नरेश नाथ (ज्योतिषाचार्य)
श्राद्ध का महत्व जाने से पहले यह जानना आवश्यक है की हम यह क्यों कर रहे हैं शरीर में जब तक आत्मा है वह जीवित है जब वह आत्मा शरीर से निकल कर परमात्मा की ओर ना जा कर पितृ लोक में वास करती है तो अपने किए हुए अक्षम पापों के कारण वह पितर लोक में अतृप्त होकर बैठी होती है वहां पर बैठे हुए पितर साल में एक बार उस लोक से निकल कर अपने अपने वंशजों के पास पूजा जाप तर्पण या किसी ऐसे पुण्य की कामना के लिए आते हैं कि उनकी गति हो जाए जब हम किसी ब्राह्मण द्वारा उनकी पूजा और उनके निमित्त कोई भी दान पुण्य अर्पण करते हैं तो वह सूक्ष्म जीव आत्मा तृप्त होकर आशीर्वाद के रूप में अपने कुल को भरे फुले तो होने का आशीष देकर अपने लोक को चली जाती है कई लोग यह तर्क करते हैं कि ब्राह्मण को खिलाने से क्या पितरों को लगता है याद रखिए आत्मा और परमात्मा को जानने वाले यह जानते हैं की कलयुग में विष्णु ब्राह्मण के रूप में है वह ब्राह्मण संस्कारी है या नहीं है इसका निर्णय हमने करना है उसी अनुरूप विद्वान प्रभु में निष्ठावान ब्राह्मण को ही बुलाए और उनको ही जल व अनाज दक्षिणा दे और उन्ही से ही पूजा करवाएं यह तर्पण अमोघ है शास्त्रोक्त है.