नीरज सिसौदिया, बरेली
कैंट विधानसभा सीट का सियासी घमासान अब खुलकर सामने आ चुका है। जगह-जगह होर्डिंग्स, बैनर और पोस्टरों की भरमार को देखकर यह स्पष्ट हो चुका है कि टिकट की टिकटिक अब अंतिम चरण में है। विरोधी दलों में जहां एकमात्र समाजवादी पार्टी ही भाजपा को टक्कर देती नजर आ रही है वहीं, भाजपा में भी मुकाबला त्रिकोणीय है। अब तक कयास लगाए जा रहे थे कि पूर्व मंत्री और कैंट विधायक राजेश अग्रवाल इस रेस में शामिल हो सकते हैं लेकिन अब काफी हद तक उनकी जगह उनके बेटे की दावेदारी की बात ही सामने आ रही है। ऐसे में कुछ वरिष्ठ भाजपा नेताओं का मानना है कि टिकट की दौड़ में अब सिर्फ तीन चेहरे ही रह गए हैं। इनमें दो वैश्य समाज से हैं तो एक ब्राह्मण चेहरा है।
भाजपा सूत्रों का मानना है कि 125 बरेली कैंट विधानसभा सीट पर भाजपा वैश्य चेहरा ही उतारेगी। विकल्प के तौर पर जरूर ब्राह्मण चेहरे पर विचार किया जा सकता है। अगर पार्टी वैश्य चेहरा उतारती है तो प्रमुख रूप से दो चेहरे ही विचारणीय होंगे। इनमें पहला नाम भाजपा के प्रदेश सहकोषाध्यक्ष संजीव अग्रवाल का आता है। राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले संजीव अग्रवाल बचपन से ही संघ के प्रति समर्पित रहे हैं। शहर में जिस तरह से उनके होर्डिंग्स, बैनर और पोस्टरों की भरमार देखने को मिल रही है उससे संजीव अग्रवाल विरोधी दावेदारों को कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं। कैंट विधानसभा सीट का शायद ही कोई ऐसा चौक-चौराहा या यूनिपोल बचा हो जहां संजीव अग्रवाल का चेहरा दिखाई न दे रहा हो। जमीनी स्तर पर भी संजीव अग्रवाल इस तरह तैयारी में जुटे हैं जैसे कोई प्रत्याशी अपने चुनाव की तैयारी करता है। एक-एक वोट से लेकर एक-एक घर तक अपनी पहुंच बनाने में संजीव अग्रवाल निरंतर प्रयासरत हैं। संगठन के कार्यक्रमों में भी उनकी सक्रिय भागीदारी उनकी दावेदारी को मजबूती प्रदान करती नजर आ रही है।
दूसरे नंबर पर ब्रज क्षेत्र के उपाध्यक्ष हर्षवर्धन आर्य की मौजूदगी भी दमदार नजर आती है। संगठन के प्रति समर्पण का हर्षवर्धन आर्य का सफर भी काफी लंबा है। हर्षवर्धन इन दिनों कासगंज जिला प्रभारी हैं और कासगंज में होने जा रही जनविश्वास रैली को सफल बनाने में जुटे हैं। हालांकि, लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कई रैलियों की जिम्मेदारी वह सफलतापूर्वक निभा चुके हैं। यह वही हर्षवर्धन आर्य हैं जिनकी राजनीतिक सूझबूझ की वजह से बदायूं लोकसभा सीट पर सपा के दिग्गज और अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव भी अपने गढ़ में ही मात खा गए। संगठन में गहरी पैठ और काम के दम पर अपनी अलग पहचान बनाने वाले हर्षवर्धन आर्य को आगे बढ़ने से रोकने के लिए विरोधियों ने कई जाल बिछाए लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। कैंट क्षेत्र में ही जन्मे और पले-बढ़े हर्षवर्धन आर्य के लिए कैंट का इलाका नया नहीं है। कैंट की ही गलियों में उनका बचपन बीता और राजनीति का सफर भी यहीं से शुरू हुआ था। जमीनी स्तर पर उनकी पकड़ बेहद मजबूत है।
