इंटरव्यू

मैं बचपन से ही स्वयंसेवक हूं, पार्टी चाहेेगी तो चुनाव जरूर लड़ूंगा, करियर- राजनीतिक सफर और निजी जिंदगी से जुड़ी बातें साझा कर रहे हैं डा. राघवेंद्र शर्मा, पढ़ें स्पेशल इंटरव्यू…

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बदायूं के एक छोटे से गांव से ताल्लुक़ रखने वाले डा. राघवेंद्र शर्मा आज बरेली के चिकित्सा जगत का जाना पहचाना चेहरा हैं. सेवा का जज्बा उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला था. उनके पिता आरएसएस के स्वयंसेवक थे जिस कारण वह भी बचपन से ही संघ से जुड़े हुए हैं. मेडिकल की पढ़ाई के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी के चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाने वाले डा. राघवेंद्र शर्मा पिछले चुनाव में 123 बिथरी विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट के प्रबल दावेदार थे. क्या इस बार भी वह विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं? डा. राघवेंद्र शर्मा में ऐसा क्या खास है कि पार्टी उन्हें विधानसभा का टिकट दे? सक्रिय राजनीति में उन्होंने कब कदम रखा? समाजसेवा के क्षेत्र में उन्होंने कौन से काम किए? बरेली शहर के औद्योगिक विकास को वह किस नजरिये से देखते हैं? अगर उन्हें विधायक बनने का मौका मिलेगा तो उनके विकास का विजन क्या होगा? ऐसे कई बिंदुओं पर भाजपा ब्रज क्षेत्र केे चिकित्सा प्रकोष्ठ के संयोजक डा. राघवेंद्र शर्मा ने इंडिया टाइम 24 के संपादक नीरज सिसौदिया के साथ खुलकर बात की. पेश है डा. राघवेंद्र शर्मा की कहानी उन्हीं की जुबानी…
सवाल : आप मूल रूप से कहां के रहने वाले हैं, पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या रही?
जवाब : हम मूल रूप से बदायूं जिले के बिलसी कस्बे के पास स्थित दुधौनी गांव के रहने वाले हैं. मेरे पिता राजस्थान में एजुकेशन डिपार्टमेंट में सर्विस करते थे. राजस्थान में वह संघ परिवार से जुड़े थे इसलिए मैं भी बचपन से ही संघ परिवार से जुड़ा हूं.
सवाल : आपकी पढ़ाई-लिखाई कहां से हुई?
जवाब : मेरे पिता के ट्रांसफर होते रहते थे. कभी भरतपुर, कभी जोधपुर तो कभी किसी दूसरे शहर में, इसलिए मैंने हाईस्कूल तक की पढ़ाई राजस्थान के विभिन्न शहरों से की. बाद में मैं यूपी आ गया. बिलसी में मदन लाल इंटर कॉलेज से मैंने 11वीं और 12वीं की पढ़ाई की. उसके बाद बरेली कॉलेज से बीएससी किया. फिर लखनऊ मेडिकल कॉलेज में चला गया. वहां से एमबीबीएस किया और फिर गोरखपुर से मैंने एमएस किया. इसके बाद राम मूर्ति मेडिकल कॉलेज बरेली से अपनी प्रैक्टिस शुरू की.

संघ के पदाधिकारियों और भाजपा नेताओं के साथ डा. राघवेंद्र शर्मा.

