विचार

चूड़ा-दही से लेकर छोले-भटूरे तक का उपवास

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आनंद सिंह
तब हम बच्चे थे। पढ़ते थे। हमारे शहर झुमरीतिलैया में दो नामी स्कूल हुए। एक-सैनिक स्कूल, तिलैयाडैम और दूसरा संत जोसेफ स्कूल, झुमरीतिलैया। बाबूजी अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष थे। कई स्कूलों के मानद सभापति। हमारा ननिहाल वैशाली जिले में है। वहां के लोग अपने मेहमान, अर्थात हमारे बाबूजी का बड़ा मान रखते थे। वैशाली के जो चंद संभ्रांत परिवार के लोग थे, वे चाहते थे कि उनके बच्चे बढ़िया स्कूल में पढ़ें, आदमी बनें। इसी सिलसिले में वैशाली के कई लोग हमारे घर आते थे। बाबूजी किसी स्कूल में प्रिसिपल से कह देते थे, नामांकन हो जाता था। कभी मार्डन पब्लिक स्कूल, कभी डीएवी तो कभी संत जोसेफ। सैनिक स्कूल में कोई पैरवी नहीं चलती थी, न कभी बाबूजी ने की।
वैशाली जिले के चकव्यास तहसील के एक सज्जन आए। उन्होंने बाबूजी को प्रणाम किया। कहा-फूफा जी, इस लड़के का भी एडमिशन करवाना है। हम आपके पास छोड़े जा रहे हैं। पैसे आप रख लें। हमको आज रात में ही गंगा-दामोदर से निकलना है। कल पटना में सदाकत आश्रम में उपवास है। हमको भी बैठना है। बाबूजी ने स्वीकृति में सिर हिला दिया।
शाम में वह सज्जन बाजार गए। दो किलो मछली लेकर आए। मां से कहा-फुआ, अपने हाथों से मछली बना दीजिए। जमाने भर बाद आपके हाथों से मछली खाने का मौका मिलेगा। मां ने कहा-इतना क्यों ले आए। हम लोग तो एक-सवा किलो में खा लेते हैं। उन सज्जन ने कहा-बना दीजिए। बचेगा नहीं।
मैं मां के साथ ही था। सारी बातें सुन रहा था। फिर वह सज्जन बिस्तर पर लेट गए। मुझसे कहा कि जरा पैर-हाथ दबा दो। मैं सेवा में लग गया। अकस्मात उनसे पूछ लिया-भैया जी, आप खाने के शौकीन हैं। कल आप उपवास पर बैठ रहे हैं। कैसे सुबह से शाम तक भूखे रहेंगे।
उनका जवाब आया-भोंदू ही रह गए तुम। अरे उपवास का मतलब क्या होता है? जब आप उपवास पर बैठे हैं तो खाने की बंदिश है। उपवास पर बैठने के पहले आप कुछ भी खाइए, कौन रोकने वाला है।
मैंने पूछा-आप कैसे करेंगे उपवास कल?
उन्होंने बताया-5 बजे भोर में पटना स्टेशन पर उतरेंगे। बगल में ही एक होटल है। वहां जाएंगे। फ्रेश होंगे। सात बजे आधा किलो चूड़ा, तीन पाव दही और आधा किलो गुड़ रख कर आए हैं। वही दबा लेंगे। पांच बजे शाम तक कोई भूख नहीं लगेगी। समझे। हम लोग 20 साल से ऐसे ही उपवास कर रहे हैं। चूड़ा पचने में भी टाइम लेता है न। भारी होता है। उपवास के प्रति उनकी यह योजना उस वक्त मेरे बालमन में ऐसी बैठी कि आज जब राहुल गांधी एंड कंपनी ने उपवास के पहले ब्रेकफास्ट किया, तो सब कुछ जैसे फिर से सामने आ गया-फ्लैशबैक की तरह।
हरियाणा के एक कांग्रेसी को भी जानने का मौका मिला है। वह 9 बजे के पहले उपवास पर नहीं बैठते। उनका उपवास पांच बजे शाम तक चलता है। एक बार उन्होंने खुद ही बताया था कि उपवास रखने वाले दिन वह सबसे पहले एक लीटर दूध पीते हैं और उसके बार 250 ग्राम रबड़ी खाते हैं। दूध और रबड़ी खाने के बाद पिस्ता हलुआ खाते हैं। इसके बाद ही वह उपवास पर बैठते हैं। उपवास वाले दिन एक काम वह नहीं करते-न मोबाइल देखते हैं, न बोलते हैं। हां, सोते हैं जम कर। कोई आ गया तो जग जए, नहीं आया तो फोंफ काटते हैं।
दरअसल, उपवास को लेकर गांधी जी ने एक बार बिड़ला जी को बड़ी अच्छी बातें बताई थी। प्रार्थना सभा के बाद बिड़ला जी ने बापू से पूछा था कि क्या वह आज भी उपवास पर रहेंगे? बापू ने कहा-नहीं। रोज-रोज उपवास की जरूरत क्यों? जब मेरा मन विचलित होता है, मेरे मन में हाहाकार मचता है, मेरे सवाल का जवाब नहीं मिलता, दिल-दिमाग में तूफान उठता रहता है, तब इन्हें नियंत्रित करने के लिए, मन की शुद्धि के लिए मैं उपवास पर बैठता हूं। मेरे लिए उपवास मन की शुद्धि का जरिया है, ढकोसला नहीं।
पता नहीं, इस कांग्रेस पार्टी के कितने सदस्यों को गांधी जी की ये बातें याद हैं। जो तमाशा इन लोगों ने सोमवार को किया, उसने तो उपवास शब्द की महत्ता ही खत्म कर दी।
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