तीसरा और सबसे नामी चेहरा मेयर डा. उमेश गौतम का है। राजनीतिक धुरंधरों को मात देने में उमेश गौतम को महारथ हासिल है। एक समय था जब सपा के कद्दावर नेता आजम खां उनके धुर विरोधी बन गए थे लेकिन काफी कोशिशों के बावजूद आजम खां मेयर उमेश गौतम का बाल तक बांका नहीं कर सके थे। उसके बाद ही मेयर उमेश गौतम ने सक्रिय राजनीति में आने का निर्णय लिया। वर्ष 2017 में जब मेयर का चुनाव हुआ तो भाजपा के दिग्गजों की फौज टिकट की लाइन में खड़ी नजर आ रही थी। किसी को उम्मीद तक नहीं थी कि मेयर का टिकट उमेश गौतम की झोली में आएगा लेकिन उमेश गौतम ने न सिर्फ टिकट हासिल किया बल्कि पूर्व मेयर डा. आईएस तोमर को धूल चटाकर मेयर भी बन गए। इन दिनों उनका नाम कैंट विधानसभा सीट से चर्चा में है। हालांकि मेयर मीडिया में कई बार खुलकर यह बयान दे चुके हैं कि पार्टी जहां से कहेगी वह वहां से चुनाव लड़ने को तैयार हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कैंट के सियासी घमासान में मेयर डा. उमेश गौतम की वाइल्ड कार्ड एंट्री हो सकती है। इसकी प्रबल संभावनाएं इसलिए भी लगती हैं क्योंकि पार्टी के पास बरेली में ऐसा कोई भी बड़ा चेहरा नहीं है जो ब्राह्मण वोटों को साधने में सक्षम हो। मेयर ने हाल ही में कई ब्राह्मण सम्मेलनों का विभिन्न स्थानों पर आयोजन करके यह साबित कर दिया है कि वह पार्टी का ऐसा ब्राह्मण चेहरा बनने की काबिलियत रखते हैं जिसके साथ न सिर्फ ब्राह्मण बल्कि खत्री-पंजाबी, दलित, ठाकुर, वैश्य और मुस्लिम समाज तक के लोग हैं। हाल ही में पूर्व सांसद सर्वराज सिंह और उनके बेटे सिद्धराज सिंह भी भाजपा में शामिल हुए हैं। पार्टी ज्वाइन करने के तत्काल बाद सिद्धराज सिंह ने मेयर डा. उमेश गौतम के साथ शिष्टाचार भेंट भी की। इस भेंट के भी कई मायने निकाले जा रहे हैं। संगठन का शायद ही ऐसा कोई कार्यक्रम होता है जिसमें उमेश गौतम का योगदान नहीं होता। बतौर मेयर उन्होंने शहर में जितने विकास कार्यों को हरी झंडी दिखाई है उसने नगर निगम के इतिहास में एक नई इबारत लिखने का काम किया है। वहीं, विरोधी दलों ने अभी से ही ब्राह्मण वोटों के बंटवारे की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। इसका ताजा उदाहरण सपा नेता विनोद जोशी द्वारा निर्दलीय चुनाव लड़ने के ऐलान के रूप में देखा जा सकता है। विनोद जोशी छात्र नेता रहे हैं और बरेली में रहने वाले पर्वतीय समाज का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। ऐसे में भाजपा को निश्चित तौर पर एक ऐसे ब्राह्मण चेहरे की आवश्यकता होगी जो ब्राह्मण वोटों का ध्रुवीकरण करने में सक्षम हो क्योंकि वैश्य वोट भाजपा का स्थायी वोट बैंक है लेकिन ब्राह्मण कभी कांग्रेस का वोट बैंक हुआ करता था और इन दिनों भाजपा से नाराजगी के चलते वह सपा की ओर देख रहा है।
बहरहाल, किसकी किस्मत खुलेगी और किसे मायूसी मिलेगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
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