाहत में कहीं मुस्लिम दावेदार बगावत न कर बैठें, यह चिंता समाजवादी पार्टी को खाए जा रही है. बरेली शहर हो या कैंट दोनों ही विधानसभा सीटों पर मुस्लिम दावेदार भी टकटकी लगाए बैठे हैं. अब अखिलेश यादव किस पर मेहरबान होंगे यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
दरअसल, परिसीमन के बाद के चुनावी परिदृश्य पर नजर डालें तो समाजवादी पार्टी कैंट विधानसभा सीट से हमेशा मुस्लिम उम्मीदवार ही उतारती आ रही है. वहीं शहर सीट से हिन्दू प्रत्याशी उतारती आ रही है. दोनों ही सीटों पर समाजवादी पार्टी कभी चुनाव नहीं जीत सकी है. पिछले चुनाव में सपा और कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी प्रेम प्रकाश अग्रवाल शहर सीट से लड़े थे जबकि कैंट सीट भी कांग्रेस के खाते में गई थी और नवाब मुजाहिद हसन खां मैदान में उतारे गए थे.

इंजीनियर अनीस अहमद

इस बार शहर और कैंट विधानसभा सीट से मजबूत मुस्लिम दावेदारों की बात करें तो कैंट सीट से दो बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके इंजीनियर अनीस अहमद, एक बार शहर सीट से लड़ चुके डा. अनीस बेग और चार बार से लगातार पार्षद बनते आ रहे और एक बार निर्दलीय विधानसभा चुनाव लड़ चुके मो. फिरदौस उर्फ अंजुम भाई टिकट की कतार में खड़े हैं.

डा. अनीस बेग

इनमें डा. अनीस बेग और इंजीनियर अनीस अहमद साफ सुथरी छवि वाले पढ़े-लिखे राजनेता हैं तो वहीं मो. फिरदौस की गिनती दबंग युवा राजनेताओं में होती है. अनीस अहमद के पास अनुभव है तो फिरदौस के पास युवा जोश.

मो. फिरदौस खान उर्फ अंजुम भाई

सूत्र बताते हैं कि अनीस अहमद को टिकट का आश्वासन देने के बाद ही पार्टी ज्वाइन कराई गई है. वहीं डा. अनीस बेग युवा भी हैं, लोकप्रिय भी हैं और अनुभवी भी. उनके भाई सुल्तान बेग स्वयं विधायक रह चुके हैं. सुल्तान बेग वही शख्स हैं जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने विधानसभा क्षेत्र से पार्टी के दो ब्लॉक प्रमुख जितवाए हैं. कुल मिलाकर कैंट सीट पर इन तीन प्रमुख दावेदारों में से कोई भी ऐसा चेहरा नहीं है जिसे देखते ही नकारा जा सके. युवा दावेदारों को भरोसा है कि अखिलेश यादव युवाओं को मौका देंगे. अखिलेश इस संबंध में बयान भी दे चुके हैं कि विधानसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा युवाओं को टिकट दिया जाएगा. वहीं, बुजुर्गों का मानना है कि चुनाव जोश से नहीं अनुभव और होश से जीता जाता है.

अब्दुल कयूम मुन्ना.

वहीं, शहर विधानसभा सीट से सबसे प्रबल मुस्लिम दावेदार चार बार से लगातार पार्षद बनते आ रहे दबंग नेता अब्दुल कयूम मुन्ना हैं. अब्दुल कयूम मुन्ना हाल ही में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात करने लखनऊ भी गए थे. उनकी यह मुलाकात काफी सकारात्मक बताई जा रही है. सूत्र बताते हैं कि मुन्ना के साथ महाराष्ट्र के समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी थे. मुन्ना के महाराष्ट्र के प्रदेश अध्यक्ष अबू आसिम आजमी से बेहतर संबंध बताए जाते हैं. बताया जाता है कि जब मुन्ना मुंबई गए थे तो वहां अबू आसिम आजमी ने मुन्ना का जोरदार स्वागत भी किया था. अब अगर अबू आसिम मुन्ना की पैरवी करते हैं तो उनकी टिकट काटना आसान नहीं होगा.

मो. कलीमुद्दीन

मुन्ना के अलावा शहर सीट से मुस्लिम दावेदारों में युवा चेहरा मो. कलीमुद्दीन का है. कलीमुद्दीन भी हाल ही में पार्षद शमीम अहमद के साथ अखिलेश यादव से मिलकर आए हैं. कलीमुद्दीन के जफरयाब जिलानी से बेहतर संबंध हैं. जिलानी से संबंध कलीमुद्दीन को टिकट दिलाने में कितने कारगर साबित होंगे इसका अंदाजा लगाना फिलहाल मुश्किल है. कलीमुद्दीन को पार्टी में शामिल हुए अभी बहुत ज्यादा वक्त नहीं हुआ है. ऐसे में लगभग ढाई दशक से पार्टी की सेवा में जुटे मुन्ना के मुकाबले पार्टी हाईकमान उन्हें कितनी तरजीह देगा यह कहना मुश्किल है.
ये तो रही दावेदारों की बात लेकिन असली पेच फंसा है सीट को लेकर. शहर और कैंट दोनों ही सीटों के दावेदारों का कहना है कि उनकी सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की तादाद ज्यादा है इसलिए उनकी सीट से मुस्लिम उम्मीदवार ही उतारा जाना चाहिए. हालांकि मुन्ना यह कह चुके हैं कि पार्टी किसी हिन्दू को भी मैदान में उतारेगी तो वह पूरे तन, मन, धन से पार्टी प्रत्याशी को चुनाव लड़ाएंगे.

डा. मो. खालिद

वहीं, कैंट सीट पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष डा. मो. खालिद टकटकी लगाए बैठे हैं. अगर शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच होने वाली वार्ता सार्थक रूप लेती है तो कैंट की सीट प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के खाते में चली जाएगी और डा. खालिद गठबंधन के उम्मीदवार होंगे.
सपा के दावेदार चिंता में इसलिए भी हैं क्योंकि सपा शहर और कैंट विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक ही सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारेगी. ऐसे में किसका चेहरा खिलेगा और किसको आश्वासन मिलेगा यह कहना फिलहाल मुश्किल है. बहरहाल, दावेदार जोर आजमाइश में लगे हुए हैं.

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