नीरज सिसौदिया, बरेली
पिछले कई दशकों से भाजपा के कब्जे में रही 124 बरेली शहर विधानसभा सीट पर इस बार सबसे कड़ा मुकाबला होने के आसार बन चुके हैं। इसकी मुख्य वजह समाजवादी पार्टी के साफ-सुथरी छवि के उम्मीदवार और नगर निगम के विपक्ष के नेता राजेश अग्रवाल हैं। राजेश अग्रवाल और भाजपा प्रत्याशी डा. अरुण कुमार में कई समानताएं हैं। दोनों की छवि समाज में बहुत अच्छी है। दोनों ही प्रचार-प्रसार से दूरी ही बनाकर रखते हैं। मीडिया से दूरी ही बनाकर रखते हैं। व्यापारी वर्ग के साथ ही गरीब तबका भी दोनों को बेहद पसंद करता है। राजेश अग्रवाल का प्लस प्वाइंट यह माना जा रहा है कि वह जमीन से जुड़े नेता हैं। कभी साइकिल से चलकर लोगों के काम कराया करते थे। खुद की मेहनत की बदौलत एक ऐसे वार्ड से पार्षद बने जो भाजपा का गढ़ है। दिलचस्प बात यह है कि इस वार्ड से विधानसभा चुनाव में हमेशा भाजपा ही जीतती रही है लेकिन पार्षद के चुनाव में हमेशा राजेश अग्रवाल ही बाजी मारते रहे। उनकी पत्नी भी पार्षद रह चुकी हैं। एक बार तो पति-पत्नी दोनों एक साथ अलग-अलग वार्ड से जीतकर नगर निगम सदन पहुंचे थे। व्यवहार कुशल व्यक्तित्व के धनी राजेश अग्रवाल न सिर्फ अपने दल के बल्कि विरोधी दल के पार्षदों के प्रिय नेता हैं।
टिकट की टिकटिक के दौरान नगर निगम के पार्षदों की ओर से यह आवाज बुलंद की जा रही थी कि इस बार एक टिकट पार्षद को भी मिलना चाहिए। यह मांग सिर्फ सपा के पार्षदों द्वारा ही नहीं की जा रही थी बल्कि भाजपा के पार्षद भी इस आधार पर टिकट की मांग कर रहे थे। यही वजह रही कि समाजवादी पार्टी के मुखिया ने इस बार ऐसा दांव खेला कि एक पार्षद को मैदान में उतार दिया। ऐसा करके अखिलेश यादव ने यह संदेश दे दिया है कि अगर आप पार्षद हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि आप विधानसभा के दावेदार नहीं हो सकते। अखिलेश ने यह साबित कर दिया कि पार्षद भी विधानसभा का टिकट पाने का हकदार है।
राजेश अग्रवाल को हरी झंडी मिलते ही पार्षदों के बीच यह चर्चा होने लगी है कि कुछ भी हो, राजेश अग्रवाल को हर हाल में जीत दिलानी है। पार्षदों का मानना है कि राजनीतिक पार्टियां हमेशा पैराशूट उम्मीदवार लाकर उन पर थोप देती हैं और पार्षद उन्हें जिताकर विधानसभा भेजने का काम करते हैं। नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कुछ पार्षदों ने कहा कि राजेश अग्रवाल की जीत से यह सीधा-सीधा संदेश जाएगा कि पार्षद भी विधायक बनने के काबिल हो सकता है। उनका कहना था कि अगर राजेश अग्रवाल चुनाव हारते हैं तो फिर कभी भी कोई भी बड़ा राजनीतिक दल पार्षदों को विधानसभा का टिकट नहीं देगा। इसलिए अब लड़ाई पार्टी की नहीं रह गई है। अब लड़ाई पार्षदों के राजनीतिक भविष्य की है। अपने राजनीतिक भविष्य को मजबूत बनाने के लिए सारे पार्षद एकजुट होकर राजेश अग्रवाल को जिताने की तैयारी में जुट गए हैं। राजेश अग्रवाल भले ही अभी लखनऊ से वापस नहीं लौटें हैं मगर उनका चुनाव प्रचार इतनी तेजी से होने लगा है कि अरुण कुमार के समर्थकों में निराशा घर करने लगी है।
राजेश अग्रवाल को हरी झंडी मिलते ही पूर्व मेयर डा. आईएस तोमर की पूरी टीम फिर से सक्रिय हो गई है। डा. अरुण कुमार से नाराज चल रहे कई भाजपा पार्षद भी अंदरखााने राजेश अग्रवाल की मदद करने को बेकरार बैठे हैं। डा. अरुण कुमार चूंकि दो बार से लगातार विधायक बनते आ रहे हैं इसलिए उनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का माहौल भी है। राजेश अग्रवाल नया चेहरा हैं जिस कारण उनके खिलाफ ऐसा कोई माहौल नहीं है। उल्टा भाजपा सरकार से नाराज बैठे मुस्लिम समुदाय का एकतरफा वोट राजेश अग्रवाल के खाते में आना तय माना जा रहा है। मुस्लिम के साथ दस फीसदी हिन्दू वोट भी अगर समाजवादी पार्टी हासिल कर लेती है तो राजेश अग्रवाल की जीत सुनिश्चित है।
बहरहाल, सियासी रण की अभी कई तस्वीरें सामने आएंगी। आने वाले तीन सप्ताह इसमें अहम भूमिका निभाएंगे। चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो दस मार्च को ही पता चलेगा लेकिन राजेश अग्रवाल की उम्मीदवारी कड़ाके की सर्दी में भी अरुण कुमार के पसीने छुड़ाने के लिए काफी है।
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