सवाल : सक्रिय राजनीति में कब आना हुआ?
जवाब : मैं बचपन से ही स्वयंसेवक हूं लेकिन जब बरेली कॉलेज में आया तो पहली बार औपचारिक रूप से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ा. यह सक्रिय राजनीति में मेरा पहला कदम कहा जा सकता है. जब मैं बरेली कॉलेज में था तो उस दौरान माननीय संतोष गंगवार जी इलेक्शन लड़ते थे, राजेश जी इलेक्शन लड़ते थे, तो उनका उनके चुनाव में पूरी भागीदारी रहती थी मेरी. जब मैं लखनऊ चला गया तो वहां भी संघ से जुड़ाव रहा. वहां से स्व. अटल बिहारी वाजपेई जी इलेक्शन लड़ रहे थे तो वहां भी मैं पूरी तरह सक्रिय रहा. वर्तमान में मैं भाजपा में ब्रज क्षेत्र का चिकित्सा प्रकोष्ठ का संयोजक हूं और रजऊ मंडल का प्रभारी भी हूं. पिछले लगभग 6 वर्षों से मैं विभिन्न जिम्मेदारियों को संभाल रहा हूं.
सवाल : विधानसभा चुनाव आ रहे हैं, दावेदारों में आपके नाम की भी चर्चा है. कहां से चुनाव लड़ना चाहेंगे?
जवाब : मैंने पिछली बार के चुनाव में बिथरी विधानसभा सीट से टिकट मांगा था लेकिन किन्ही कारणों से मुझे मौका नहीं मिल पाया और माननीय राजेश मिश्रा जी वहां से विधायक बन गए. मैं मेयर का चुनाव भी लड़ना चाहता था और टिकट के लिए आवेदन भी किया था. शायद इसलिए मेरा नाम चर्चा में है. चूंकि मैं चिकित्सक भी हूं इसलिए शहर और बिथरी विधानसभा सीट पर में मेरा अच्छा प्रभाव है तो जैसा पार्टी निर्णय करेगी, यदि पार्टी चुनाव लड़ाना चाहेगी तो चुनाव जरूर लडूंगा. हालांकि अभी मैंने यह तय नहीं किया है कि कहां से चुनाव लड़ना है. जहां से पार्टी कहेगी वहां से चुनाव लड़ लूंगा.


सवाल : पिछली बार आप मेयर के टिकट के दावेदार रहे और विधानसभा के टिकट के लिए भी दावेदारी की. आपको ऐसा क्यों लगता है कि टिकट आपको दिया जाना चाहिए, ऐसा क्या खास है आपमें कि पार्टी आपको टिकट दे?
जवाब : देखिए मैं ऐसा नहीं कहता कि टिकट मुझे दिया जाना चाहिए लेकिन व्यवस्थाएं ऐसी होती हैं कभी-कभी कि टिकट को बदलना पड़ता है. ये पार्टी के निर्णय होते हैं. मेरा सोचना ऐसा है कि यदि पार्टी टिकट बदलती है तो मुझे उपयुक्त पाएगी और मुझे टिकट देगी क्योंकि मैंने लोगों की सेवा की है. मैं क्षेत्र में कार्य करता हूं और लोग मुझे पसंद करते हैं. लोग मुझे अपने परिवार का व्यक्ति मानते हैं, मुझसे सजेशन लेते हैं, सुख दुख में मेरे साथ खड़े होते हैं और मैं भी उनके साथ खड़ा होता हूं.
सवाल : क्या समाजसेवा के क्षेत्र में भी आप सक्रिय रहे, इस क्षेत्र में अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि आप किसे मानते हैं?
जवाब : चिकित्सक का तो काम ही समाजसेवा का है. पिछले करीब 18 वर्षों से मैं प्रैक्टिस कर रहा हूं. जहां मैं प्रैक्टिस करता हूं वहां ग्रामीण क्षेत्र के लोग बहुत ज्यादा आते हैं और जहां तक चिकित्सा का संबंध है तो आज तक कोई नाखुश नहीं हुआ मुझसे और सबसे बड़ी बात कि पैसे की वजह से किसी का इलाज नहीं रुका है मेरे अस्पताल में. यही मेरे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है.

श्रीराम मंदिर निर्माण को लेकर आयोजित कार्यक्रम में शामिल डा. राघवेंद्र शर्मा.

