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साइकिल की सवारी पर मौलाना की तकरीर पड़ रही भारी, बिथरी में अल्का सिंह और कैंट में बब्बू के पाले में खिसकने लगे मुस्लिम वोटर

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नीरज सिसौदिया, बरेली
साइकिल पर सवार उम्मीदवारों पर अब मौलाना तौकीर रजा की तकरीर भारी पड़ती नजर आ रही है। खास तौर पर बिथरी चैनपुर और बरेली कैंट विधानसभा सीट पर बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता सपा से दूरी बनाते नजर आ रहे हैं। यही हाल रहा तो बिथरी में समाजवादी पार्टी चौथे पायदान पर भी जा सकती है। हालांकि, इन मुस्लिम मतदाताओं को अभी भी भाजपा नहीं भा रही है इसलिए वे कांग्रेस को विकल्प के तौर पर देख रहे हैं। वहीं, कुछ का रुझान बसपा की ओर भी दिख रहा है।


दरअसल, मौलाना तौकीर रजा अब जगह-जगह कांग्रेस के पक्ष में ताबड़तोड़ बैठकें कर रहे हैं। हर बैठक में उनकी एक ही अपील होती है कि जिन लोगों ने उन्हें मुसलमानों के हक की लड़ाई लड़ने पर जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया था उन लोगों से बदला लेने का सही वक्त आ गया है। इसी तरह मौलाना तौकीर रजा कई मुद्दों पर मार्मिक अपील मुस्लिम मतदाताओं के बीच जाकर कर रहे हैं। मौलाना की यह मार्मिक अपील मुस्लिमों पर मनोवैज्ञानिक असर डालती नजर आ रही है। खास तौर पर बिथरी विधानसभा सीट के मतदाताओं पर इसका ज्यादा प्रभावी असर देखने को मिल रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि बिथरी ग्रामीण इलाका है और यहां धर्म के नाम पर लोगों को एकजुट करना या कहें कि वोटों का ध्रुवीकरण करना ज्यादा आसान है। इसका उदाहरण निवर्तमान विधायक राजेश मिश्र उर्फ पप्पू भरतौल के बिथरी में हुए ताजिया प्रकरण के रूप में भी देखा जा सकता है। यह प्रकरण भी मौलाना की तकरीर का हिस्सा बन रहा है। वह बिथरी से कांग्रेस उम्मीदवार अल्का सिंह के साथ मिलकर डोर टु डोर प्रचार भी कर रहे हैं।

ऐसे में सपा की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। चूंकि बिथरी में बसपा के आशीष पटेल भी मजबूत स्थिति में हैं इसलिए मुमकिन है कि यही हाल रहा और मौलाना की तकरीर का व्यापक असर पड़ा तो समाजवादी पार्टी को यहां चौथे नंबर पर भी संतोष करना पड़ सकता है। इसकी सबसे बड़ी वजह वोटों के समीकरण के रूप में देखने को मिलती है। यहां दलित वोट बसपा के साथ है। साथ ही कुर्मी सहित कुछ पिछड़ा वोट भी आशीष पटेल के साथ है। पूर्व विधायक वीरेंद्र सिंह के निधन की वजह से आशीष पटेल के साथ मतदाताओं की सहानुभूति भी है। इनमें कुछ ऐसा मुस्लिम वोट भी है जो वीरेंद्र सिंह के बेहद करीबी हुआ करते थे। सपा को कुछ मौर्य वोट जरूर मिल सकता है क्योंकि उसने यहां से अगम मौर्य को मैदान में उतारा है लेकिन उसे न तो कश्यप वोट मिलने की संभावना है और न ही क्षत्रिय वोट मिल पाएगा। क्षत्रिय वोट अल्का सिंह और भाजपा के बीच ही रहेगा। चूंकि किसी भी बड़े दल ने किसी क्षत्रिय महिला को जिले की किसी भी सीट से मैदान में नहीं उतारा है इसलिए भी क्षत्रिय अल्का सिंह के पक्ष में एकजुट हो रहा है। ऐसे में सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस उम्मीदवारों के बीच देखने को मिल रहा है।


वहीं कैंट विधानसभा सीट पर मौलाना तौकीर रजा अच्छा प्रभाव रखते हैं। पठानों के बड़े नेता उनके साथ तकरीर करते नजर आ रहे हैं। वहीं, अंसारी बिरादरी का उम्मीदवार उतारने की वजह से यहां मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण कांग्रेस प्रत्याशी हाजी इस्लाम बब्बू के पक्ष में होता नजर आ रहा है। मौलाना कैंट विधानसभा सीट पर भी जगह-जगह बैठकें, सभाएं और जनसंपर्क करते नजर आ रहे हैं। इन सभाओं में मौलाना की मार्मिक तकरीर का असर अब देखने को मिल रहा है। यहां भी मौलाना के पक्ष में मुस्लिम एकजुट होता नजर आ रहा है। चूंकि यहां से सपा प्रत्याशी सुप्रिया ऐरन मेयर भी रह चुकी हैं और उनके कार्यकाल में पुराना शहर की बदहाली मुस्लिम आबादी देख चुकी है। उस दौरान सुप्रिया के पति प्रवीण सिंह ऐरन सांसद थे और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी लेकिन उस दौरान मुस्लिमों के लिए वह कुछ खास नहीं कर पाए थे। ऐसे में उन्हें मुस्लिम समाज कितना पसंद करेगा यह कहना मुश्किल है। बहरहाल, मुकाबला कांटे का है। भाजपा का वोट बैंक अब भी स्थिर नजर आ रहा है लेकिन मुस्लिम वोटर्स का रुझान अब बिथरी और कैंट सीट की लड़ाई को भाजपा बनाम कांग्रेस बनाता जा रहा है।

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