पंजाब

प्लॉटों की एनओसी ले ली, कॉलोनी पास नहीं कराई, खरबों रुपये का चूना लगा चुके सरकार काे कॉलोनाइजर

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
अवैध कॉलोनियां काटने वाले कॉलोनाइजरों द्वारा नगर निगम अधिकारियों की कथित मिलीभगत से सरकारी राजस्व को चूना लगाने का खेल धड़ल्ले से चल रहा है| शहर और आसपास के ग्रामीण इलाके में अवैध कॉलोनियों तो धड़ल्ले से काटी जा रही हैं लेकिन सरकार का खजाना भरने का नाम ही नहीं ले रहा|
दरअसल अवैध कॉलोनियां काटने वाले कॉलोनाइजर नगर निगम और पुडा के अधिकारियों की मिलीभगत से अपने काले कारनामे को अंजाम देते हुए सरकार के राजस्व को अरबों रुपए का चूना लगा रहे हैं| अगर जालंधर जिले की करें तो जिले में लगभग 10 हजार के करीब अवैध कॉलोनियां मौजूद हैं| ऐसा नहीं है कि इन कॉलोनियों से सरकारी खजाने में कोई राशि जमा नहीं कराई गई है, लेकिन जो पैसा शुल्क के रूप में जमा कराया गया है उस से 10 गुना से भी अधिक राशि सरकारी खजाने में जमा कराई जानी चाहिए थी|

https://youtu.be/zJ521G5n0sY
विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से कॉलोनाइजरों ने ऐसा खेल खेला कि वह अवैध कॉलोनियों में भी वैध तरीके से काम करने लगे|
अगर यह कॉलोनाइजर अपनी कॉलोनियों को नियमानुसार पास करवाते तो नगर निगम या पुडा के खाते में मोटी रकम जमा करनी पड़ती| इसलिए निगम अधिकारियों की तरह से उन्होंने ऐसा तोड़ निकाला कि इनके प्लॉट वैध भी हो जाएं और कॉलोनी पास कराने में होने वाले भारी भरकम सरकारी खर्चे से भी बच जाएं| साथ ही उन्हें कॉलोनी के लिए निर्धारित योग्यताओं को भी पूरा ना करना पड़े| इसका आसान सा तरीका है प्लॉटों की एनओसी ले लो और सरकारी खजाने को चूना लगाओ| जालंधर जिले मैं अवैध कॉलोनियों काटने वाले कॉलोनाइजर इसी तर्ज पर काम कर रहे हैं| ऐसे में नोटों की एनओसी के मिल जाती है और यह कॉलोनाइजर उन्हें मोटे दामों पर बेच भी देते हैं लेकिन सरकारी खजाने में नाम मात्र की रकम पहुंचती है| बता दो प्लॉट की एनओसी लेने के लिए चंद हजार रुपए ही अदा करने पड़ते हैं और कॉलोनी की पूरी की पूरी जमीनों का मुंह मांगा दाम मिल जाता है| नाथू कॉलोनियों में पार्क छोड़े जाते हैं और ना ही सीवरेज शेयरिंग चार्ज जमा किया जाता है| अकेले सीवरेज शेयरिंग चार्ज की ही बात करें तो यह राशि नौ लाख रुपये प्रति एकड़ बनती है| ऐसे में दस हजार कॉलोनियों का सीवरेज शेयरिंग चार्ज ही अरबों रुपए में पहुंच जाता है| वही कॉलोनी पास कराने के लिए प्रति एकड़ लाखों रुपए में फीस अदा करनी पड़ती है| इस हिसाब से 10000 कॉलोनियों का आंकड़ा जोड़े तो यह राशि खरबों रुपये में जाती है| यही वजह है कि कॉलोनाइजर सरकार को मोटी रकम खाने की जगह सरकारी अधिकारियों की देवी धर्म पर अपना काम निकाल लेते हैं| अगर सरकार इन सभी कॉलोनियों से शुरू शुरू करो तो प्रदेश में वर्तमान में कितने अवैध कॉलोनियां विद्यमान है उनसे इतनी रकम जमा हो सकती है कि पंजाब सरकार का लगभग 2 साल का बजट निकल सकता है|
कॉलोनी पास कराने के लिए नियमानुसार कॉलोनाइजर को एक निर्धारित जगह छोड़नी पड़ती है लेकिन प्लॉटों की एनओसी के लिये ऐसा कुछ नहीं करना पड़ता| नतीजतन पूरी की पूरी जमीन का सौदा हो जाता है और कॉलोनाइजर की चांदी हो जाती है| नगर निगम के अधिकारी यह कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं कि उनके पास तो प्लॉटों की एनओसी है तो कार्रवाई नहीं कर सकते| ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्लॉटों की अनुसूची है लेकिन सड़कों की कि नहीं की गई तो फिर कॉलोनी में सड़कें कैसे तैयार कर दी गईं? निगम अधिकारी इन सड़कों को ध्वस्त क्यों नहीं करते? अगर ये सड़़कें ध्वस्त कर दी जातीं तो कॉलोनाइजर कॉलोनी पास करवाने को मजबूर हो जाते और नगर निगम के खाते में खरबों रुपए जमा हो चुके होते| अपनी जेबें गर्म करने के लिए अधिकारी सरकारी खजाने को चूना लगाते रहे| स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने पिछले दिनों काफी सख्ती बरती थी| अगर सिद्धू इस दिशा में भी कार्रवाई करें तो अब भी सरकारी खजाना भरा जा सकता है|

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