पंजाब

पंजाब में भाजपा का बढ़ेगा ग्राफ, कांग्रेस होगी पूरी तरह साफ, कांग्रेस के अंत का आगाज हैं विधानसभा चुनाव के नतीजे, जानिये क्‍यों?

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
हाल ही में संपन्‍न पंजाब विधानसभा चुनाव पंजाब के सियासी भविष्‍य को लेकर कई मायनों में अहम माने जा रहे हैं। कमजोर नेतृत्‍व और राजनीतिक संकट झेल रही कांग्रेस अब पंजाब से भी साफ होती नजर आ रही है। जिस तरह से पंजाब में आम आदमी पार्टी ने सत्‍ता का सफर तय किया है उससे यह तो स्‍पष्‍ट हो गया है कि अब पंजाब में भी कांग्रेस के अंत की शुरुआत हो चुकी है। ठीक उसी तरह जिस तरह दिल्‍ली से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ था। कांग्रेस ने भले ही 18 सीटों पर कब्‍जा जमाया हो लेकिन ये 18 सीटें कांग्रेस की मौजूदगी की जगह उसके मिटते हुए सियासी वजूद के संकेत दे रही हैं। वहीं, कांग्रेस का यह संकट भारतीय जनता पार्टी के लिए सुनहरा अवसर साबित हो सकता है।
दरअसल, पंजाब में कुछ समय पहले तक सिर्फ अकाली दल और कांग्रेस ही सत्‍ता पर काबिज होते रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में अकाली दल हमेशा मजबूत स्थिति में रहा और कांग्रेस को टक्‍कर देता रहा लेकिन शहरी इलाकों में वह कभी भी अपने दम पर कांग्रेस को सीधी चुनौती नहीं दे पाया। वहीं, भारतीय जनता पार्टी कभी भी ग्रामीण इलाकों में अपना अलग सियासी वजूद स्‍थापित नहीं कर सकी। यही वजह रही कि अकाली दल और भाजपा एक-दूसरे का सहारा बने और सत्‍ता पर काबिज भी हुए। भाजपा से गठबंधन के बाद पहली बार अकाली दल अकेले दम पर चुनावी मैदान में उतरा और उसके सुप्रीमो तक अपनी सीट नहीं बचा सके। वहीं, अब तक अकाली दल की बैशाखियों के सहारे सत्‍ता का सफर तय करने वाली भाजपा पहली बार 117 में से 73 सीटों पर अकेले दम पर चुनाव लड़ने की हिम्‍मत जुटा सकी। भाजपा को भले ही इस चुनाव में महज दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा है मगर उसका वोट प्रतिशत एक प्रतिशत से अधिक बढ़ा है।
कुछ राजनीतिक विश्‍लेषक मानते हैं कि भाजपा 73 सीटों पर चुनाव लड़ी है इसलिए यह वोट प्रतिशत निराशाजनक है लेकिन कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पंजाब में आप की लहर होने के बावजूद भाजपा के वोट प्रतिशत में इजाफा होना पंजाब में भाजपा के सियासी भविष्‍य के लिए शुभ संकेत हैं।
वे तर्क देते हैं कि कांग्रेस देशभर में सत्‍ता से बाहर होती जा रही है लेकिन भाजपा देशभर में अपना दायरा बढ़ाती जा रही है। भाजपा के पास अब पंजाब में अपना दायरा बढ़ाने का भरपूर समय भी है, केंद्र की सत्‍ता भी है और संघ की ताकत भी है लेकिन कांग्रेस के पास सिवाय अपने वजूद को बचाने के संकट के कुछ नहीं है। पिछले पांच वर्षों में संघ ने पंजाब के शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक अपनी एक खास जगह बना ली है। यही वजह है कि अब दूसरी और तीसरी पंक्ति के सिख नेता भी भाजपा से जुड़ने लगे हैं। भाजपा जमीनी स्‍तर पर पकड़ बनाती जा रही है और कांग्रेस अपना वजूद खोती जा रही है।
हाल ही में संपन्‍न विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 42 प्रतिशत वोट मिले हैं जबकि कांग्रेस को 22.98 फीसदी वोट हासिल हुए हैं। अकाली दल को 18.38 प्रतिशत वोट मिले हैं तो भाजपा ने 6.60 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं। अगर अकाली दल और भाजपा के वोट प्रतिशत को मिला दें तो कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगभग दो प्रतिशत कम बैठता है। अब अगर वोट प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो अकाली-भाजपा गठबंधन दूसरे नंबर पर आता है जबकि कांग्रेस तीसरे नंबर पर खड़ी नजर आती है। राजनीतिक विश्‍लेषकों का मानना है कि चूंकि केंद्र सहित देश के ज्‍यादातर राज्‍यों में भाजपा काबिज है इसलिए पंजाब की जनता को अगर आम आदमी पार्टी का विकल्‍प चुनना होगा तो वह भाजपा को प्राथमिकता देगी। उनका कहना है कि संघ जिस तेजी से पंजाब में अपनी जड़ें जमाता जा रहा है उससे भाजपा का भविष्‍य मजबूत नजर आ रहा है। हालांकि, भाजपा की राह इतनी आसान नहीं नजर आती। सत्‍ता हासिल करने के लिए उसे अभी लंबा सफर तय करना होगा मगर कांग्रेस का विकल्‍प बनने के लिए उसे अब बहुत ज्‍यादा मुश्किल नहीं आने वाली। साथ ही आम आदमी पार्टी की सरकार की कार्यशैली भी भाजपा और अन्‍य राजनीतिक दलों के सियासी भविष्‍य को तय करने में अहम भूमिका निभाएगी।

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