नीरज सिसौदिया, बरेली
124 बरेली शहर विधानसभा सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ बन चुकी है। समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार कभी भी इस सीट से जीत हासिल नहीं कर सका है। जातीय समीकरण साधने के लिए पार्टी ने यहां से अनिल शर्मा के रूप में ब्राह्मण उम्मीदवार को भी मैदान में उतारा और गैर भाजपाई कायस्थ एवं वैश्य उम्मीदवार भी इस सीट को जीत नहीं पाया। ऐसे में अबकी बार इस सीट पर मुस्लिम दावेदार को उतारने की मांग तेज हो गई है।
सपा नेता एवं शहर विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट के मुस्लिम दावेदार कहते हैं, ‘शहर विधानसभा सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार ही पार्टी को जीत दिला सकता है। अगर यहां से मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा गया तो पार्टी को उसी तरह हार का सामना करना पड़ेगा जिस प्रकार अब तक करना पड़ा है। पिछले कुछ चुनावों पर नजर डालें तो सपा ने यहां से वर्ष 2007 में डा. अरुण कुमार को चुनाव लड़ाया था लेकिन कायस्थ होने के बावजूद अरुण कुमार यह चुनाव हार गए थे। वर्ष 2012 में डा. अरुण कुमार भाजपा में शामिल हो गए और सपा ने यहां से ब्राह्मण को मैदान में उतारा लेकिन सपा के ब्राह्मण उम्मीदवार अनिल शर्मा को भी लगभग 17 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। उसके बाद वर्ष 2017 में यहां से गठबंधन के उम्मीदवार प्रेम प्रकाश अग्रवाल को मैदान में उतारा गया लेकिन गठबंधन का वैश्य उम्मीदवार भी चारों खाने चित हो गया और भाजपा के वही डा. अरुण कुमार दूसरी बार विधायक बन गए जो सपा के टिकट पर चुनाव हार गए थे। इससे एक बात तो स्पष्ट होती है कि शहर विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी का हिन्दू उम्मीदवार कभी चुनाव नहीं जीत सकता।‘
सपा के टिकट के मुस्लिम दावेदार अपनी जीत का सियासी गणित समझाते हुए कहते हैं कि समाजवादी पार्टी को इस बार एक ऐसे मुस्लिम उम्मीदवार को मौका देना चाहिए जो हिन्दुओं के बीच भी गहरी पैठ रखता हो। इसकी वजह बताते हुए वे कहते हैं, ‘इस सीट पर लगभग एक लाख 78 हजार मुस्लिम वोटर हैं। चूंकि सपा ने यहां से कभी भी मुस्लिमों को तरजीह नहीं दी इसलिए यहां मुस्लिम वोटों का विभाजन हो गया और पार्टी कभी चुनाव नहीं जीत सकी।‘
वे कहते हैं, ‘वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा की लहर थी लेकिन वर्ष 2012 में ऐसा कुछ नहीं था। उस चुनाव में मुस्लिम वोटों के विभाजन की वजह से समाजवादी पार्टी चुनाव हार गई थी। उदाहरण के तौर पर देखें तो वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के डा. अरुण कुमार को लगभग 69 हजार से भी अधिक वोट मिले थे जबकि सपा उम्मीदवार अनिल शर्मा को लगभग 42 हजार वोट मिले थे। दोनों के बीच लगभग 17 हजार वोटों का अंतर था। इसी चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे आईएमसी के शेर अली जाफरी को 31 हजार 113 वोट मिले थे जिनमें लगभग 90 फीसदी से भी अधिक वोट मुस्लिम थे। वहीं, बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी डा. अनीस बेग को 21 हजार 753 वोट मिले थे जिनमें लगभग 50 फीसदी मुस्लिम वोट थे। पांचवें नंबर पर रहे नवाब मुजाहिद हसन खां को 8016 वोट मिले थे जिनमें लगभग 50 फीसदी से भी अधिक मुस्लिम वोट थे। इसी तरह छठे नंबर पर रहे यूसुफ को 3999 वोट मिले थे। इनमें भी ज्यादातर मुस्लिम वोट ही थे। अगर सपा ने उस चुनाव में मुस्लिम प्रत्याशी उतारा होता तो मुस्लिम वोट नहीं बिखरता और सपा की जीत तय थी।‘
वे कहते हैं कि इस बार भी अगर सपा यहां से मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारती है तो जीतना नामुमकिन होगा क्योंकि ओवैसी की पार्टी के साथ ही कांग्रेस और बसपा भी यहां से मुस्लिम उम्मीदवार उतार सकती हैं जिससे मुस्लिम वोट बंटेगा और भाजपा को इसका लाभ मिलेगा।
बात अगर सपा के टिकट के दावेदारों के दम की करें तो अब्दुल कय्यूम खां मुन्ना, डा. अनीस बेग और मो. कलीमुद्दीन यहां से टिकट के मुस्लिम दावेदार हैं। इनमें कलीमुद्दीन पिछले काफी समय से क्षेत्र में मेहनत कर रहे हैं और उनके पीछे दलितों का अच्छा खासा वोट बैंक भी है। खास तौर पर लगभग 20 हजार वाल्मीकि वोटर्स उनसे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। साथ ही सिख समाज और हिन्दू समाज के अन्य वर्गों पर भी उनकी अच्छी पैठ है। कलीमुद्दीन को अपनी मेहनत पर पूरा यकीन हैं। वह कहते हैं कि अन्य कोई भी ऐसा दावेदार नहीं है जो उनके बराबर क्षेत्र में पार्टी के लिए काम कर रहा हो। ऐसा कोई भी मुस्लिम दावेदार नहीं है जो उनकी तरह हर वर्ग में लोकप्रिय हो और पिछले डेढ़-दो वर्षों से जनता की सेवा और पार्टी की नीतियों का आगे बढ़ाने का काम कर रहा हो।
कुछ दावेदार ऐसे हैं जो चुनावी बरसात में ही बाहर निकले हैं। जब टिकट मिलेगा तभी वे पार्टी के लिए काम करेंगे जबकि कलीमुद्दीन पहले दिन से ही पार्टी की जीत की दिशा में वोट बनवाने से लेकर जनता के बीच जाने का काम कर रहे हैं।
बहरहाल, टिकट का फैसला तो अखिलेश यादव को करना है लेकिन शहर विधानसभा सीट पर इस बार अगर सोच-समझ कर उम्मीदवार नहीं उतारा गया तो सपा के लिए इस बार भी भाजपा का विजय रथ रोकना नामुमकिन होगा।

बरेली शहर विधानसभा सीट : ब्राह्मण भी लड़ाया, कायस्थ और वैश्य भी जीत नहीं पाया, क्या अबकी बार मुस्लिम पर दांव खेलेगी सपा?
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