नई दिल्ली। दुष्कर्म पीड़िता का नाम किसी भी सूरत में उजागर नहीं किया जाना चाहिए। अगर पीड़िता की मौत हो गई है तो भी उसके परिजनों की सहमति के बावजूद उसका नाम जगजाहिर करना गलत है। अगर पीड़िता नाबालिग है या दिमागी तौर पर नाकाबिल है तब भी परिवार की मंजूरी से उसकी पहचान मीडिया रिपोर्ट में नहीं बताई जानी चाहिए। यह बात शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की बेंच ने कही।
बेंच भारतीय दंड संहिता किस सेक्शन 2288 पर विस्तृत सुनवाई के लिए तैयार हो गई है। इसकी अगली सुनवाई 8 मई को होगी।
इस सेक्शन के मुताबिक रेप पीड़िता की मौत के बाद उसके परिवार की सहमति से उसकी पहचान सार्वजनिक की जा सकती है. पीड़िता अगर नाबालिग है या दिमागी तौर पर नाकाबिल है तब भी परिवार की सहमति से उसकी पहचान मीडिया रिपोर्ट्स में बताई जा सकती है। लेकिन बिना मंजूरी के पहचान उजागर करने या सेक्शन का उल्लंघन करने पर 2 साल की सजा वह जुर्माने का प्रावधान है। निर्भया रेप कांड के बाद महिला सुरक्षा पर दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी इंदिरा जयसिंह ने सेक्शन 228 ए पर विस्तृत सुनवाई की मांग की थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है। अब इस मामले पर अगली सुनवाई 8 मई को होगी।
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