निगम कमिश्नर से लेकर निकाय विभाग तक मेहरबान पर हो रहा मेहरबान
जालंधर। नगर निगम के मुनिसिपल टाउन प्लानर मेहरबान सिंह पर नगर निगम जालंधर के कमिश्नर से लेकर स्थानीय निकाय मंत्रालय तक मेहरबान है। यही वजह है कि चार्जशीट किए जाने के बावजूद चार महीने बाद भी उनसे म्युनिसिपल टाउन प्लानर का सीडी रिचार्ज वापस लेकर उन्हें एटीपी नहीं बनाया गया है। साथ ही चंडीगढ़ से होने वाला सीएलयू जालंधर से करवाने के मामले में नगर निगम कमिश्नर बसंत गर्ग ने ड्राफ्टमैन की तो बदली कर दी लेकिन मेहरबान सिंह पर पूरी मेहरबानी दिखाई है।
आरटीआई एक्टिविस्ट रविंदर पाल सिंह चड्ढा ने बताया कि कपूरथला चौक के पास बन रही जोशी हॉस्पिटल की अवैध बिल्डिंग के खिलाफ उन्होंने चीफ विजिलेंस अफसर को चंडीगढ़ में शिकायत की थी। यह बिल्डिंग मुंसिपल टाउन प्लानर मेहरबान सिंह की मिलीभगत से बनाई गई है। बिल्डिंग की हाउस लाइन भी पूरी तरह से कवर कर ली गई है लेकिन मेहरबान सिंह उस बिल्डिंग पर इतने मेहरबान हैं कि अब तक उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। उन्होंने बताया कि 29 दिसंबर 2017 को इसी शिकायत के आधार पर दी गई चीफ विजिलेंस अफसर की रिपोर्ट के आधार पर मेहरबान सिंह को स्थानीय निकाय विभाग द्वारा चार्जशीट किया गया था। इस बात को लगभग 4 महीने पूरे होने को हैं लेकिन अभी तक मेहरबान सिंह की 4 सीट पर कोई एक्शन नहीं लिया गया है। वहीं, निकाय विभाग व निगम कमिश्नर बसंत गर्ग की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाते हुए रविंद्र पाल सिंह चड्ढा ने कहा कि नियमानुसार जिस व्यक्ति का पिता या कोई सगा संबंधी किसी भी राजनीतिक पार्टी का ओहदेदार है तो उस व्यक्ति को उसी स्टेशन पर तैनात नहीं किया जा सकता जहां का उसका पारिवारिक सदस्य सियासी दल में किसी पद पर है लेकिन मेहरबान सिंह के मामले में इस नियम को भी दरकिनार कर दिया गया. उन्होंने कहा कि मेहरबान सिंह के पिता भाजपा के नेता हैं इसके बावजूद पिछले कई सालों से मेहरबान सिंह जालंधर में ही पोस्टेड हैं। उन्होंने स्थानीय निकाय मंत्री से मांग की है कि मेहरबान सिंह से तत्काल एमटीपी का करंट ड्यूटी चार्ज वापस लेकर उन्हें एटीपी बनाया जाए और उनका तबादला कि जालंधर से बाहर किसी अन्य स्टेशन पर किया जाए।
वहीं एक अन्य मामले में मेहरबान सिंह पर निगम कमिश्नर बसंत गर्ग की मेहरबानी भी सामने आई है। मामला पेंटे प्रॉपर्टी डीलर की हवेली के पास स्थित जमीन का सीएलयू से संबंधित है।
नियमानुसार इस जमीन का सीएलयू चंडीगढ़ से किया जाना था लेकिन कमिश्नर इतने मेहरबान हुए कि उन्होंने बिना सोचे समझे अधीनस्थ अधिकारियों के पास से आई फाइल को साइन कर दिया और नियमों को ताक पर रखकर सीएलयू कर दिया। इंडिया टाइम 24 ने जब मामले का खुलासा किया तो मेयर जगदीश राज राजा ने निगम कमिश्नर से इसकी रिपोर्ट तलब कर ली। आनन फानन में दूसरी फाइल चंडीगढ़ भेज दी गई और खानापूर्ति करते हुए ड्राफ्टमैन सुखदेव वशिष्ठ का तबादला दूसरी ब्रांच में कर दिया गया। अब सवाल यह उठता है कि क्या अकेले सुखदेव वशिष्ठ इसके लिए जिम्मेदार हैं? क्या सीएलयू का अधिकार ड्राफ्टमैन को है? क्या फाइल में किसी और अधिकारियों ने दस्तखत नहीं किए? अगर अन्य अधिकारियों ने भी इस में दस्तखत किए तो फिर सजा सिर्फ ड्राफ्टमैन को क्यों अन्य अधिकारियों को क्यों नहीं? असिस्टेंट टाउन प्लानर, म्युनिसिपल टाउन प्लानर, सीनियर टाउन प्लानर और यहां तक कि निगम कमिश्नर तक के साइन उस फाइल पर हैं। अगर इन अधिकारियों ने बिना देखे, बिना सोचे समझे इस फाइल को पास कर दिया तो तो फिर उन्हें इतनी मोटी सैलरी पर रखने का औचित्य क्या है? नगर निगम के बिल्डिंग विभाग के अधिकारियों से लेकर निगम कमिश्नर बसंत गर्ग तक की काम के प्रति गंभीर लापरवाही का इससे बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता। इसके बावजूद बसंत गर्ग द्वारा अपने अधीनस्थ अधिकारियों मेहरबान सिंह व अन्य को बचाना यह साबित करता है कि नगर निगम के भ्रष्टाचार में कहीं ना कहीं बसंत गर्ग की भी सहमति है। अब जब हकीम ही लापरवाह और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला हो तो नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार खत्म होने की उम्मीद करना भी बेमानी है।