सवाल : कोरोना काल में जो परिस्थितियां पैदा हुईं उनमें एक डॉक्टर की भूमिका काफी अहम हो जाती है. इन परिस्थितियों में आपने किस तरह की सेवाएं दीं और किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
जवाब : कोरोना काल में अगर ईमानदारी से बात करें तो चिकित्सा के नाम पर कोई दवा थी ही नहीं, सिर्फ सपोर्टिव ट्रीटमेंट था. क्योंकि हम लोग दो हॉस्पिटल से जुड़े हैं. एक रामगंगा अस्पताल और दूसरा मेडिसिटी. मेडिसिटी हमारा कोरोना से एफिलिएटेड हॉस्पिटल था. कई लोगों को एडमिशन और ऑक्सीजन की दिक्कतें आ रही थीं तो हमने सभी अस्पतालों से भी को-ऑर्डिनेट किया. जहां-जहां बेड खाली होते थे वहां हमने पेशेंट को एडमिट करवाया. ऑक्सीजन की व्यवस्था भी करवाई. मुझसे जो बन सका वह मैंने किया. हमने अपने अस्पताल में वैक्सीनेशन कैंप भी लगाया जिसमें सैकड़ों लोगों को वैक्सीनेट किया गया.
सवाल : आप आरएसएस के अलावा किसी और समाजसेवी संस्था से भी जुड़े हैं?
जवाब : एक खुशहाली फाउंडेशन है जिससे मैं जुड़ा हुआ हूं. इसके जरिए हम लोग गड़िया लोहार बच्चों के लिए पढ़ने-लिखने, खाने-पीने, चिकित्सा आदि की व्यवस्था करते हैं. उन्हें सामान्य जिंदगी जीने के लिए आवश्यक सुविधाएं मुहैया कराते हैं. ये वे लोग हैं जो सड़क किनारे रहते हैं और इन्हें कोई सुविधाएं नहीं मिल पातीं.

ग्रामीण जनता का हाल जानते डा. राघवेंद्र शर्मा.

सवाल : कुछ समय पूर्व प्रदेश में जिस तरह के हालात सामने आए हैं, कहीं पुलिस अधिकारियों पर हमला हुआ तो कहीं पत्रकार पीटे गए, कोरोना काल में भी अव्यवस्थाओं की कई दर्दनाक तस्वीरें सामने आईं. ऐसे में आप प्रदेश सरकार को कितना सफल मानते हैं?
जवाब : इससे ज्यादा सरकार क्या सफल हो सकती है कि जब सारे काम धंधे बंद थे, व्यापार बंद थे, पूरा भारत बंद था फिर भी सबको भोजन उपलब्ध करा पाए. सब लोगों के लिए फ्री भोजन की व्यवस्था की गई. कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं सोया. किसी का भी पैसे के अभाव में इलाज नहीं रुका. इस महामारी में इससे बड़ी क्या उपलब्धि हो सकती है. किसी को छत मिले, खाना मिले और बीमारी में इलाज मिले, यही आवश्यकता थी शायद इस विषम परिस्थिति में सबकी.
सवाल : बरेली शहर को आपने बेहद करीब से देखा है, यहां कई तरह के उद्योग बंद हो गए. औद्योगिक विकास को किस नजरिए से देखते हैं?
जवाब : भारत सरकार की दृष्टि से अगर हम देखते हैं तो यह नहीं कह सकते कि उद्योग बंद होते चले गए. जब मशीनरी आती है तो हैंड क्राफ्ट का काम नेचुरली कम होगा. हम कह सकते हैं कि खादी उद्योग था, जरी का उद्योग था लेकिन अब क्योंकि मशीनें आ गई हैं इसलिए नेचुरली हाथ के काम कम होंगे. क्योंकि जब मशीन किसी चीज का उत्पादन करती है तो कम समय में बहुत ज्यादा मात्रा में करती है और मनुष्य के हाथों से उत्पादन होता है तो ज्यादा समय में कम होता है, इसलिए जरी का कारोबार आर्ट की दृष्टि से बचा कर रखना तो संभव है लेकिन व्यापार की दृष्टि से संभव नहीं है. रबड़ फैक्ट्री अगर बंद हुई तो इफको जैसी फैक्ट्रियां चल भी रही हैं. भारत सरकार की दृष्टि से बात करें तो रुद्रपुर में एक औद्योगिक सेंटर डेवलप कर दिया गया है इसलिए ऐसा हो रहा है. यदि बरेली में भी देखें तो इंडस्ट्रियल एरिया में जगह खाली ही नहीं है. जब व्यापार नहीं हो रहा है तो जगह खाली होनी चाहिए थी. सरकार उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए उन्हें लोन आदि भी दे रही है और रिबेट भी दे रही है. अब मेडिकल इंडस्ट्री की ही बात करें तो 25 परसेंट रिबेट सरकार दे रही है. और क्या चाहिए?

