नीरज सिसौदिया, जालंधर
जाली रजिस्ट्री बनाकर गांव सुभाना में तीन मरला 64 वर्ग फुट के प्लॉट की एनओसी लेने का मामला कुछ भ्रष्ट नगर निगम अधिकारियों की वजह से ठंडे बस्ते में जाता नजर आ रहा है। यही वजह है कि जाली रजिस्ट्री के पूरे खेल का खुलासा होने के बावजूद नगर निगम की बिल्डिंग ब्रांच के अधिकारियों ने न तो एनओसी को रद किया और न ही जाली रजिस्ट्री जमा करने वाले प्लॉट मालिक के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया। जबकि मामले में आईपीसी की धारा 420 और 120 बी के तहत यह अपराध की श्रेणी में आता है। बात सिर्फ जाली रजिस्ट्री जमा करने वाले पर कार्रवाई की ही नहीं है। उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का भी है जिन्होंने रिश्वत लेकर पहले तो मंजीत सिंह के प्लॉट की एनओसी जारी की और अब जबकि मामला मीडिया में सुर्खियां बटोरने लगा है तो वह अधिकारी आरोपियों को बचाने में लगा हुआ है।
बता दें कि ज्वाइंट कमिश्नर गुरविंदर कौर रंधावा ने एक सप्ताह में इसकी रिपोर्ट एसटीपी से मांगी थी। रिपोर्ट देने की जगह अधिकारियों ने उस आर्किटेक्ट को रंधावा के समक्ष पेश कर दिया जिससे रिश्वत लेकर निगम अधिकारियों ने एनओसी जारी की थी। बता दें कि जिस एसटीपी परमपाल को मामले की जांच सौंपी है जो खुद भ्रष्टाचार के आरोप में सस्पेंड हुए थे। कुछ ऐसा ही एमटीपी मेहरबान सिंह के साथ भी है। उन्हें भी भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही अधिकारियों का तबादला फगवाड़ा नगर निगम कर दिया गया था लेकिन चूंकि इनके भ्रष्टाचार का सिंडिकेट जालंधर में फैला हुआ था इसलिए दोनों अधिकारी वापस जालंधर आ गए। अब यहां अवैध कॉलोनियों और अवैध बिल्डिंगों के काले कारोबार में जुट गए। जाली रजिस्ट्री पर एनओसी का काला खेल भी उसी कारोबार का एक हिस्सा है। अब सवाल ज्वाइंट कमिश्नर रंधावा पर भी उठता है कि अधिकारियों के भ्रष्टाचार के बारे में जानते हुए भी उन्होंने इन्हीं भ्रष्ट अधिकारियों को मामले की जांच क्यों सौंपी? अब तक एनओसी रद न करने पर रंधावा ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? जाली रजिस्ट्री बनाने वालों पर और उसके आधार पर एनओसी लेने वाले पर एफआईआर क्यों दर्ज नहीं की गई?
ऐसे कई सवाल हैं जो नगर निगम की बिल्डिंग ब्रांच के भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे हैं। ऐसे में भगवंत मान का भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस का दावा हवा-हवाई ही साबित हो रहा है। हालांकि, अब नगर निगम के कमिश्नर पद की जिम्मेदारी दविंदर सिंह को दे दी गई है। दीपशिखा शर्मा को चंद माह में ही चलता कर दिया गया है। अब देखना यह होगा कि क्या दविंदर सिंह जालंधर नगर के बिल्डिंग ब्रांच के इन भ्रष्ट अधिकारियों के काले कारनामों पर अंकुश लगा पाएंगे अथवा नहीं?
जाली रजिस्ट्रियों के आधार पर अवैध कॉलोनियों में बांटा जा रही एनओसी के काले कारोबार को रोक पाएंगे या अपना हिस्सा लेकर वह भी किनारे हो जाएंगे।
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