मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
मैं राजनीति का मंच हूँ।
मैं लिये व्यंग का तंज हूँ।
मैं विरोधी पर पंच हूँ।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
मैं भूख का निवाला हूँ।
मैं मंदिर ओ शिवाला हूँ।
मैं देश का रखवाला हूँ।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
मैं सबकी सुनता कहता हूँ।
नहीं अपने में ही रहता हूँ।
शीतल जल सा बहता हूँ।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
मैं शिकारी भी हूँ।
मैं खुद शिकार भी हूँ।
पर रहता खबरदार भी हूँ।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
मैं रखता हर खबर हूँ।
मैं करता खबरदार भी हूँ।
मानो तो मैं अखबार ही हूँ।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
मुझ से तेज़ धीमा नहीं है।
मेरे सा कोई नगीना नही है।
मेरी तो कोई सीमा नहीं है।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
मैं बच्चों का उत्पात हूँ।
मैं बड़ों का वादविवाद हूँ।
मैं बुजर्गों का आशीर्वाद हूँ।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।
मैं ऊपर ऊंचा नभ सा हूँ।
मैं कठोर जैसे थल सा हूँ।
मैं कलकल बहता जल सा हूँ।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
में जीवन का मर्म हूँ।
मैं सख्त और नर्म हूँ।
मैं धर्म और कर्म हूँ ।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
मैं गरीब की हाय हूँ।
नहीं मैं असहाय हूँ।
मैं सर्वपंथ सुखाय हूँ।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
मैं समाज का दर्पण हूँ।
मैं ईश चरणों में अर्पण हूँ।
मैं सूचनाओं को समर्पण हूँ।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
मैं मन का स्पंदन हूँ।
मैं राष्ट्र का वंदन हूँ।
मैं सच का अभिनंदन हूँ।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
मैं शब्द भी हूँ।
मैं निःशब्द भी हूँ।
मैं सदैव उपलब्ध भी हूँ।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
भूत,भविष्य,वर्तमान बात बतलाता हूँ।
लोगो को सचेत कर के भी जागता हूँ।
कलम के आईने से हकीकत दिखलाता हूँ।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
मेरी दुर्गम सी डगर है।
मुझमे भी अगर मगर है।
मेरी वाणी अजर अमर है।।
मैं एक कलम का सिपाही हूँ।।
रचयिता – एस के कपूर “श्री हंस” बरेली
मो. -9897071046/8218685464