एक स्कूल में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते डा. राघवेंद्र शर्मा.

सवाल : बरेली शहर की सबसे बड़ी समस्या आप किसे मानते हैं?
जवाब : बरेली शहर की सबसे बड़ी समस्या जो थी वह अब खत्म हो गई है. कनेक्टिविटी बरेली शहर की सबसे बड़ी समस्या थी लेकिन अब एयरपोर्ट बनने से वह समस्या खत्म हो गई है. जरा सोचिए कि बाहर के इंडस्ट्रियलिसेट यहां क्यों नहीं आ पाते थे क्योंकि यहां आने-जाने में काफी समय वेस्ट होता था. वह धीरे-धीरे खत्म हो रहा है और जैसे ही यह पूरी तरह खत्म हो जाएगा तो बरेली एक अलग तरीके का दिखाई देगा. अगर इंडस्ट्रियल एरिया को छोड़ भी दें तो बरेली एजुकेशन का हब भी है, चिकित्सा का हब भी है, ये भी तो व्यापार हैं. बरेली में जितने मेडिकल कॉलेज हैं, कितने शहरों में ऐसा है? बरेली में जितने इंजीनियरिंग कॉलेज हैं कितने शहरों में ऐसा है? बरेली में जितने हॉस्पिटल्स हैं कितनी जगह में ऐसा है? दिल्ली और लखनऊ के बीच में हम बात करें तो बरेली ही ऐसा शहर है जहां इतनी टॉप क्लास की सुविधाएं उपलब्ध हैं.
सवाल : अगर आपको विधायक बनने का मौका मिला तो आपके विकास का विजन क्या होगा?
जवाब : देखिए विकास एक सतत प्रक्रिया है. जब कांग्रेस की सरकार थी तो जो सड़क 1 महीने में सिर्फ 10 किलोमीटर की बन पाती थी आज वह 100 किलोमीटर की बन रही है. कार्य तो होते हैं लेकिन वह समय के अंदर होने चाहिए. बरेली की बात करें तो यहां धीरे-धीरे इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप हो रहा है. सड़कें बन रही हैं. अभी जो हम कर सकते हैं जैसे दिल्ली में मेडिकल टूरिज्म की तरह काम हो रहा है. उदाहरण के तौर पर जो बाईपास सर्जरी विदेशों में 40 लाख रुपये की हो रही है वह दिल्ली में 10 लाख रुपए की हो रही है. हमारे यहां कनेक्टिविटी हो जाएगी तो बरेली में चार लाख रुपये में ही होने लगेगी. तो यह एक बड़ा व्यापार हो सकता है कनेक्टिविटी से हम विदेशों की मेडिकल इंडस्ट्रीज को यहां आमंत्रित कर सकते हैं. हमारे यहां का टैलेंट विदेश जा सकता है. हम लोगों को बहुत कुछ अच्छा दे पाएंगे.

महिलाओं की भी पहली पसंद हैं डा. राघवेंद्र शर्मा.

सवाल : आपको मेडिकल लाइन में करीब 18 साल से भी अधिक का समय हो गया है. इस दौरान कोई ऐसा केस आया हो जिसे आप सारी जिंदगी न भुला पाएं?
जवाब : ऑर्थोपेडिक सर्जरी में कोई क्रिटिकल केस तो नहीं पर एक मजबूर आदमी जरूर मुझे याद है. एक पेशेंट था उसका एक्सीडेंट हुआ था. उसे यहां डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था. उसके दोनों पैर कट चुके थे. उसे लखनऊ रेफर कर दिया गया था. मेडिकल कॉलेज में इलाज हो सकता था उसका पर वह मैनेज नहीं कर पाए किन्हीं कारणों से. परिजन उसे घर ले आए. घर वालों ने सोचा कि उसे कुष्ठ आश्रम में छोड़ देते हैं क्योंकि यहां तो सड़ कर मर जाएगा. उस पेशेंट को मैंने अपने यहां एडमिट किया. उसका फ्री इलाज किया. अब वह ठीक है. उसके पैर मैंने बनाने के लिए दे दिए हैं. जिस दिन वह अपने पैरों खड़ा हो जाएगा तो वह मेरी जिंदगी का सबसे अच्छा दिन होगा.

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