झारखण्ड

कोलकाता में छाई बिनीता बंदोपाध्याय की चित्रकारी 

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चित्रकार स्व. पारितोष सेन की जन्मशताब्दी में जुटे देश-विदेश के चित्रकार
रामचंद्र कुमार अंंजाना, बोकारो थर्मल
प्रख्यात चित्रकार स्व. पारितोष सेन की जन्मशताब्दी के अवसर पर कोलकाता स्थित अकादमी ऑफ फाइन आर्ट्स में सात दिवसीय एक भव्य  सम्मेलक चित्र-प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। जिसमें भारत सहित बांग्लादेश, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम से कलाकारों का चित्रकला-ग्राफिक्स तथा शिल्पकृति समाहित था।


प्रदर्शनी में बेरमो कोयलांचल के बोकारो थर्मल निवासी ख्याति प्राप्त ग्राफिक्स चित्रकला शांतिनिकेतन विश्वभारती से स्नातकोत्तर (ग्राफिक्स) बिनीता बंद्योपाध्याय कृत लिथोकृतियों को कलाप्रेमियों तथा कलालोचकों द्वारा काफी समादृत किया गया। प्रदर्शनी में बांग्लादेश से समीना नफीस, मोइनुल आबेदीन, ऑस्ट्रिया से रोमाणा होस्टनिग, बेल्जियम से वलेरी बिनीता बंद्योपाध्याय अपने गुरु प्रख्यात चित्रकार तथा राज्यसभा सांसद प्रोफेसर योगेन चैधरी के साथ अपने प्रदर्शित चित्रों के साथ शामिल हुई। बिनीता बंद्योपाध्याय के गा्रफिस को कलकता में दुसरों देशों से आये चित्रकारों ने खूब सराहा। हिन्दुस्तान से बातचीत करते हुए राष्ट्रपति पुरस्कृत बिनीता बंद्योपाध्याय ने कहा कि कोलकाता में आयोजित सात दिवसीय चित्र-प्रदर्शनी का आयोजन कर चित्रकार स्व. परितोष सेन की भुली-बिसरी यादें सबको मन मोहित कर लिया।
कौन थे पारितोष सेन

ढाका में जन्मे पारितोष सेन 1918-2008 आधुनिक कला व मॉडर्न आर्ट को प्रोत्साहित करने के लिए स्थापित ‘कलकत्ता ग्रूप’ के संस्थापक सदस्यों में से थे। ‘कलकत्ता ग्रूप’ भारत की पहली कला संस्था है जिसने आधुनिक कला के लिए कलाकारों को एकजुट किया। परितोष सेन ऐसे कलाकार थे जिन्होंने रंगों के नये नये प्रयोग किए। वे अपनी कला को निखारने के लिए अकादमी आंद्रे ल्हार्ट, अकदमी ला ग्रेंड शॉमीर, इकोल ड ब्यो आर्ट्स और इकोल ड लॉवरे जैसी फ्रांस की संस्थाओं में शिक्षा ली। इनकी कला से प्रभावित होकर 1953 में विश्व के सब से महान कलाकार पाब्लो पिकासो ने उनके चित्रों को कुछ समय तक अपने पास रखने की इजाजत माँगी थी। हुआ यूं कि पेरिस में सेन ने पिकासो से मिलने की इच्छा जताई तो उन्हें केवल पंद्रह मिनट का समय दिया गया। जब वे पिकासो से बात करके पंद्रह मिनट के बाद अपनी कलाकृतियों को समेटने लगे तो पिकासो ने कहा कि ‘कुछ देर ठहर जाओ, मैं तुम्हारे चित्र कुछ देर और देखना चाहता हूँ। क्या तुम कुछ देर रुक सकते हो।’ यह ‘कुछ देर’ पूरे चार घंटी चली। जब परितोष सेन निकल रहे थे तो पिकासो ने कहा ‘तुम्हारे चित्र मैंने देख लिए, अब तुम्हें मेरे चित्र देखना चाहिए’। सेन इस घटना को अपने जीवन की अविस्मरणीय घटना मानते हैं।1953 की इस घटना के बाद तो पारितोष सेन ने कई प्रदर्शनियों में भाग लिया और वाहवाही लूटी। उनके जीवन में कई सम्मान भी मिले। 1969 में उन्हें फ्रेंच फेलोशिप मिली और 1970 में रॉकफेल्लर फेलोशिप दी गई। निश्चय ही इस कलाकार पर भारत ही नहीं संपूर्ण कला जगत को गर्व होगा।

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