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जिला अध्यक्ष की जंग : वीरपाल यादव की चलेगी या अता उर रहमान मारेंगे मैदान? जानिये क्या कहते हैं राजनीतिक समीकरण?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
नगर निगम के सियासी घमासान से पहले समाजवादी पार्टी में जिला अध्यक्ष और महानगर अध्यक्ष के पद का घमासान होना है। फिलहाल कार्यकारिणी भंग है और सदस्यता अभियान जोरों पर है। इस बीच सबकी निगाहें जिला अध्यक्ष पद पर टिकी हुई हैं। इसकी एक वजह पूर्व जिला अध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सांसद वीरपाल सिंह यादव की समाजवादी पार्टी में वापसी को भी माना जा रहा है। वहीं, दूसरी सबसे बड़ी वजह पूर्व मंत्री और बहेड़ी विधायक अता उर रहमान का बढ़ता कद है। खास तौर पर मुस्लिम नेताओं की बात करें तो बरेली जिले में किसी भी मुस्लिम नेता का कद अता उर रहमान के बराबर नहीं ठहरता। शहजिल इस्लाम उन्हें टक्कर दे सकते थे लेकिन बुलडोजर प्रकरण और आरएसएस के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश के साथ उनकी तस्वीर वायरल होने के बाद वह पार्टी में अपना आधार पूरी तरह से खो चुके हैं। बाकी कोई मुस्लिम नेता अता उर रहमान के आसपास भी नहीं ठहरता। साथ ही अखिलेश यादव से उनकी नजदीकियां जगजाहिर हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि जिला अध्यक्ष तय करने में उनकी भूमिका काफी अहम होगी। पूर्व जिला अध्यक्ष अगम मौर्य को जिला अध्यक्ष बनवाने में भी अता उर रहमान की अहम भूमिका रही है। माना जा रहा है कि इस बार पार्टी जिला अध्यक्ष की कुर्सी किसी मुस्लिम को देने की तैयारी कर रही है। हालांकि, वीरपाल सिंह यादव की वापसी इन कयासों के आड़े आ रही है। पार्टी में वापसी के बाद जिस तरह से वीरपाल सिंह यादव को पीलीभीत जिले के सदस्यता अभियान का प्रभारी बनाया गया है उससे वीरपाल की मौजूदगी को नकारा नहीं जा सकता। वीरपाल ने अध्यक्ष रहते हुए पार्टी को जिस मुकाम तक पहुंचाया था वह निश्चित तौर पर काबिले तारीफ है। ऐसे में जिला अध्यक्ष की कुर्सी के लिए वीरपाल यादव की सलाह भी अहम मायने रखती है।
दिलचस्प, बात यह है कि दोनों नेता अंदरखाने एक-दूसरे के धुर विरोधी हैं। ऐसे में दोनों ही अपने-अपने करीबियों को जिला अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाने की कोशिश जरूर करेंगे। वीरपाल की वापसी से भगवत सरन गंगवार की अहमियत पार्टी में कुछ कम जरूर हुआ है। अता उर रहमान इसलिए मजबूत कहे जा सकते हैं क्योंकि वीरपाल के प्रसपा में जाने के बाद उन्होंने खुद को प्रदेश स्तर पर काफी मजबूत किया है और विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अखिलेश यादव का साथ नहीं छोड़ा। पार्टी हाईकमान यह जानता है कि मुस्लिमों को जोड़े रखना बहुत जरूरी है क्योंकि आरएसएस के अनुषांगिक संगठन राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के माध्यम से तेजी से मुस्लिमों को भी जोड़ने का प्रयास कर रहा है। बरेली जिले के कई टिकट के दावेदार नेता भाजपा में शामिल भी हो चुके हैं। वहीं, वीरपाल यादव के जाने के बाद पार्टी के यादव नेता भी बिखर गए। कुछ तो सक्रिय राजनीति से किनारा ही कर गए और कुछ नाममात्र के लिए राजनीति कर रहे हैं। ऐसे में वीरपाल यादव किसी यादव का नाम प्रस्तावित करने की गलती शायद ही करें। अन्य पिछड़ी जातियों में नेता तो बहुत हैं मगर जिला अध्यक्ष पद के लिए सर्वमान्य नेता का अभाव सपा में स्पष्ट रूप से दिखता है।
पार्टी हाईकमान के समक्ष यह भी मजबूरी है कि वह एक नेता को खुश करने के लिए दूसरे को नाराज नहीं कर सकती। खास तौर पर वीरपाल सिंह यादव के लिए अता उर रहमान को अगर नाराज किया गया तो बरेली में राजनीतिक गुटबाजी का फिर से वही चैप्टर शुरू हो जाएगा जो वीरपाल सिंह यादव के पार्टी छोड़कर जाने से पहले चलता रहता था। वीरपाल को पार्टी में वापसी किए हुए अधिक समय नहीं हुआ है इसलिए संगठन में इतनी जल्दी पुरजोर तरीके से आवाज बुलंद करने की कोशिश वीरपाल सिंह यादव शायद ही करें। हालांकि, अखिलेश यादव अता उर रहमान के सुझाव के साथ ही वीरपाल यादव के अनुभव का लाभ भी जरूर लेना चाहेंगे। इसलिए जिला अध्यक्ष के चयन में दोनों ही नेताओं की राय लेने के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष कोई निर्णय लेंगे।
आखिर में मामला एक बार फिर हिन्दू-मुस्लिम पर आकर खड़ा हो जाता है। मुस्लिम नेताओं में तो सपा के पास इंजीनियर अनीस अहमद खां, शमीम खां सुल्तानी जैसे साफ-सुथरी छवि के लोकप्रिय नेता मौजूद हैं लेकिन हिन्दुओं में अगर वीरपाल सिंह यादव और भगवत सरन गंगवार को छोड़ दिया जाए तो कोई भी दिग्गज नेता नजर नहीं आता। खासतौर पर यादव नेताओं में तो कोई ऐसा नेता भी नहीं है जिसका नाम भी महानगर या उसके गृह क्षेत्र के बाहर के लोग जानते हों। वीरपाल यादव अब जिला अध्यक्ष की कुर्सी शायद ही संभालना चाहें। निवर्तमान जिला अध्यक्ष इस कदर विवादों में घिर चुके हैं कि उनका पूरा चिट्ठा पहले ही पार्टी हाईकमान के पास पहुंच चुका है। अगर पार्टी उन्हें रिपीट करती है तो वह लेखा जोखा सार्वजनिक होते तनिक भी देर नहीं लगेगी। ऐसे में पार्टी अपनी फजीहत कराने का रिस्क शायद ही उठाए।
बहरहाल, अक्टूबर में बरेली को नया जिला अध्यक्ष मिलने की प्रबल संभावना है और माना जा रहा है कि यह जिला अध्यक्ष वही बनेगा जिसे अता उर रहमान और वीरपाल यादव दोनों का वरदहस्त प्राप्त होगा।

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