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खत्म होने लगी शहजिल इस्लाम की हनक, बढ़ने लगा अता उर रहमान का सियासी कद, जानिये क्यों?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
इस्लाम साबिर का परिवार बरेली की सियासत में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। यह वह परिवार है जिसमें दादा विधायक तो पोता मंत्री तक बने लेकिन अब इस परिवार की राजनीतिक हनक कम होने लगी है। योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में जिस तरह से पूर्व मंत्री के पेट्रोल पंप पर बुलडोजर चलाया गया उसने यह साबित कर दिया कि पिता और दादा से विरासत में मिली सियासत को संभालना अब शहजिल इस्लाम के वश में नहीं रहा। वहीं, इस पूरे घटनाक्रम के बीच बरेली की सियासत में बहेड़ी विधायक और पूर्व मंत्री अता उर रहमान का कद बढ़ता नजर आ रहा है।
दरअसल, शहजिल इस्लाम विपरीत परिस्थितियों में भी विगत विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को हराने में कामयाब रहे। इसलिये वह भाजपा नेताओं के निशाने पर आ गए। इसके बाद वह हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था। शहजिल इस्लाम के पेट्राेल पंप पर बुलडोजर चला दिया गया। यह पेट्रोल पंप पांच साल पहले भी अवैध था लेकिन तब बुलडोजर नहीं चला। क्यों, यह बताने को कोई तैयार नहीं। सूत्र बताते हैं कि शहजिल के पेट्रोल पंप के साथ ही उनकी अवैध दुकानों और अन्य चीजों पर भी बुलडोजर चलने जा रहा था लेकिन वह एक कद्दावर भाजपा नेता की शरण में चले गए और उन पर आगे की कार्रवाई को रोक दिया गया। अब जनता के बीच भी यह संदेश पहुंच चुका है कि शहजिल इस्लाम का अब वह दबदबा नहीं रह गया जो पहले हुआ करता था। इस कार्रवाई के बाद इस पर भी संशय उत्पन्न हो गया है कि अगर शहजिल अब योगी सरकार के खिलाफ कोई भी कदम उठाने की हिम्मत उठा पाएंगे या नहीं। इसी बीच मीरगंज के पूर्व सपा प्रत्याशी सुल्तान बेग की भोजीपुरा में सदस्यता अभियान को नाम पर एंट्री को भी इस प्रकरण से जोड़कर देखा जा रहा है। अब अगर बरेली मंडल के मुस्लिम नेताओं की बात करें तो फिलहाल अता उर रहमान एकमात्र ऐसे कद्दावर नेता के रूप में नजर आ रहे हैं जिनसे पार्टी को काफी उम्मीदें हैं। ये उम्मीदें लाजमी भी हैं क्योंकि वह सिटिंग विधायक भी हैं। अता उर रहमान के समक्ष इन उम्मीदों पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती है। शहजिल इस्लाम की साख को जिस तरह से बुलडोजर के नीचे रौंदा गया उसने शहजिल के सियासी भविष्य पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।
ऐसे में बरेली के सबसे बड़े सपा के मुस्लिम नेता के तौर पर अब अता उर रहमान का नाम लिया जाने लगा है।
सियासी जानकार इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि इस्लाम साबिर का दौर अब खत्म हो चुका है और शहजिल इस्लाम की रफ्तार पर भाजपा ने ब्रेक लगा दिया है। दो बार की लगातार हार के बाद अब सुल्तान बेग का भी वह रसूख नहीं रहा। नसीम अहमद जिस तेजी के साथ उभरे थे उसी तेजी के साथ विलुप्त होते जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव में एड़ी चोटी का जोर लगाने के बावजूद न तो वह अता उर रहमान का टिकट कटवाने में कामयाब हो पाए और न ही अता उर रहमान विधायक पद से वंचित किये जा सके। अब नगर परिषद की चेयरमैनी को लेकर भी संकट नजर आ रहा है। उनके धुर विरोधी अंजुम राशिद उन्हें कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकर राजनीतिक जानकार मानते हैं कि नसीम अहमद की सियासत अब सपा में ज्यादा दिनों की मेहमान नहीं रह गई है। ऐसे में सपा के पाले में सबसे मजबूत मुस्लिम चेहरा बरेली में फिलहाल अता उर रहमान के अलावा कोई दूसरा नजर नहीं आ रहा।
अत: पार्टी में अता उर रहमान का कद बढ़ा है और निकट भविष्य में इस कद के और बढ़ने की प्रबल संभावना जताई जा रही है। निश्चित तौर पर तमाम विरोधियों के विरोध और दावों को दरकिनार कर जिस तरह से अता उर रहमान ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की है वह काबिले तारीफ है। साथ ही सरकार विरोधी आंदोलनों में वह जिस तरह बेखौफ होकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते नजर आते रहे हैं वह सिलसिला उन्हें आगे भी बरकरार रखना होगा वरना सपा से मुस्लिमों का मोहभंग होने से कोई नहीं रोक पाएगा। आगे लोकसभा चुनाव हैं और मुस्लिमों को सपा के पाले में एकजुट करने के लिए बरेली के मुस्लिम नेताओं की निगाहें भी अब अता उर रहमान पर ही टिकीं हैं।

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